महायुति व महाविकास आघाडी में ‘फोडा-फोडी’ की राजनीति

अमरावती मनपा के चुनाव को लेकर तपने लगी राजनीति

* इच्छुकों व राजनीतिक दलों द्वारा नए समिकरणों पर विचार
अमरावती/दि.6 – अमरावती महानगर पालिका के चुनाव हेतु बहुसदस्यीय प्रारुप प्रभाग रचना घोषित होने के बाद राजनीतिक गतिविधियां तेज होनी शुरु हो गई है. किसी प्रभाग में कोई नया हिस्सा जोडा गया है, तो कहीं पर किसी के पारंपरिक क्षेत्र का विभाजन हुआ है. जिसके चलते चुनाव लडने के इच्छुक जिम्मेदारों सहित राजनीतिक दलों द्वारा अब नए-नए समिकरणों पर विचार किया जा रहा है. इस प्रभाग रचना के बाद महायुति व महाविकास आघाडी में ‘फोडा-फोडी’ वाली राजनीति और भी जमकर तपनेवाली है. चुनाव जीतने की क्षमता रहनेवाले प्रत्याशियों को हर तरह की ‘रसद आपूर्ति’ करते हुए अपनी ओर खींचने की हलचलें तेज हो गई है और प्रभाग रचना के बाद नई रणनीति की भी रुपरेखा तय की जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, करीब 8 वर्ष के बाद अमरावती महानगर पालिका के चुनाव होने जा रहे है और इस दौरान अमरावती शहर में राजनीतिक समिकरण व हालात पूरी तरह से बदल गए है. इन्हीं 8 वर्षों के दौरान राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व शिवसेना के दो-दो धडों में बंट जाने की वजह से राजनीतिक स्थिति पूरी तरह से बदल गई है. पिछली बार मनपा चुनाव के समय पूर्व राज्यमंत्री डॉ. सुनील देशमुख के पास भाजपा का नेतृत्व था, जो अब कांग्रेस में है. साथ ही अब भाजपा के पूरे सूत्र पूर्व सांसद नवनीत राणा के पास आ गए है. वहीं अजीत पवार गुट वाली राकांपा के पास विधायक द्वय संजय खोडके व सुलभा खोडके की ताकत है. इसी तरह शिंदे गुट वाली शिवसेना ने पूर्व राज्यमंत्री जगदीश गुप्ता को पार्टी में शामिल करते हुए अपने दायरे को बढाने का प्रयास किया है. जबकि शिवसेना उबाठा सहित शरद पवार गुट वाली राकांपा को नए सिरे से अपना संगठन खडा करना पड रहा है.
एक-दूसरे के संगठन व दल में सेंध लगाने की राजनीति इससे पहले ही शुरु हो गई है. जिसके आगामी समय में और भी अधिक तेज होने के पूरे आसार है. राजनीतिक ताकत व पैसा देनेवाली पार्टी में ही प्रवेश करने का प्रयास कई इच्छुकों द्वारा किया जा रहा है. साथ ही साथ कई पार्टियों द्वारा भी प्रभावी प्रत्याशियों को अपने पाले में आने के लिए मनाया जा रहा है. कुल मिलाकर इस चुनाव में महायुति और महाविकास आघाडी के बीच ही राजनीतिक संघर्ष होने के पूरे आसार है. साथ ही महायुति के तहत भाजपा, शिंदे गुट वाली शिवसेना व अजीत पवार गुट वाली राकांपा में फिलहाल उम्मीदवारों की ‘फोडा-फोडी’ करने पर पूरा ध्यान दिया जा रहा है. परंतु प्रभागों में निश्चित तौर पर कौन-कौनसे रिहायशी इलाके शामिल किए गए है, इसकी जानकारी स्पष्ट होने के बाद ही इच्छुकों द्वारा इस पर कोई निर्णय लिया जाएगा. जिसके बाद किसी भी पार्टी के प्रभावी प्रत्याशियों को अपने पाले में खींचने की राजनीति और भी अधिक तेज होगी.
* प्रभागों के विभाजन से कुछ लोगों की राजनीतिक ताकत कम करने का प्रयास
कुछ प्रभागों में पारंपरिक निर्वाचन क्षेत्र वाले हिस्सों को किसी अन्य प्रभाग के साथ जोड दिया गया है अथवा ऐसे हिस्सों का विभाजन कर दिया गया है. जिसके चलते संबंधित क्षेत्रों के पूर्व पार्षदों व चुनाव लडने के इच्छुकों में कुछ हद तक नाराजगी भी दिखाई दे रही है. साथ ही कहा जा रहा है कि, प्रभाव रहनेवाले प्रभाग का चार हिस्सों में विभाजन कर कुछ लोगों की ताकत को कम करने का प्रयास किया गया है. हालांकि प्रभाग में नए सिरे से जोडे गए क्षेत्रों में अपनी पहचान निर्माण करने हेतु चुनाव लडने के इच्छुकों ने अभी से ही मोर्चा खोल दिया है. जिसमें गणेशोत्सव सबसे पहला व शानदार अवसर साबित हुआ. जिसके तहत कई इच्छुकों ने गणेशोत्सव के दौरान अपना जनसंपर्क जबरदस्त तरीके से बढाया है और शुभकामना वाले बैनर व पोस्टर के जरिए अपने नाम व चेहरे को मतदाताओं तक पहुंचाया जा रहा है.
* किसी भी दल में आओ, लेकिन जल्दी निर्णय लो
इस समय अधिक से अधिक इच्छुकों व प्रभावी साबित हो सकनेवाले प्रत्याशियों को अपने पाले में करने की सर्वाधिक जल्दबाजी महायुति के घटक दलों में दिखाई दे रही है और महायुति को घटक दलों द्वारा उम्मीदवारों व इच्छुकों पर इस बात को लेकर काफी हद तक दबाव बनाया जा रहा है कि, वे चाहे महायुति के किसी भी घटक दल में शामिल हो, लेकिन उससे संबंधित निर्णय जल्द से जल्द लिया जाए. हालांकि ऐसे किसी दबाव में आए बिना इच्छुकों द्वारा प्रभाग की प्रारुप रचना को ध्यान में रखकर ही निर्णय लिया जा रहा है. साथ ही साथ निर्वाचन क्षेत्र में सुरक्षित विभाग आने का अनुमान लगाकर जल्दबाजी में पार्टी बदलनेवालों को अब अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की नौबत का भी सामना करना पड रहा है और घनी रिहायशी बस्ती व झोपडपट्टी वाले क्षेत्र को प्रभाग में जोड दिए जाने तथा कुछ प्रभागों का नए सिरे से परिसीमन कर दिए जाने के चलते बदले हुए राजनीतिक समिकरण व वोटों के गणित को देखते हुए कुछ उम्मीदवारों पर दुबारा ‘घर वापसी’ करने की नौबत भी आ सकती है.

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