चने पर ‘खुजा,मुलकूज और मर’ रोग का प्रकोप
फफूंद, विषाणुजन्य रोगों का प्रादुर्भाव

* व्यवस्थापन की कमी से उपज में कमी
अमरावती/दि.3 – रबी सत्र में चने की फसल सबसे ज्यादा होती है. चूंकि यह फसल वर्तमान में फफूंद और विषाणुजन्य ऐसे ‘खुजा, मुलकूज और मर’ आदि रोगों का प्रादुर्भाव होता रहने से एकात्मिक व्यवस्थापन करना महत्व का है. अन्यथा औसतन उत्पादन में कमी आने की संभावना रहने की बात कृषि विभाग ने कहीं.
इस वर्ष जिले में रबी सत्र का औसत क्षेत्र पर डेढ लाख हेक्टेअर है. इसमें से कम से कम 1 लाख हेक्टेअर में चने की फसल बोई गई हैं. इस वर्ष मिट्टी की नमी में मात्रा अधिक होने के कारण, घरेलू बिजों से बीजोपचार न होने के कारण काली जमीन क्षेत्रों में वर्तमान में ‘मर’ रोग का प्रादुर्भाव देखा जा रहा हैं. मर यह रोग फ्यूझारियम नामक मिट्टी में रहनेवाले फफूंद के कारण होता हैं. इस रोग से 10 से 100 प्रतिशत तक उत्पादन में कमी आती हैं. इस लिए इस रोग का प्रबंध आवश्यक हैं. यह रोग फसल की सभी वृध्दि अवस्थाओं में पाया जाता है. कृषि विभाग के अनुसार यह फफूंद पौधे में प्रवेश करने के बाद धीरे-धीरे पेड में बढता है. संक्रमित पेडों की पत्तियां पीली होकर मुरझा जाती है और उपरी भाग सड जाते है. पेडों को देखे तो मिट्टी का कुछ हिस्सा पतला हो गया है. जब फूल आने के समय यह रोग फैलता है तो एक-एक पेड सूखने लगते हैं. खेत के एक विशेष भाग में ऐसे अनेक पेड सूखे पडे दिखाई देते हैं. कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि यदि आप पेड की जड से एक सीधी रेखा ले तो वहां एक काले रंग की सीधी रेखा दिखाई देती हैं.
* मूलकूज रोग का भी हमला बढा
लक्षण: इस रोग का प्रादुर्भाव अंकुर अवस्था में अधिक फैलता हैं. पहले पत्तियां पीली पड जाती है. फिर पूरा पौधा पीला पड जाता है. रोगग्रस्तों पौधों को उखाडने पर तने और मूलवृंत पर मिट्टी के पास सफेद फफूंद लग जाती है. इसके लिए फसल चक्र अपनाना आवश्यक है. कृष्षि विभाग की सलाह के अनुसार विशिष्ट बिजों का प्रयोग करना चाहिए.
* बुबाई के पूर्व बीज प्रक्रिया आवश्यक
बुलाई से पहले बीज टेबूकॉनेजोल 5.4 प्रतिशत डब्ल्यूडब्ल्यूएफएस फफूंद नाशक के साथ 4 मिली प्रति 10 किलोग्राम बीज के साथ 40 ग्राम ट्रायकोडर्मा प्रति 10 किलो बीज के मुताबिक बीज प्रक्रिया करे अथवा प्रोक्लेमेशन 5.7 प्रतिशत टेबूकोनेजॉल 1.4 प्रतिशत, डब्ल्यूडब्ल्यू इ.स.(0.180.45) 3 मिली प्रति 10 किलो बीज के मुताबिक, अधिक 40 ग्राम ट्रायकोडर्मा प्रति 10 किलो बीज के मुताबिक बीज प्रक्रिया करें.
* मावा व टूड्डू के कारण खुजली
यह रोग चना क्लोरेंटीक डॉर्फ वायरस के कारण होता है और एफिड्स तथा टूड्डू द्बारा फैलता है. इस रोग के कारण चने की देसी किस्म के पत्ते लाल दिखाई देते हैं. जबकि काबूली किस्म के पत्ते पीले दिखाई देते है. पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है. शाखाओं पर दो डंडो के बीज की दूरी कम हो जाती है. पेड की वृध्दि रूक जाती है. संक्रमित पेड पर फूलो और फलों की संख्या बहुत कम होती है. सितंबर में बोए गए खेतों में इस रोग का प्रकोप अधिक पाया गया है.





