कवि साजन दुबे के काव्यसंग्रह ‘अनुगूँज’ का हुआ शानदार विमोचन
वरिष्ठ कवियित्री रजनी राठी की अध्यक्षता में धनवंती घुंडियाल के हाथों पुस्तक हुई विमोचित

* सभी उपस्थितो ने काव्यसंग्रह में संकलित रचनाओं को सराहा
* आत्मिक अनुभूतियों से सराबोर बताया साजन दुबे की कविताओं को
अमरावती /दि.23 – विगत 50 दशकों से अधिक समय से अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोकर काव्य रचनाएं करते हुए साहित्य की मौन साधना कर रहे वरिष्ठ कवि रामसजीवन दुबे ‘साजन’ की कुछ चुनिंदा रचनाओं को संकलित कर तैयार किए गए ‘अनुगूँज’ नामक काव्यसंग्रह का विगत रविवार 20 जुलाई को समारोहपूर्वक विमोचन किया गया. 20 जुलाई को कवि साजन दुबे के 75 वें जन्मदिवस का औचित्य साधते हुए आयोजित इस विमोचन समारोह में शहर सहित जिले के साहित्य जगत की सबसे वरिष्ठ सदस्या एवं ख्यातनाम मराठी-हिंदी कवियित्री श्रीमती रजनी राठी की अध्यक्षता के तहत श्रीमती धनवंतीदेवी गुरुमुखदास घुंडियाल के हाथों ‘अनुगूँज’ काव्यसंग्रह का विमोचन किया गया. इस अवसर पर सभी उपस्थितों ने इस काव्यसंग्रह की संरचना एवं इसमें शामिल रचनाओं की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुए कवि साजन दुबे की कविताओं को मानवीय संवेदनाओं एवं आत्मिक अनुभूतियों से सराबोर बताया. साथ ही सभी ने कवि साजन दुबे को उनके 75 वें जन्मदिवस पर बधाई देने के साथ ही उनका अभिनंदन व सत्कार किया. साथ ही उन्हें स्वस्थ व दीर्घायु जीवन हेतु अपनी शुभकामनाएं दी.
स्थानीय पुराना बाईपास रोड पर चैतन्य कॉलोनी परिसर स्थित मुंगसाजी माऊली सभागृह में विगत रविवार की दोपहर 2 बजे वरिष्ठ कवियित्री श्रीमती रजनी राठी की अध्यक्षता के तहत आयोजित इस विमोचन समारोह में बतौर प्रमुख अतिथि ‘अनुगूँज’ के रचनाकार कवि साजन दुबे, श्रीमती धनवंती घुंडियाल, श्री सरयूपारिण ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष डॉ. सतीश तिवारी, वरिष्ठ साहित्यकार पवन नयन जायसवाल, सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ‘निर्दोष’ व सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ मंच पर विराजमान थे. इस कार्यक्रम के प्रारंभ में सर्वप्रथम गणमान्य अतिथियों के हाथों दीप प्रज्वलन करते हुए मां सरस्वती की प्रतिमा का पूजन किया गया. जिसके उपरांत मंच पर विराजमान सभी गणमान्य अतिथियों का आयोजकों की ओर से भावपूर्ण सत्कार किया गया. जिसके पश्चात सभी गणमान्य अतिथियों के हाथों ‘अनुगूँज’ काव्यसंग्रह की प्रतिलिपियों का विमोचन किया गया. जिसका सभागार में उपस्थित साहित्य प्रेमियों करतल ध्वनि के साथ स्वागत किया. इस अवसर गणमान्य अतिथियों के हाथों ‘अनुगूँज’ के प्रकाशक एवं मेधा पब्लिकेशन के संचालक संजय महल्ले का भावपूर्ण सत्कार किया गया. साथ ही इस समय काव्यसंग्रह के विमोचन एवं 75 वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में कवि साजन दुबे का भी अभिनंदन व सत्कार किया गया.
इसके उपरांत कवि साजन दुबे के साथ विगत करीब 35 वर्षों से जुडे रहनेवाले वरिष्ठ कवि पवन नयन जायसवाल ने इस आयोजन की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि, जीवन की यात्रा में आनेवाले विभिन्न पडावों, उन पडावों पर मिलनेवाले सुख-दुख की अनुभूति के हस्ताक्षर और उन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की अनुगूँज इस ‘अनुगूँज’ नामक काव्यकृति में समाहित है. विगत करीब 50 वर्षों से काव्य की मौनसाधना कर रहे रामसजीवन दुबे ‘साजन’ का यह प्रथम काव्यसंग्रह मखमली रिश्तों एवं कोमल भावनाओं के साथ बंधे जीवन की अनुभूति है.
इसके साथ ही विगत करीब 56 वर्षों से कवि साजन दुबे के साथ मुंहबोले भाई-बहन के रिश्ते में रहनेवाली और इस रिश्ते को सगे रिश्ते से भी अधिक निभानेवाली श्रीमती धनवंतीदेवी घुंडियाल ने विमोचक के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, खून के रिश्तों से ज्यादा मार्मिक रिश्तों की अहमियत होती है और उन्हें बेहद खुशी है कि, विगत 56 वर्षों से उनके साथ भाई-बहन के मार्मिक रिश्ते में रहनेवाले साजन दुबे ने आज अपने जीवन के 75 वसंत पूरे कर लिए हैं. साथ ही अपने जीवनकाल के दौरान लिखी कविताओं को काव्यसंग्रह के तौर पर संकलित कर प्रकाशित किया है, जिसका विमोचन करने हेतु साजन दुबे द्वारा उनके नाम पर विचार करना उनके लिए विशेष अनुभूति वाला पल रहा और अपने भाई के इस काव्यसंग्रह का अपने हाथों विमोचन करते हुए वे गद्गद् हो गई हैं. साथ ही अपने खुशी के आंसूओं को रोक नहीं पा रही हैं.
इस अवसर पर ‘अनुगूँज’ के रचयिता रामसजीवन दुबे ‘साजन’ ने अपनी काव्य यात्रा एवं अपने पहले काव्यसंग्रह ‘अनुगूँज’ को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, आज उनके जीवन का सबसे बडा दिन और सबसे बडी खुशी का पल है, जिसे सभागार में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति ने अपनी उपस्थिति से अविस्मरणीय बना दिया है. अपनी काव्यसाधना पर प्रकाश डालते हुए कवि साजन दुबे ने कहा कि, उन्होंने हमेशा वियोग श्रृंगार विधा के साथ काव्यरचना की और उनकी सभी कविताएं एक तरह से उनकी अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने का जरिया रही, जिससे उन्हें आत्मसंतुष्टि मिला करती थी. उन्होंने कभी भी अपनी कविताओं को सार्वजनिक करने या प्रकाशित करने के बारे में सोचा भी नहीं था. परंतु विगत कुछ समय से अपने संपर्क में आए नई पीढी के साहित्यकारों व हितचिंतकों के आग्रह पर उन्होंने अपनी कुछ चुनिंदा कविताओं को प्रकाशन हेतु संकलित किया, जो आज ‘अनुगूँज’ के रुप में आप सभी के सामने है.
इस अवसर पर बतौर प्रमुख अतिथि उपस्थित पेशे से चिकित्सक एवं कवि हृदय रखनेवाले श्री सरयूपारिण ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष डॉ. सतीश तिवारी ने कवि साजन दुबे को उनके 75 वें जन्मदिवस एवं ‘अनुगूँज’ काव्यसंग्रह के प्रकाशन पर बधाईयां देते हुए कहा कि, कवि साजन दुबे को समाजबंधु होने के नाते वे विगत कई वर्षों से जानते हैं. कवि साजन दुबे ने बेहद विपरित स्थितियों का सामना करते हुए संघर्षपूर्ण जीवन बिताया है और जीवन के तमाम उतार-चढाव से होकर गुजरते हुए उन्होंने अपने भीतर एक संवेदनशील कवि को भी जीवित रखा और आज जीवन एवं रिश्तों की अनुभूतियों से सजा ‘अनुगूँज’ काव्यसंग्रह हम सभी के सामने प्रस्तुत किया, यह अपने-आप में सबसे बडी बात है, जिसके लिए कवि साजन दुबे बधाई एवं अभिनंदन के पात्र हैं.
साथ ही साथ इस समय बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ‘निर्दोष’ ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कवि साजन दुबे को 75 वें जन्मदिवस एवं उनके प्रथम काव्यसंग्रह के प्रकाशन के लिए बधाई व शुभकामनाएं देते हुए कहा कि, कवि साजन दुबे की रचनाएं नई पीढी के साहित्यकारों को प्रेरणा देने का काम करेगी. साथ ही साहित्य जगत में ‘अनुगूँज’ नामक यह काव्यसंग्रह मील का पत्थर साबित होगा. इसके अलावा सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था की सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ ने कवि साजन दुबे एवं उनकी साहित्यिक रचनाओं को नई पीढी के साहित्यकारों एवं साहित्य जगत के लिए दीपस्तंभ बताते हुए कहा कि, ‘अनुगूँज’ में प्रकाशित प्रत्येक रचना अपने-आप में किसी रत्न की तरह है और हर रचना एक अलग तरह की अनुभूति कराती है.
इस समारोह के अंत में वरिष्ठतम कवियित्री श्रीमती रजनी राठी ने अपने अध्यक्षीय संबोधन के तहत कहा कि, शास्त्रों के मुताबिक शब्द ही ब्रह्म और शब्द ब्रह्म की उपासना हमारे जीवन को संवार लेती है. शब्द एक तरह से मानवीय जीवन की भावनाओं का प्रकृतिकरण करने का एकमात्र साधन हैं, फिर चाहे हम बोलकर अपनी भावनाएं प्रकट करें या फिर लिखकर अपनी भावनाओं को प्रस्तुत करें. इसमें से लिखकर भावनाओं को प्रकट करने का तरीका ज्यादा प्रभावी होता है, क्योंकि उसे बार-बार पढकर समझा जा सकता है. ऐसे में विगत 50 वर्षों के दौरान कवि साजन दुबे ने अपनी भावनाओं को जिस तरह से शब्दो में पिरोकर काव्यरचना की, उन सभी रचनाओं को आज पढकर मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं का अनुभव करना एकतरह से अतीत की अनुगूँज है. जिससे हम सभी को परिचित कराने के लिए ‘अनुगूँज’ के रचयिता व कवि साजन दुबे वाकई बधाई व अभिनंदन के पात्र हैं, जिन्होंने नई पीढी के समक्ष साहित्य विधा का एक खजाना खोल दिया है तथा नई पीढी के साहित्यकारों को विशुद्ध हिंदी व कई ऐसे शब्दों से परिचित कराया है, जिनका इन दिनों साहित्य रचना में अमुमन प्रयोग नहीं होता.
इस विमोचन समारोह में बेहद प्रभावी व शानदार सूत्रसंचालन कवि संतोष हांडे ने किया तथा वरिष्ठ पत्रकार व कवि चंद्रप्रकाश दुबे ‘असीम’ ने आभार प्रदर्शन करते हुए इस आयोजन को सफल बनाने हेतु प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से सहयोग प्रदान करते हुए सभी गणमान्यों एवं कार्यक्रम में उपस्थित सभी साहित्यप्रेमियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की. इस अवसर पर पं. रामलखन दुबे, एड. नरेंद्र दुबे, अनिरुद्ध तिवारी, वरिष्ठ साहित्यकार प्रा. बाबा राऊत, सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के पूर्व अध्यक्ष शंकर भूतडा व कोषाध्यक्ष मनोहर तिखिले, ख्यातनाम काटूनिस्ट व विधिज्ञ एड. सतीश उपाध्याय, कवि प्रीतम जौनपुरी, मोतीराम हरजीकर, सुधाकर पोकले, गजानन कुलकर्णी, विनोद अग्रवाल, डॉ. नितिन श्रीरामवार, मुजीब आलम, एड. संतोष राऊत, एड. राजेंद्र बारड, वसंत पाटिल, राजेश महल्ले, चंदभूषण किल्लेदार, हनुमान गुजर, सतीश आंबेकर ‘रत्न’, प्रा. राजीव शिंदे, सुभाष काले, पत्रकार सुधीर जोशी व राजलक्ष्मी केशरवानी, सुनील केशरवानी, पिंकी घुंडियाल, निलिमा भोजने, लक्ष्मीकांत खंडेलवाल, शालिका जायसवाल, मंजू शर्मा, किरण मिश्रा, प्रमिला किल्लेदार, अनु साहू, दीपक दुबे ‘अकेला’, राजेश शर्मा, सत्यप्रकाश गुप्ता, अलका देवरणकर, मोबीन खान, मनोज मद्रासी, राजेश सोजरानी, सुबहान जैदी, मोहन पुरोहित, प्रा. डॉ. संजय खडसे, दीपक सूर्यवंशी, प्राचार्य डॉ. गोपीचंद मेश्राम, शिवा प्रधान, डॉ. जी. एम. भस्मे, रेषा आकोटकर, सुरेश आकोटकर, अभिनंदन पेंढारी व पुरुषोत्तम मुंधडा आदि सहित अनेकों गणमान्य एवं साहित्यप्रेमी उपस्थित थे.





