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सात्विक मार्ग से संपत्ति निर्मिति का लक्ष्य महत्वपूर्ण

संपादक गिरीष कुबेर का प्रतिपादन

* लाइव टॉक ‘टाटायन’ को किया संबोधित
* शाश्वत, द कन्सेप्ट स्कूल का अनूठा आयोजन
* ‘इंडियन इकॉनॉमी फ्रीडम फायटर’ किताब का भी हुआ विमोचन
अमरावती/दि.19– यद्यपि हमारे देश में गरीबी के उदाप्तिकरण की परंपरा है. परंतु हकीकत यह है कि, संपत्ति निर्मिति के बिना किसी भी देश का समग्र विकास नहीं हो सकता. इस बात को ध्यान में रखते हुए टाटा उद्योग समूह ने सात्विक मार्ग से संपत्ति निर्माण करने के साथ ही वैज्ञानिक संस्थाओं को स्थापित करने के साथ-साथ सामाजिक कामों के क्षेत्र में भी अपना सहयोग प्रदान किया. ऐसे में सात्विक मार्ग से संपत्ति निर्मिति का लक्ष्य महत्वपूर्ण है एवं ‘टाटायन’ नामक किताब की निर्मिति के पीछे भी यहीं प्रेरणा है. इस आशय का प्रतिपादन दैनिक लोकसत्ता के संपादक गिरीष कुबेर द्बारा किया गया है.
स्थानीय शाश्वत कन्सेप्ट स्कूल की ओर से गत रोज संत ज्ञानेश्वर सांस्कृतिक भवन में गिरीष कुबेर के व्याख्यान का आयोजन किया गया था. इस अवसर पर डॉ. अनंत मराठे द्बारा लिखित ‘भारतीय आर्थिक स्वाधीनता संग्राम के योद्धा’ किताब के शाश्वत के विद्यार्थियों द्बारा अंग्रेजी में अनुवादित ‘इंडियन इकॉनॉमी फ्रीडम फायटर’ नामक किताब का प्रकाशन व विमोचन भी किया गया. इस अवसर पर डॉ. अनंत मराठे सहित डॉ. मोहना कुलकर्णी एवं शाश्वत स्कूल के संचालक अतुल गायगोले व अमृता गायगोले प्रमुख रुप से उपस्थित थी.
इस अवसर पर अपने संबोधन में गिरीष कुबेर ने कहा कि, टाटा उद्योग समूह का संघर्ष अपने आप में बेहद विलक्षण है. जमशेदजी टाटा व जेआडी टाटा से लेकर रतनजी टाटा तक पांच पीढियों ने अपने करतूद, लगन एवं विश्वसनीयता के दम पर उद्यमशीलता क्या होती है. यह देश सहित दुनिया को दिखाया. टाटा ने अथाह संपत्ति अर्जित करने के साथ ही उसका विनियोग बेहतरीन पद्धति से कैसे हो सकता है. इसकी शानदार परंपरा भी स्थापित की. जिस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था, उस समय बेहद प्रतिकुल हालात रहने के बावजूद जमशेदजी टाटा ने टाटा उद्योग समूह की नींव रखी और उस समय उन्होंने केवल अपने सीमित दायरे का विचार नहीं किया. बल्कि 100 वर्ष बाद के हालात का अनुमान लगाते हुए नियोजन किया. उनकी इसी विरासत को आगे बढाते हुए आगे की पीढियों ने कदम बढाया. यहीं वजह है कि, उनके बारे में लिखने की मुझे प्रेरणा मिली. टाटा ने लोगों को जोडने का काम किया और विशेषज्ञों को प्रोत्साहन दिया. जिसकी वजह से भारतीय विज्ञान संस्था की स्थापना हो सकी. आज टीसीएस जैसी आईटी कंपनी में 4 लाख से अधिक कर्मचारी कार्यरत है और एयर इंडिया जैसे कंपनी एक बार फिर टाटा उद्योग समूह के पास वापिस आयी है. यह अपने आप में एक काव्यात्मक व न्यायपूर्ण घटना है. उद्योग व व्यापार में नफा नुकसान का विचार किए बिना टाटा उद्योग समूह ने विविध क्षेत्रों में अपना नाम प्रस्थापित किया. मौजूदा दौर में प्रत्येक व्यक्ति अपने सपनों की पूर्तता हेतु जीवन व्यथित करता है. उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए संपत्ति अर्जित व संकलित की जाती है. लेकिन उस संपत्ति का योग्य विनियोग करना भी अपने आप में बेहद जरुरी है.
अपने इस संबोधन में टाटा उद्योग समूह की कार्यशैली व उपलब्धियों का बखान करने के साथ ही गिरीष कुबेर ने डॉ. अनंत मराठे द्बारा लिखित किताब में उल्लेखित आर्थिक मोर्चे के योद्धाओं यानि देश की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करने के साथ ही उसमें अपना योगदान देने वाले 21 उद्योजकों की यशोगाथा का भी गौरवपूर्ण उल्लेख किया.
इस व्याख्यान को सुनने हेतु संत ज्ञानेश्वर सांस्कृतिक भवन का सभागार पूरी तरह से खचाखच भरा हुआ था तथा सहभागार में उपस्थित श्रोताओं ने समाज की विभिन्न क्षेत्रों से वास्ता रखने वाले गणमान्यों की मौजूदगी दिखाई दी.

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