* 7 वर्षों में घटे 35 हजार वृषभराज
अमरावती/दि.26 – विदर्भीय किसानों ने आज भी वृषभराज की महत्ता कायम रखी है. फलस्वरुप पोले के पर्व का उत्साह विदर्भ में ही अधिक दिखाई पडता है. वैसे तो जिले में गत 7 वर्षों में 35 हजार से अधिक संख्या में सर्जाराजा की कमी हो गई है. अभी भी तकरीबन 85 हजार बैलों का खेतीबाडी में यहां के किसान और खेतीहर उपयोग ले रहे है. शुक्रवार को पोेले का पर्व मनाया जा रहा है. प्रदेश के अन्य भागों में बैलों की जगह ट्रैक्टर का प्रचलन बढा है. किसानों का साथी और देवता माना जाता वृषभराज आज पूजा जाएगा.
* पखवाडे भर से तैयारी
पोला त्यौहार मनाने के लिए अमरावती और खासकर पश्चित विदर्भ के किसान 15 दिनों से तैयारी आरंभ कर देते है. सर्जाराजा को सजाने का काम किसान और उनके खेतीहर करते है. बैलों की सजावट के लिए आवश्यक सामग्री बनाते है. अलग-अलग रंगों से सजाने के अलावा काच के मनको की आकर्षक पोषाख किसान अपने साथी बैलों के लिए बनवाता आया है.
* गाजे-बाजे से जुलूस
विदर्भ के किसानों का बैल सबसे बडा साथी माना जाता है, इसलिए पोले के पर्व पर पुरणपोली की परंपरा के साथ ही बैलजोडियों का साज श्रृंगार की भी परंपरा है. इतना ही नहीं घरों पर आम के पत्तों की बंदरवार लगाई जाती है. तथा अनेक भागों में गाजे-बाजे से अपने सजाये हुए बैलजोडियों का जुलूस निकालने का भी उत्साह किसानवर्ग दिखलाता है. बैलों के गले में घुंघरुओं की माला पहनाई जाती है. उसका निनाद अलग ही सुकून देता है.
* शहर में 180 जगहों पर पोला
शहर पुलिस आयुक्तालय अंतर्गत 180 से अधिक स्थानों पर पोला भरने जा रहा है. जिसके लिए पुलिस ने फिक्स प्वाइंट और अन्य बंदाबस्त किये है. बंदोबस्त में 2 पुलिस उपायुक्त, 3 सहायक आयुक्त, 15 निरिक्षक, 32 पीएसआई और 1635 पुलिस जवानों को तैनात किया जा रहा है. पोले के दूसरे दिन ‘कर’ मनायी जाती है. जिसमें झगडे टंटे का अंदेशा रहता है. इसलिए आरसीपी, क्यूआरटी और होमगार्ड पथक पुलिस के सहातार्थ मौजूद रहेंगे. शहर के महत्वूपर्ण चौराहों और भीड-भाड वाली जगहों पर बंदोबस्त तैनात किया गया है. पुलिस सूत्रों ने बताया कि, 12 सीआर मोबाइल वैन लगातार पेट्रोलिंग करेंगी. 7 दामिनी पथक और बीट मार्शल भी हेल्पलाइन वाहन के साथ गश्त पर रहेंगे.
* 35 हजार से घटी संख्या
पशु संवर्धन विभाग के सूत्रों ने बताया कि, 2013 में हुई पशु गणना के समय जिले में 1.20 लाख संख्या बैलों की थी. आखरी पशु गणना 2 वर्ष पहले हुई थी. जिसमें बैलों की तादाद 35 हजार घट कर 85 हजार पर आ गई है. विभाग सूत्रों ने बताया कि, खेतीबाडी में काफी मशीनीकरण हो चला है. जिससे 90 प्रतिशत काम बैलों के बगैर मशीनों से कराये जा रहे है. पशुधन विकास अधिकारी डॉ. सागर ठोसर की माने, तो बैलों के चारे का अभाव भी उनकी संख्या कम करने के पीछे एक बडा कारण है.