सर उत्पादन में ही खोट है, बताओ इसमें हमारा क्या दोष?

नाफेड, शर्त और नियम कायम

तिवसा/दि.3 – इस वर्ष प्रकृति वैसी नहीं थी. हम हरसाल इसी मिट्टी से सुनहरी सोयाबीन उगाते है. लेकिन एक प्राकृति आपदा ने हमारी फसल बर्बाद कर दी. इसमें हमारा क्या दोष? किसान सरकारी सोयाबीन केंद्र पर ऐसे बतुके दावे कर रहे है, मानो वे ही मालिक हो. लेकिन खुद दोषी है. वे रहम की भीख मांगते आ रहे है. ताकि उनकी कृषि उपज खरीदी जा सके.
शासकीय सोयाबीन खरीदी केंद्रों पर नाफेड द्बारा लगाई गई कठीन शर्तों का किसान कैसे शिकार होता है. यह सभी को पता है. तहसील में जारी रहे शासकीय सोयाबीन खरीदी केंद्र की तरफ किसान भटके ही नहीं, ऐसी कुछ व्यवस्था नाफेड की तरफ से की गई है. एक तरफ किसानों का माल छानने के बाद ही खरीदी किया जाए, ऐसे नाफेड के सख्त निर्देश रहने से खरीदी- बिक्री समिति बंधी है. दूसरी तरफ शासकीय गांरटी भाव यह निजी खरीदारों की तुलना में संतोषजनक इसलिए किसान सोयाबीन केंद्र पर ले जाने से कतरा रहे हैं. हालांकि छलनी इस पध्दति के कारण किसानों की आधि से ज्यादा सोयाबीन बर्बाद हो रही है. जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. इस बारे में अधिक जानकारी के लिए जिला मार्केटिंग अधिकारी से संपर्क किए जाने पर उन्होंने प्रतिसाद नहीं दिया.

* सांसदों को ध्यान देना चाहिए
नाफेड केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय के अधिन कार्यरत एक बहु राज्यीय संगठन हैं. इसलिए यह मांग है कि सांसद किसानों की समस्याओं को सरकार के समक्ष रखे और किसानों को न्याय दिलाए.

* कृषि माल के नमूने
सरकारी सोयाबीन खरीदी केंद्र पर लाया गया माल आते ही वापस उठाना पडता हैं. इसमें आर्थिक बोझ बढता है. इसलिए हम खरीदी केंद्र पर सोयाबीन के नमूने लेने और माल लाने अथवा न लाने के बारे में पूछने आ रहे है, ऐसा शेंदोला खुर्द के किसान बालासाहब कालमेघ ने स्पष्ट किया.

* अब तक केवल 4 हजार क्विंटल सोयाबीन खरीदी
20 नवंबर से शुरू हुए शासकीय सोयबीन खरीदी केंद्र पर अब तक केवल 4 हजार क्विंटल सोयाबीन खरीदी की गई. गत वर्ष इतने ही समय में खरीदी का आंकडा 20 हजार क्विंटल पार कर गया था.
– दिपक गोफणे, व्यवस्थापक,
खरीदी-बिक्री समिति, तिवसा.

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