स्मार्ट प्रीपेड मीटर योजना पर सवाल

केंद्र और राज्य के दावों में विसंगति

नागपुर/दि.5 : महाराष्ट्र में बिजली वितरण को पारदर्शी और सक्षम बनाने के नाम पर महावितरण कंपनी द्वारा उपभोक्ताओं के घरों में तेज़ी से स्मार्ट मीटर लगाए जा रहे हैं. लेकिन इस योजना को लेकर विदर्भ बिजली उपभोक्ता संघ ने आपत्ति जताते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. संघ का कहना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार के दावों में ही बड़ा विरोधाभास है, जिससे इस योजना पर प्रश्नचिह्न खड़े हो गए हैं.
राज्य सरकार का कहना है कि स्मार्ट मीटर पारंपरिक मीटरों की तुलना में आधुनिक तकनीक से लैस हैं. इससे उपभोक्ता का बिजली उपयोग रियल टाइम में दर्ज होगा. मोबाइल, एसएमएस या ऑनलाइन पोर्टल से खपत की जानकारी तुरंत मिलेगी. मीटर रीडिंग के लिए कर्मचारियों पर निर्भरता घटेगी, मानवीय त्रुटि और भ्रष्टाचार कम होंगे. बिजली चोरी पर नियंत्रण, अनधिकृत उपयोग की पहचान और तकनीकी खराबी का त्वरित पता लगाया जा सकेगा. वितरण कंपनियों को इससे आर्थिक लाभ होगा और बकाया वसूली भी आसान होगी.
वहीं दूसरी ओर विदर्भ बिजली उपभोक्ता संघ ने कहा है कि स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं की अनुमति के बिना लगाए जा रहे हैं. योजना लागू करने से पहले तकनीकी व आर्थिक अध्ययन नहीं किया गया. इस मामले में उच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकार से जवाब मांगा था. केंद्र सरकार का कहना है कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने पर ही राज्य को अनुदान मिलेगा. जबकि राज्य सरकार के अधीन महावितरण कंपनी का दावा है कि वे सिर्फ स्मार्ट मीटर लगा रहे हैं, स्मार्ट प्रीपेड नहीं. ऐसे में अगर यह प्रीपेड मीटर नहीं हैं तो केंद्र का अनुदान भी दिक्कत में आ सकता है.
बता दें कि, राज्य में करीब 2 करोड़ 24 लाख 88 हजार गैर-कृषि उपभोक्ता हैं. इनमें से अब तक 35 लाख 92 हजार स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके हैं.

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