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वनविभाग की अनुमति के बाद ही

विकास प्रकल्पों को मिलेगा वाइल्ड लाइफ क्लीयरंस

* केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लिया गया निर्णय
नई दिल्ली/दि.27– विकास एवं वन्यजीव संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु केंद्रीय वन, पर्यावरण व मौसम मंत्रालय के उच्चस्तरीय पैनल द्वारा तय किया गया है कि, वन्यजीव वाले क्षेत्रों में किसी भी तरह के बडे प्रकल्पों को वनविभाग की ओर से क्लीयरंस मिलने के बाद ही अनुमति प्रदान की जाएगी.

यह फैसला इससे पहले जनवरी माह के दौरान ही नैशनल बोर्ड फॉर वाईल्ड लाइफ की स्थायी समिति द्वारा बोर्ड के चेयर मैन व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव की मौजूदगी में हुई बैठक में लिया गया था. यह समिति ही वन्यजीव के अधिवास क्षेत्र, राष्ट्रीय उद्यान, व्याघ्र प्रकल्प व कॉरिडोअर के क्षेत्र में साकार होने वाले प्रकल्पों को क्लियरंस दिये जाने पर निर्णय लेती है. इसके साथ ही सभी राज्य सरकारों के नाम विगत 19 मार्च को निर्देश जारी करते हुए कहा गया कि, किसी भी विकास संबंधित प्रस्ताव को वन अधिनियम 1980 के तहत वनविभाग की अनुमति मिलने के बाद ही वन एवं वन्यजीव से संबंधित क्लीयरंस दिया जाये. साथ ही यह भी ध्यान में रखा जाये कि, ऐसे प्रकल्पों द्वारा जंगलों व वन्यजीवों तथा पर्यावरण को किसी तरह की कोई हानि नहीं पहुंचाई जाएगी, बल्कि वन्यजीवों के जीवन को प्रभावित किये बिना समांतर व्यवस्था का इंतजाम किया जाएगा.

* पर्यावरण प्रेमियों ने किया स्वागत
मंत्री स्तर के पैनल के निर्णय का पर्यावरण प्रेमियों ने यह कहते हुए स्वागत किया है कि, प्रकृति और संसाधनों को बचाने के लिए यह सकारात्मक कदम है. देबी गोयनका ने कहा कि, वन्यजीव और उनके अधिवास के सामर्थ्य पर ध्यान जाएगा. वन विभाग के ही अनापत्ति से परियोजनाएं आगे नहीं बढेगी. वन्यजीवों की सुरक्षा भी ध्यान में रखी जाएगी. इससे वन्यजीवों की घटती तादाद पर अंकुश लगेगा.

गढचिरोली के मानद वन्यजीव वार्डन उदय पटेल ने अपेक्षा व्यक्त की कि, प्रस्ताव के नियोजन के समय ही उस पर वन विभाग और वन्यजीव का हित सोचकर निर्णय होने से अच्छा रहेगा. पटेल ने यह भी कहा कि, वन्यजीवों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए. इस द़ृष्टि से भी मंत्रिमंडल समिति का निर्णय स्वागत योग्य है. संभावित खतरों को भांपकर ही वन्यजीवो से संबंधित प्रकल्पो को रणनीतिक रुप से मंजूरी दी जानी चाहिए. एक वरिष्ठ वन विभाग अधिकारी ने कहा कि, मानव-वन्य प्राणी संघर्ष की परिस्थिति टालने के लिए ताजा कदम उन्हें बिल्कुल सही लग रहा है. वन विभाग संरक्षण स्तर पर ही ऐसे प्रकल्पो का निपटारा होना चाहिए.

महाराष्ट्र में गत कुछ वर्षो में अनेक प्रकल्पो के काम वन विभाग से मंजूर हो गए थे. किंतु बाघ कारिडोर की सुरक्षा और संरक्षण की द़ृष्टि से वन्यजीव विभाग द्वारा उसे मंजूर करना आवश्यक है. उल्लेखनीय है कि, अमरावती जिले का चिखलदरा का महत्वाकांक्षी प्रकल्प वन विभाग की मंजूरी के कारण अधबीच में लटका है. इसका काम महिनों से रुका पडा है.

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