ओबीसी आरक्षण के बिना मनपा चुनाव होने की संभावना!
सरकार को इम्पिरिकल डेटा तैयार करने मेें लग सकता है छह माह से अधिक समय
* बिना पुख्ता वजह के चुनाव आगे नहीं टाले जा सकते
मुंबई/दि.16- शास्त्रीय सांख्यिकी विवरण यानी इम्पिरिकल डेटा उपलब्ध कराये बिना ओबीसी आरक्षण देने को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्थगिती दी गई है. ऐसे में अगले वर्ष मुंबई, कल्याण-डोंबिवली, ठाणे, नवी मुंबई व अमरावती सहित कई महानगरपालिकाओं और स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं के चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग को ओबीसी आरक्षण के बिना ही लेने होंगे. ऐसी पूरी संभावना फिलहाल दिखाई दे रही है.
हालांकि राज्य सरकार द्वारा ओबीसी आरक्षण के बिना स्थानीय स्वायत्त निकायों के चुनाव नहीं कराये जाने को लेकर घोषणा की गई है. किंतु किसी पुख्ता वजह के बिना नियमानुसार चुनाव को आगे नहीं ढकेला जा सकता है. जिसके चलते ओबीसी समाज को 27 फीसद आरक्षण न देते हुए ही चुनाव करवाने पड सकते है. ऐसे में अब इस मामले को लेकर राज्य सरकार के समक्ष राजनीतिक पेंच उत्पन्न हो जायेगा.
बता दें कि, इम्पिरिकल डेटा तैयार करने के लिए कई माह की कालावधि लगना तय है. ज्ञात रहे कि, मराठा आरक्षण के लिए यह जानकारी संकलित करने हेतु गायकवाड आयोग को करीब 6 माह का समय लगा था. वहीं राज्य सरकार ने ओबीसी समाज का इम्पिरिकल डेटा से संबंधित काम आगामी तीन माह में पूरा करने की तैयारी दर्शाई है. किंतु हकीकत यह है कि, मराठा समाज के आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछडे होने के सांख्यिकी विवरण को संकलित करने की तुलना में ओबीसी समाज के विवरण का संकलित करना काफी अधिक और व्यापक काम है. ऐसे में इस काम को पूरा करने हेतु 6 माह से भी अधिक समय लगना तय है.
सूत्रों के मुताबिक अभी तो आयोग की कार्यकक्षा में दुरूस्ती करते हुए काम शुरू करने में काफी समय लगना है. जिसके बाद सर्वेक्षण व संकलन सहित अन्य कामों को पूर्ण करना पडेगा. इसमें भी अच्छाखासा समय लगना ही है. वहीं दूसरी ओर मुंबई सहित राज्य की अन्य कई महानगरपालिकाओं के चुनाव फरवरी माह में करवाये जाने है. जिसके लिए जनवरी माह से ही प्रक्रिया शुरू हो जायेगी. इससे पहले इम्पिरिकल डेटा उपलब्ध होना बेहद मुश्किल और लगभग असंभव है. जिसके चलते आगामी मनपा चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना ही कराने होेंगे. ऐसा निर्वाचन विभाग से जुडे एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है.
राज्य के उपमुख्यमंत्री व वित्त मंत्री अजीत पवार हमेशा ही ओबीसी समाज की अनदेखी करते आये है. यहीं वजह है कि, उन्होंने इम्पिरिकल डेटा के लिए राज्य पिछडावर्गीय आयोग को 495 करोड रूपयों की निधी उपलब्ध नहीं करायी. ऐसे में ओबीसी समाज के मंत्रियों व विधायकों ने वित्तमंत्री पवार के समक्ष पूरजोर तरीके से अपनी मांग उठानी चाहिए. अन्यथा अपने पदों से इस्तीफा दे देना चाहिए.
मराठा आरक्षण के संदर्भ में गठित किये गये गायकवाड आयोग को सांख्यिकी विवरण यानी इम्पिरिकल डेटा तैयार करने हेतु 6 माह का समय लगा था. इसी तरह ओबीसी समाज का इम्पिरिकल डेटा तैयार करने हेतु कुछ माह की अवधि लगना तय है और यह काम महज दो-तीन माह में पूरा नहीं हो सकता.
ओबीसी समाज के राजनीतिक आरक्षण हेतु इम्पिरिकल डेटा उपलब्ध नहीं रहने के चलते सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये स्थगनादेश के मद्देनजर अब डेटा उपलब्ध होने तक आगामी चुनावों में ओबीसी समाज को आरक्षण नहीं दिया जा सकेगा. चुनाव के समय पर करवाने का संविधानात्मक नियम राज्य निर्वाचन आयोग पर लागू होता है. राजनीतिक आरक्षण देने की दृष्टि से राज्य को तैयारी करनी पडेगी और प्रत्येक स्थानीय स्वायत्त निकाय क्षेत्र में ओबीसी का प्रमाण व प्रतिनिधित्व कितना है, इसका विचार करना पडेगा. जनगणना की तर्ज पर यह काम करना होगा. साथ ही केंद्र से इसका ब्यौरा मांगने में कोई फायदा नहीं है, क्योंकि जनगणना के ब्यौरे और राजनीतिक आरक्षण के लिए आवश्यक रहनेवाले ब्यौरे में काफी फर्क होता है. ऐसे में राज्य सरकार को ही यह जानकारी अपने स्तर पर संकलित व तैयार करनी होगी. हालांकि इस काम में काफी समय लगना है. अत: तब तक स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकेगा और बिना आरक्षण के ही चुनाव करवाने होंगे.