* 700 वर्ष पुराना स्वरुप साकार
सोलापुर/दि.31– समिपस्थ श्री क्षेत्र पंढरपुर स्थित विठ्ठल मंदिर का जतन व संवर्धन करने हेतु फिलहाल 73 करोड रुपयों के विकास प्रारुप का काम चल रहा है. जिसके तहत इस मंदिर को पुरातन स्वरुप प्रदान किया गया है. जिसके चलते अब इस मंदिर का 700 वर्ष पुराना स्वरुप साकार हुआ है. ऐसे में यहां आने वाले भाविक श्रद्धालुओं को यह मंदिर सीधे 700 वर्ष पहले लेकर जा रहा है.
श्री विठ्ठल रुख्मिणी मंदिर संवर्धन व जीर्णोद्धार के काम सरकारी निधि से पुरातत्व विभाग की देखरेख के तहत चल रहे है. जिसके तहत श्री विठ्ठल मंदिर के गर्भगृह व श्री रुख्मिणी मंदिर के गर्भगृह के संवर्धन का काम विगत 15 मार्च से शुरु किया गया है. मंदिर में स्थित सभी कमानों व दरवाजों पर लगी चांदी को निकाल दिये जाने के चलते मंदिर का पुरातन स्वरुप उभरकर सामने आया है. उसके साथ ही इस समय श्री विठ्ठल व श्री रुख्मिणी की मूर्तियों के पीछे प्रभावल व मेघडंबरी के काम पूर्ण नहीं होने के चलते इस समय गर्भगृह में केवल श्री विठ्ठल व श्री रुख्मिणी की ही मूर्ति है. जिन्हें देखते हुए सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि, करीब 700 वर्ष पहले इस मंदिर का असल स्वरुप क्या रहा होगा. वहीं आषाढी एकादशी के पहले दोनों मूर्तियों पर मेघडंबरी व गर्भगृह के चांदी की परत लगाने का काम पूरा कर लिया जाएगा.
* गर्भगृह दिखा खुला-खुला
श्री रुख्मिणी विठ्ठल मंदिर के गर्भगृह के छायाचित्र अब सामने आये है. जिनमें पूरी तरह पत्थरों से निर्मित दीवारों तथा पत्थर से निर्मित शिखर दिखाई देता है. इस गर्भगृह को देखने पर अनुमान लगाया जा सकता है कि, पुरातन काल के दौरान यह मंदिर कैसा दिखाई देता होगा. विठ्ठल मंदिर के गर्भगृह के साथ ही चौखांबी व सोलखांबी तथा रुख्मिणी माता मंदिर का गर्भगृह भी अपने मूलस्वरुप में दिखाई दे रहा है.
* रविवार से पदस्पर्श दर्शन
जतन व संवर्धन के कामों हेतु विठ्ठल मंदिर में पदस्पर्श दर्शन को बंद रखा गया था और रोजाना केवल 5 घंटे के लिए मुख दर्शन की सुविधा उपलब्ध कराई गई थी. परंतु अब जतन व संवर्धन के पहले चरण का काम पूरा होने में है. इसके चलते 2 जून से भाविकों को पदस्पर्श दर्शन करने का लाभ मिलेगा. मंदिर संवर्धन के कामों हेतु तथा आषाढी यात्रा पूर्व नियोजन को लेकर बैठकों का आयोजन किया गया था. वहीं अब मंदिर में चल रहे काम पूर्ण होने की ओर अग्रसर है, ऐसी जानकारी समिति के सहअध्यक्ष गहीनीनाथ महाराज औसेकर द्वारा दी गई.