‘सप्तरंगी’ ने मनाई संत तुलसीदास व मुंशी प्रेमचंद जयंती
दोनों रचनाकारों के साहित्य पर हुआ संस्था के सदस्य चंद्रभूषण किल्लेदार का व्याख्यान

अमरावती /दि.6 – हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार सहित नवोदित हस्ताक्षरों को प्रोत्साहित करने हेतु सदैव अग्रसर व सक्रिय रहनेवाली सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था द्वारा विगत रविवार 3 अगस्त को रामचरित मानस जैसे वैश्विक ग्रंथ के रचयिता गोस्वामी संत तुलसीदासजी तथा अपनी कहानियों व उपन्यासों के जरिए हिंदी साहित्य जगत में अजर-अमर रहनेवाले मुंशी प्रेमचंद जैसे दो महान साहित्यकारों की जयंती उपलक्ष्य में व्याख्यान का विशेष आयोजन किया गया था. वरिष्ठ साहित्यकार भगवान वैद्य प्रखर की अध्यक्षता में आयोजित इस व्याख्यान में प्रमुख वक्ता के तौर पर सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के सदस्य चंद्रभूषण किल्लेदार ने दोनों महान साहित्यकारों के साहित्य पर व्याख्यान देते हुए अपने विचार व्यक्त किए. इस अवसर पर सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ‘निर्दोष’, सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ तथा उपाध्यक्ष श्याम दम्माणी ‘नीलेश’ व निलिमा भोजने ‘निलम’ विशेष रुप से मंच पर उपस्थित थे.
विगत रविवार 3 अगस्त को दोपहर 3 बजे वालकट कंपाऊंड स्थित जिला मराठी पत्रकार भवन में आयोजित इस व्याख्यान में प्रमुख वक्ता चंद्रभूषण किल्लेदार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, गोस्वामी संत तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस व हनुमान चालिसा को आज देश सहित पूरी दुनिया में सनातनी हिंदू धर्मावलंबियों द्वारा पढा जाता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, गोस्वामी संत तुलसीदासजी ने अपनी रचनाओं से साहित्य को प्रगल्भ करने के साथ-साथ धर्म जागरण में भी एकतरह से बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसी तरह साहित्य सम्राट कहे जाते मुंशी प्रेमचंद ने अपने द्वारा लिखित विभिन्न कहानियों व उपन्यासों के जरिए तत्कालिन सामाजिक परिस्थितियों व जीवन संघर्षों को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं को बडे ही शानदार ढंग से उकेरा और मुंशी प्रेमचंद का साहित्य मौजूदा दौर की बदली हुई सामाजिक परिस्थितियों में भी एकतरह से प्रासंगिक कहा जा सकता है.
कार्यक्रम के प्रारंभ में सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था की सचिव बरखा शर्मा ‘क्रांति’ ने मां सरस्वती का वंदन करते हुए सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था द्वारा विगत चार दशकों से किए जा रहे कामों की संक्षिप्त जानकारी उपस्थितों के समक्ष प्रस्तुत की और कहा कि, संस्था ने हिंदी साहित्य जगत को कई राष्ट्रीय कवि भी दिए है. जिनमें किरण जोशी, भगवान वैद्य प्रसाद, मनोज मद्रासी व प्रीतम जौनपुरी जैसे प्रमुख नाम है. साथ ही संस्था के साथ नित्य लेखन करनेवाले पवन जयस्वाल, हनुमान गुजर, अनु साहू, दीपक सूर्यवंशी, दीपक दुबे ‘अकेला’ व लक्ष्मीकांत खंडेलवाल जैसे दिग्गज साहित्यकार भी जुडे हुए है. इस समय सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था के अध्यक्ष नरेंद्र देवरणकर ने सप्तरंगी को एक संस्था नहीं बल्कि परिवार बताते हुए कहा कि, इस परिवार में हर व्यक्ति का समान अधिकार व सम्मान है तथा परिवार का प्रत्येक सदस्य संस्था के विकास हेतु तन-मन-धन से समर्पित व सक्रिय रहता है. सभी सदस्यों की ओर से मिलनेवाले सहयोग के चलते वे अध्यक्ष के तौर पर संस्था को नई बुलंदी पर पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहेंगे.
इस समय अपने अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ साहित्यकार भगवान वैद्य ‘प्रखर’ ने सप्तरंगी हिंदी साहित्य संस्था की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को बधाई देने के साथ ही गोस्वामी तुलसीदास व मुंशी प्रेमचंद की जयंती उपलक्ष्य में व्याख्यान का आयोजन करने हेतु संस्था के पदाधिकारियों व सदस्यों का अभिनंदन किया. साथ ही उन्होंने कहा कि, गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरित मानस संसार की किसी भी भाषा में रचित साहित्य के लिहाज से एक अद्वितीय ग्रंथ है. जिसने आम भारतीय जनमानस को इस कदर प्रभावित किया है कि, विश्वभर में बसे भारतीयों के लिए रामचरित मानस केवल पठनीय ही नहीं, बल्कि पूजनीय ग्रंथ हो गया है. यही वजह है कि, युनेस्को ने रामचरित मानस को वैश्विस धरोहर घोषित करते हुए इस ग्रंथ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है. जिससे हम सभी भारतीय गौरवान्वित हुए है. इसके साथ ही भगवान वैद्य ‘प्रखर’ ने मुंशी प्रेमचंद को आदर्श से यथार्थोन्मुख लेखक बताते हुए उपस्थित रचनाकारों से अनुरोध किया कि, वे भी लेखन विधा में निरंतर सक्रिय रहते हुए मुंशी प्रेमचंद की तरह सामाजिक समस्याओं को अपनी रचनाओं के जरिए उजागर करे.
इस कार्यक्रम में संचालन राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त हास्य कवि मनोज मद्रासी व आभार प्रदर्शन संतोष हांडे ने किया. आयोजन की सफलतार्थ रामसजीवन दुबे ‘साजन’, प्रीतम जौनपुरी, दीपक सूर्यवंशी, चंद्रप्रकाश दुबे ‘असीन’, दीपक दुबे ‘अकेला’, राजा धर्माधिकारी, उज्वल अग्रवाल, लक्ष्मीकांत खंडेलवाल, विष्णु सोलंके, अली सुबहान जैदी, देशमुख सर, अलका देवरणकर, गौरी देशमुख, प्रीया यावलीकर व श्रीमती किल्लेदार द्वारा महत्प्रयास किए गए. इस व्याख्यान को सुनने हेतु साहित्य प्रेमियों अच्छी-खासी उपस्थिति रही.





