मेलघाट में क्यों नहीं रुक रही बाल मौतें?
आखिर समस्या का क्यों नहीं निकल रहा कोई समाधान?
* स्वास्थ्य के साथ ही सडक, रोजगार व शिक्षा पर कब दिया जाएगा ध्यान?
अमरावती/दि.1 – आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में विगत ढाई दशकों से कुपोषण व बाल मौतों की समस्या जस की तस बनी हुई है और विगत एक वर्ष के दौरान मेलघाट में 175 बाल मौते दर्ज की गई है. यह मौतें कुपोषण से नहीं हुई, ऐसा दावा स्वास्थ्य महकमें द्बारा किया गया है. जिससे यदि सच भी मान लिया जाए, तो भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि, जिले की अन्य तहसीलों की तुलना में मेलघाट में बाल मौतों का प्रमाण अधिक है. ऐसे में यह सवाल उपस्थित होता है कि, आखिर मेलघाट में बाल मौतें होने का सिलसिला कब रुकेगा और इस समस्या का स्थायी समाधान कब तक निकल पाएंगा.
बता दें कि, कुछ वर्ष पहले सरकार ने ‘मिशन मेलघाट’ नामक महत्वाकांक्षी प्रकल्प शुरु किया था. वहीं इस समय ‘मिशन-28’ नामक अभियान चलाया जा रहा है. साथ ही मेलघाट में व्याप्त कुपोषण और इससे होने वाली बाल मौतों से संबंधित मामलों को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं दाखिल की गई थी. जिन पर सुनवाई करते हुए अदालत ने समय-समय पर आवश्यक उपाय योजनाओं पर अमल के दिशा-निर्देश जारी किए थे. लेकिन इसके बावजूद भी अब तक मेलघाट से कुपोषण व बाल मौतों की समस्याएं दूर नहीं हुई है. ऐसे मेें यह बेहद जरुरी हो गया है कि, मेलघाट में स्वास्थ्य संबंधित सुविधाओं के साथ-साथ सडक व संचार, रोजगार तथा शिक्षा जैसे विषयों की ओर भी ध्यान दिया जाए.
उल्लेखनीय है कि, धारणी व चिखलदरा इन दो तहसीलों को मिलीकर बना मेलघाट का पर्वतीय इलाका करीब 25 वर्ष पहले कुपोषण की वजह से चर्चा में आया था. स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी रास्तों की दुरदशा, अंधश्रद्धा व बालविवाह जैसी कई समस्याएं सामने रहने के साथ ही सरकारी महकमों की अनेदखी के चलते यह मामला गंभीर होता चला गया. इससे निपटने के लिए सरकार ने कई उपायों पर अमल भी किया. लेकिन मूल समस्याएं अब भी कायम है. आज भी मेलघाट के दुर्गम आदिवासी गांवों तक पहुंचने के लिए अच्छे रास्ते नहीं है और बालविवाह की प्रथा अब भी चल रही है. इसके अलावा किसी भी बच्चे के बीमार पडने पर उसे दवाखाने ले जाने की बजाय भुमका यानि मांत्रिक की मदद ली जाती है. साथ ही अस्पतालों में प्रसूति कराने की बजाय गर्भवती महिलाओं की प्रसूति घर पर ही की जाती है. इन सबके साथ ही स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध नहीं रहने के चलते यहां के आदिवासी रोजगार की तलाश में अन्य शहरों व राज्यों में स्थलांतरीत होते है. इन सबकी वजह से छोटे बच्चों तथा गर्भवती व नवप्रसूता महिलाओं के हाल-बेहाल होते है. इन सबके अलावा एक दर्जन से अधिक उपाय योजनाएं रहने पर भी सरकारी विभागों में आपसी समन्वय का अभाव रहना भी सबसे बडी समस्या है. जिससे निपटना सबसे ज्यादा जरुरी है.
* कौनसी सरकारी उपाय योजनाएं है
बीमार रहने वाले नवजात बच्चों के इलाज हेतु विशेष कक्ष (एसएनसीयू), नवजात शिशु स्थिरीकरण कक्ष (एनबीएसयु), ग्राम बालविकास केंद्र (वीसीडीसी), प्राथमिक केंद्र स्तर पर बाल उपचार केंद्र (सीटीसी), पोषण पुनर्वसन केंद्र (एनआरसी), राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के साथ ही जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, मानव विकास कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मातृवंदना योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान व नवसंजीवनी योजनाओं के तहत मातृत्व अनुदान योजना और उडनदस्ता अभियान व दाई बैठक योजना जैसे विभिन्न उपायों पर अमल किया जा रहा है.
* क्या कहते हैं सरकारी आंकडे?
मेलघाट में 6 फीसद प्रसूतियां घर पर ही होती है तथा 0 से 5 वर्ष आयु गुट में होने वाली बाल मौतों में से पहले 28 दिन में होने वाली ूमौतों का प्रमाण 52 फीसद है. इसके साथ ही 29 दिन से एक वर्ष की कालावधि में 27 फीसद तथा 1 से 5 वर्ष आयु गुट में 21 फीसद बाल मौतें होती है. मेलघाट में अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के दौरान 71 नवजात तथा 175 बाल मौते दर्ज हुई है. स्वास्थ्य सुविधा बढाने की दृष्टि से 2 ग्रामीण रुग्णालय, 4 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व 13 उपकेंद्र नये सिरे से मंजूर किए गए है. साथ ही धारणी उपजिला अस्पताल का श्रेणी वर्धन करते हुए इसे 100 बेड वाला अस्पताल बनाने को मान्यता दी गई है.
* विशेषज्ञ डॉक्टरों की क्या है स्थिति?
धारणी उपजिला अस्पताल सहित चिखलदरा व चुरणी के ग्रामीण अस्पतालों के पोषण पुनर्वसन केंद्र में एक-एक के हिसाब से कुल 3 आहार विशेषज्ञों के पद मंजूर है और इस समय 2 आहार विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे है. इसके साथ ही स्वास्थ्य केंद्रों में 3 ठेका नियुक्त व 2 प्रति नियुक्ति पर नियुक्त 2 स्त्री रोग विशेषज्ञ व 2 बालरोग विशेषज्ञ कार्यरत है. राज्यस्तर से ग्रामीण अस्पताल व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रोटेशन पद्धति के तहत 15 दिनों के लिए 13 स्त्री रोग विशेषज्ञ व 13 बालरोग विशेषज्ञ नियुक्त किए जाते है. जिसमें से फिलहाल यहां पर 8 स्त्री रोग विशेषज्ञ व 7 बालरोग विशेषज्ञ अपनी सेवाएं दे रहे है. यहां पर हमेशा ही डॉक्टरों की कमी महसूस होती है. कई स्थानों पर डॉक्टरों के रहने हेतु आवास की व्यवस्था नहीं है. जिसके चलते शहरी क्षेत्र से वास्ता रखने वाले डॉक्टर इस दुर्गम व पहाडी इलाके मेें काम करने हेतु आना ही नहीं चाहते.
* क्या हैं मेलघाट में बाल मौतों के आंकडें
मेलघाट में वर्ष 1999 से अब तक करीब 10 हजार के आसपास बाल मौतें हो चुकी है. वर्ष 2009-10 में 0 से 6 वर्ष आयु गुट में 570 बाल मौतें हुई थी, जो वर्ष 2013-14 तक घटकर 338 तक पहुंची. वर्ष 2015-16 में केवल 283 बाल मौतें हुई थी. परंतु वर्ष 2016-17 में एक बार फिर संख्या में उछाल आया और 407 बाल मौतें हुई. जिसके बाद वर्ष 2018-19 में 309, वर्ष 2019-20 में 246, वर्ष 2020-21 में 213, वर्ष 2021-22 में 195 तथा वर्ष 2022-23 में 175 बाल मौतें होने की जानकारी दर्ज हुई है.