जिला स्वस्थ्य विभाग की सफाई को लेकर उठे सवाल-दोष किसका, जिम्मेदारी किसकी?

मेलघाट मेें एक सप्ताह में दो माताओेंं की मौत का ठीकरा फोडा परिजनो पर

*पारदर्शी प्रशासन में कैसे छिपाकर रखी दोनोे की मौते?
अमरावती/दि.15 – आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में बाल व माता मृत्यु दर कम करने के लिए सरकार एडी- चोटी का जोर लगा रही हैं. इसके बावजूद ऐसी घटनाए थंमने का नाम नहीे ले रहीं हैं. हाल ही मेे सात दिन के भीतर दो माता मृत्यु के मामले सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग सवालो के कटघरे मेें आया गया हैें. दिलचस्प बात यह हैें कि स्वास्थ्य विभाग ने हाईकार्ट द्वारा बाल-माता मृत्यु दर को लेंकर फटकार लगाए जाने के बाद यह रहस्योद्घाटन किया कि सात दिन के भीतर दो माताओं ने दम तोडा हैं. इसके साथ ही अपनी सफाई देते हुए उनके परिजनों पर इलाज में असहयोग का आरोप लगाकर अपने हाथ झटक दिए हैें. इस प्रकार जिला स्वास्थ्य विभाग ने जिम्मेदारी से पल्ला झाडते हुए इसका ठीकरा परिजनो पर ही फोड दिया हैे.
जबकि दोनों मौतो की जानकारी विभाग ने तभी उजागर की जब कुपोषण और बच्चों की मौतो पर हाईकोर्ट की कडी फटकार के बाद सफाई देने की नौबत आई स्वास्थ्य विभाग ने शुक्रवार को जांरी बयान मेंें दावा किया कि दोनों मामलों में स्वास्थ्य टीम ने समयबद्ध व गंभीर प्रयास किए. परंतु ‘अति- जोखिमग्रस्त’ गर्भवती महिलाओं के परिजनों का असहयोग और रेफर से बार-बार इनकार बडी बाधा रहां. विभाग के इस स्पष्टीकरण पर सवाल उठते हैे. क्योकि कार्रवाई की जानकारी स्वयं प्रशासन दे रहा हैे, फिर दोष परिजनों का कैसे?

पहला मामला
सिकलसेलग्रस्त थी वनिता धिक्कार!
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार वनिता धिक्कार सिकलसेल से पीडित थी. और जोखिम श्रेणी में थी. विभाग के अनुसार गर्भकाल मेे पांच जांचे हुई. जुलाई 2025 में रक्त चढाने के लिए अचलपुर रेफर किया गया. लेकिन वह बीच में घर लौट गई. प्रसव पीडा बढने पर हतरू पीएचसी लाया गया जहां स्थिति गंभीर पाई गई. बार-बार रेफर करने पर भी परिजनों ने मना किया. प्रसव के बाद परिजन उन्हे अस्पताल में नहीें रूकने दे रहे थे. और 28 सितंबर को उनकी घर पर मौत हो गई.

दूसरा मामला
एचबीएसएजी रिएक्टिव थी रानी सावरकर
एचबीएसएजी रिएक्टिव रानी सावरकर भी अति-जोखिम श्रेणी मे थी. मई से सितंबर के बीच उसकी पांच जांचे एवं सोनोग्राफी सेवाए दी गई. 17 सितंबर को प्रसव पीडा होने पर 108 एंबुलेंस भेजकर उन्हें काटकुंभ सें अचलपुर रेफर किया गया प्रसव के बाद अगले ही दिन उपचार के दौरान उनकी मौत हो गई. जिला स्वास्थ्य विभाग ने अपनी सफाई में कहां है कि मेलघाट मे हर मातृ मृत्यु की विस्तृत जांच होती हैं. और गंभीर गर्भवती महिलाओं को उच्चस्तरीय संस्थानों मे रेफर करना आवश्यक है कई बार परिजन इलाज अधूरा छोड देते हें अंतिम क्षण में अस्पताल पहुंचते है. या रेफर मानने से इनकार कर देते हैे. दोनो मामलो मे जांच समिति ने संबंधितो पर कार्रवाई की हैे. परंतु जब प्रशासन स्वयं त्रुटियों पर कार्रवाई स्विकार रहा हैे तोें आदिवासी परिजनों पर दोर्र्र्र्र्षारोपण उचित नहीं आदिवासियों का समुपदेशन और सरकारी सेवाएं प्रभावी ढंग र्ेंसे उपलब्ध कराना प्रशासन की मूल जिम्मेदारी हैं. और यदी यहीं जिम्मेदारी निभाने में विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा हैं. तों शासन को इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता हैं.

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