चुनाव से पूरी तरह नदारद रहे विदर्भ के प्रमुख मुद्दें
पृथक विदर्भ व किसान आत्महत्या जैसे मुद्दों की की गई अनदेखी
* बढती महंगाई व बेरोजगारी सहित औद्योगिक पिछडेपन पर भी सभी की चुप्पी
अमरावती/दि.19– 20 नवंबर को विधानसभा चुनाव हेतु होने वाले मतदान के लिए सभी राजनीतिक दलों एवं चुनाव लड रहे प्रत्याशियों द्वारा विगत 5 नवंबर से बडे जोर-शोर के साथ अपना चुनावी अभियान शुरु किया गया था. जो 18 नवंबर की शाम 5 बजे तक चला. चूंकि विधायक निर्वाचित होने वाले प्रत्याशियों द्वारा विधानसभा में अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों की समस्याओं को उठाया जाना अपेक्षित रहता है. ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि, सभी प्रत्याशियों द्वारा अपने चुनाव प्रचार में अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों को उठाया जाएगा और उन्हीं मुद्दों के आधार पर चुनाव लडा जाएगा. परंतु देखा गया कि, विधानसभा चुनाव के समय भी स्थानीय मुद्दों की अनदेखी करते हुए राष्ट्रीय मुद्दों सहित जाती व धर्म पर आधारित मुद्दें छाये रहे.
उल्लेखनीय है कि, चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में सभी प्रत्याशियों द्वारा अपने अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास के मुद्दों को लेकर कुछ हद तक बातें व घोषणाएं की गई, लेकिन जब तक इन मुद्दों को लेकर गंभीरता बन पाती, तब तक चुनाव प्रचार का दौर आगे बढते ही सभाएं व रैलियां शुरु होने पर स्थानीय मुद्दें हवा-हवाई हो गये. जिसके बाद देश व दुनिया की बातें जोर पकडने लगे. ज्ञात रहे कि, विदर्भ क्षेत्र को औद्योगिक रुप से काफी हद तक पिछडा माना जाता है. साथ ही इस कुछ जिलों की पहचान किसान आत्महत्याग्रस्त जिलों के तौर पर है. जिनमें अमरावती जिले का नाम सबसे प्रमुख कहा जा सकता है. लेकिन इसके बावजूद विदर्भ का विकास करने और किसान आत्महत्याओं को रोकने हेतु किये जाने वाले उपायों को लेकर चुनाव प्रचार के दौरान कही कोई चर्चा व विमर्श दिखाई नहीं दिये.
ज्ञात रहे कि, नैसर्गिक संसाधनों से भरपूर रहने वाले विदर्भ क्षेत्र को महाराष्ट्र से अलग कर स्वतंत्र राज्य बनाये जाने का मुद्दा विगत लंबे समय से अधर में लटका हुआ है. जिसे लेकर हर बार विधानसभा के शीतसत्र दौरान अथवा लोकसभा या विधानसभा चुनाव के आते ही जमकर चर्चाएं चलती है. लेकिन इसके बाद ऐसी तमाम चर्चाएं ठंडे बस्ते में चली जाती है. ज्ञात रहे कि, महाराष्ट्र में सर्वाधिक बिजली उत्पादन विदर्भ क्षेत्र में ही होता है. क्योंकि इस क्षेत्र में कोयले की खदाने और विद्युत कारखाने सबसे अधिक है. जिसके चलते मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र को बिजली की आपूर्ति होती है. लेकिन इसके बावजूद विदर्भवासियों को काफी उंचे दामों पर बिजली खरीदनी पडती है. जिसके चलते विदर्भ क्षेत्र का अपेक्षित तरीके से औद्योगिक विकास भी नहीं हो पाया है. ऐसे में विदर्भ क्षेत्र के पढे-लिखे युवाओं के लिए अपने ही शहर व परिसर में रोजगार की संभावनाएं काफी कम है. जिसकी वजह से उन्हें मुंबई व पुणे जैसे महानगरों का रास्ता पकडना पडता है. इन तमाम मुद्दों को लेकर भी इस बार विधानसभा चुनाव में कही कोई चर्चा सुनाई नहीं दी.
उल्लेखनीय है कि, नागपुर के अलावा विदर्भ क्षेत्र के शेष जिलों के औद्योगिक क्षेत्र काफी हद तक सुनसान ही पडे है. कहने को वहां पर कुछ औद्योगिक इकाईयां है. लेकिन उन्हें सूक्ष्म व मध्यम औद्योगिक यूनिट ही कहा जा सकता है और अब तक विदर्भ क्षेत्र में बडे व नामांकित उद्योग समूह के प्रकल्प साकार नहीं हुए है. इसके पीछे सबसे प्रमुख वजह विदर्भ क्षेत्र के कई जिलों में अन्य क्षेत्रों के साथ कनेक्टीविटी की सुविधा उपलब्ध नहीं रहने को कहा जा सकता है. उदाहरण के तौर पर अमरावती के बेलोरा विमानतल का नाम लिया जा सकता है. जो विगत डेढ दशक से हवाई उडानों के शुरु होने की प्रतीक्षा कर रहा है और अक्सर ही बेलोरा विमानतल से हवाई उडानों के शुरु होने को लेकर ‘तारीख पर तारीख’ मिलती रहती है. लेकिन हकीकत में बेलोरा विमानतल से नियमित हवाई उडाने कब शुरु होगी, यह अब तक निश्चित नहीं हो पाया है. नागपुर को छोडकर विदर्भ क्षेत्र के अमरावती सहित अन्य जिलों में भी विमानतल एवं एयर कनेक्टीविटी की सुविधा उपलब्ध नहीं है. साथ ही कई जिले रेल्वे के नक्शे पर नहीं है. ऐसे में आवागमन एवं माल ढुलाई की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं रहने के चलते विदर्भ क्षेत्र का अपेक्षित औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है. जिसके बारे में लोकसभा चुनाव सहित इस समय हो रहे विधानसभा चुनाव में कोई चर्चा सुनाई नहीं दी.
इन सबके साथ ही विदर्भ क्षेत्र, विशेषकर अमरावती संभाग के 5 जिलों का समावेश रहने वाले पश्चिम विदर्भ किसान आत्महत्याओं को लेकर राज्य सहित समूचे देश में काफी हद तक कुख्यात रहा है. किसान आत्महत्याओं की समस्या विगत करीब दो दशकों से बनी हुई है और अलग-अलग सरकारों द्वारा घोषित पैकेज भी किसानों की आत्महत्याओं को रोक पाने में नाकाम साबित हुए है. जिसका सीधा मतलब है कि, इस समस्याओं को रोकने और अन्नदाता कहे जाते किसानों की जिंदगियों को बचाने हेतु ठोस व प्रभावी उपाय किये जाने की जरुरत है. लेकिन इस महत्वपूर्ण विषय की भी विधानसभा चुनाव के प्रचार दौरान साफ तौर पर अनदेखी की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर चुनाव लडने वाले प्रत्याशियों द्वारा किस तरह के विकास, जनसेवा व जनहित की बातें की जाती है.