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तीन वर्ष में राज्य में 15 हजार से अधिक बालविवाह

राज्य सरकार ने दी चौकाने वाली जानकारी

मुंबई./ दि.27- पिछले तीन वर्ष में राज्य के 16 आदिवासी क्षेत्र में 15 हजार से अधिक बालविवाह हुए और 15 हजार के आसपास बालविवाह रोकने में सरकार को सफलता मिली, ऐसा राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में बताया. बाल विवाह की प्रथा आज भी शुरु है, ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आयी है. परंतु चौकाने वाली याने राज्य में बाल विवाह की शिकायत दर्ज नहीं होने की भयानक हकीकत सामने आयी है.
बालविवाह की कुप्रथा रोकने के लिए 2006 में बाल विवाह प्रतिबंध कानून बनाया गया. फिर भी इस कानून पर प्रभावी तौर से अमल नहीं किया जा रहा. 21 वर्ष से नीचे लडके और 18 वर्ष से नीचे लडकी का विवाह कानूनन प्रतिबंधित है. फिर भी आदिवासी जिले और अन्य क्षेत्रों में यह प्रथा आज भी शुरु है. आदिवासी क्षेत्र के कुपोषण व बाल मृत्यु की समस्या के पीछे बाल विवाह का महत्वपूर्ण कारण होने की बात इस रिपोर्ट से स्पष्ट होता है, ऐसा जवाब सरकार की ओर से मुंबई उच्च न्यायालय के समक्ष दिया गया. मेलघाट और अन्य दुर्गम आदिवासी क्षेत्र के बच्चे कुपोषण के कारण मौत की ओर जा रहे है, इसी तरह वहां के नागरिकों को कई समस्याओं से जुझना पड रहा है. इस मामले में मुंबई उच्च न्यायालय में विभिन्न याचिकाएं दायर की गई है, इन सभी याचिकाओं पर मुख्य न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति विरेंद्रसिंह बिष्ट के समक्ष सुनवाई ली गई. ठाणे, पालघर, रायगड, नागपुर, जलगांव, अहमदनगर, अमरावती, नाशिक, नांदेड, चंद्रपुर समेत 16 आदिवासी क्षेत्र में 15 हजार से अधिक बालविवाह हुए और बालविवाह रोकने वाली समिति ने लगभग 15 हजार बालविवाह रोके, ऐसी जानकारी महाअधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने मुख्य न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में दी. कोरोना काल में महाराष्ट्र में बाल विवाह अधिक बढ गए. नाबालिग बच्चों के हाथ से कलम छिनकर नाजूक हाथों में जिंदगी की जिम्मेदारी सौंपते हुए बालविवाह जैसी कुप्रथा को प्रोत्साहन देने की बात स्पष्ट हुई है.

16 जिलों में कुपोषण से 6 हजार बच्चों की मौत
राज्य के 16 जिले में 6 हजार से अधिक बच्चों की कुपोषण से मौत हो गई, ऐसी जानकारी राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में दी. नंदुरबार जिले में कुपोषण के कारण 1 हजार 270 बच्चों की मौत हुई है. इसमें 137 मामलों में बच्चों की मां नाबालिग थी. अमरावती जिले में 729 बच्चों की मौत हुई थी, उसमें 645 एसटी समाज की, 75 मामलों में मां नाबालिग थी. उसी समय गडचिरोली जिले में 704 मौत हुई. जिसमें 465 मामले एसटी समाज के है. इसमें से 88 मामले माता नाबालिग होेने के है. यह आंकडे पर नजर दौडाने के बाद अदालत ने कहा कि, आदिवासी समाज की प्रचलित प्रथा बालविवाह को देखते हुए सरकार ने ऐसे समाज के पिता को संवेदनशील बनाने और उसके दुष्परिणाम से अवगत कराने की जरुरत है.

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