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चाहे सोमनाथ कहो, चाहे केदारनाथ या कहो विश्वनाथ

भक्तों के दु:ख दूर करते, जय बाबा अमरनाथ

अमरनाथ धाम कश्मीर घाटी में अनंतनाग जिले में है अमरनाथ गुफा की खोज एक चरवाहा बूटा मालिक ने की थी. कहा जाता है कि इस चरवाहे को साधु ने कोयले का एक थैला दिया था. घर पहुंच कर उसने देखा की थैली का कोयला सोना बन गया है वहां साधु को धन्यवाद देने गया, साधु के निवासस्थान पर एक गुफा मिली जहां अमरनाथ स्वामी बर्फ के लिंग के रूप में मौजूद थे. इसी पवित्र गुफा में भगवान शंकर ने माता- पार्वती की सृष्टि की रचना की अमर कथा सुनाई थी यह कथा एक तोते ने सुन ली थी और जब शिवजी को यह पता चला कि वह तोते को मारने के लिए निकल पडे और वह तोता महात्मा की पत्नी जमाई ले रही थी वह तोता मुख में प्रवेश कर गया, बाद में वह तोता शुकदेव मुनि के रूप में अवतरित हुआ. भगवान शंकर माता- पार्वती को कथा सुना रहे थे तब माता पार्वती को नींद आ गई तथा एक कबूतर हुंकार भर रहे थे. इस बात से क्रोधित होकर भगवान शंकर ने अपना तीसरा नेत्र खोला जिसके प्रभाव से 1 किलोमीटर तक सब जलकर भस्म हो गया था. आज भी हमें गुफा से 1 किलोमीटर राख ही राख नजर आएगी और कोई भी हरा-भरा वृक्ष नजर नहीं आएगा तथा कोई भी पशु पक्षी नजर नहीं आता है. सिर्फ कबूतर जो कि अमर है वह नजर आते है. इस गुफा में बर्फ से शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल सावन महिने में मेला लगता है. शिवलिंग के साथ ही साथ माता पार्वती और श्री गणेशजी का शिवलिंग भी बनता है. यहां पार्वती पीठ 51 शक्तिपीठ शक्तिपीठों में से एक है जो भक्त 12 ज्योतिलिंगों के दर्शन का पुण्य प्राप्त करना चाहे उसे केवल अमरनाथ गुफा का दर्शन कर लेने से ही पुण्य प्राप्त हो जाता है. अमरनाथ गुफा तक पहुंचने के लिए दो मार्ग है पहला मार्ग जम्मू से पहलगाम से चंदनवाडी से शेषनाथ से पंचतरणी हो कर गुफा तक पहुंचा जाता है. भगवान शंकर माता पार्वती को लेकर इसी मार्ग से गए थे जिसका विशेष महत्व है. इसीलिए अधिकतर यात्री इसी मार्ग से जाते है. दूसरा मार्ग जम्मू से अनंतनाग श्रीनगर बालटाल होते हुए मंदिर तक पहुंचता है. यह मार्ग बहुत संकरा है एवं चढाई का है. इस मार्ग से बहुत कम यात्री जाते हैं. अमरनाथ गुफा 14500 फुट की उंचाई पर है यह गुफा 60 फुट लंबी 30 फुट चौडी एवं 20 फुट उंची है गुफा में प्रवेश करने पर बूंद- बूंद गिरता जल भक्तोे के प्रसाद के रूप में मिलता है गुफा के दर्शन के पश्चात रामकुंड मिलता है यहां का गंगाजल भक्त अपने साथ लाते है. जम्मू में यात्रा का प्रबंध केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार को संयुक्त रूप से करना पडता है. भगवती निवास में सैनिक सुरक्षा प्रदान की जाती है हमें पहले ही जत्थे में जाने का अवसर मिला दूसरे दिन सुबह से सभी यात्रियों को कडी सुरक्षा के साथ पहलगाम पहुंचाया जाता है यहां लीद्दर नदी के किनारे बसा गांव है, चारों और उंचे उंचे पर्वतो से घिरा यह गांव नदी का प्राचीन मंदिर है. भगवान शंकर ने अपना नंदी बैल का परित्याग किया था इसलिए इसका नाम पडा बैलगाम. यात्रियों को यहां से गर्म कपडे, टार्च सेट जूते और छडी लेना आवश्यक होता है. पहलगांव से चंदनवाडी पहुंचाया जाता है.
बसों द्बारा चंदनवाडी समुद्र सतह से 2500 फुट की उंचाई पर है. रास्ते में नील गंगा नदी मिलती है यहां मन चंदन सा महकने लगता है कहा जाता है कि इस नदी में भगवान शंकर ने काजल लगा मुंह धोया था. इसलिए इस नदी का जल काला हो गया और यह नीलगंगा कहलाई. चंदनवाडी सेवा में सेवा संस्था द्बारा लंगर की व्यवस्था रहती है. चंदनवाडी में नदी पार करने पर लाए सामान की जांच सैनिको द्बारा की जाती है. थोडा पैदल चलने पर पिस्सू घाटी मिलती है. 3 किलोमीटर इस घाटी की चढाई सीधी और बहुत कठिन है. कहा जाता है कि पिस्सू घाटी पर देवताओं और राक्षसों मेें भगवान के दर्शन के लिए होड लगी थी. शिव की कृपा से देवताओं ने राक्षसों को मार कर बहुत बडा हड्डियों का लगा ढेर लगाया था. इसीलिए इसे पिस्सू घाटी कहा जाता है.
पिस्सू घाटी से शेषनाग 10 किलोमीटर है शेषनाग यात्रियों की रात में विश्राम करना पडता है. पिस्सू घाटी पार करने पर खान-पान की व्यवस्था सामाजिक संस्थाएं करती है. हम पैदल ही रात 9 बजे तक शेषनाग पहुंचे शेषनाग की उंचाई 11730 फुट है शेषनाग एक ही बडे पर्वत का सात शिखर अलग- अलग दिखलाई दिए जो बर्फ से ढके थे. शेषनाग झील का हरा-नीला पानी मन को ठंडक दिलाता है. प्राचीन काल में शेषनाग पर्वत पर एक बडा ही बलवान वायु रूप वाला राक्षस रहता था जो शंकर जी के दर्शन के लिए आनेवाले देवताओं को कष्ट पहुंचाता था तभी सभी देवताओं ने विष्णु भगवान से सहायता मांगी . विष्णु भगवान ने अपने शेषनाग को आज्ञा दी कि तुम सहस्त्रमुखो वायु को पान करो. शेषनाग ने देखते ही देखते वायुरूपी राक्षस का भक्षण कर लिया.
पंचतरणी से अमरनाथ गुफा 6 किलोमीटर है. भक्त लोग सुबह उठकर बम बम भोले, हर- हर महादेव कहते हुए गुफा की ओर पैदल तथा घोडों की सवारी द्बारा निकलते. अमरनाथ गुुफा से 2 किलोमीटर पहले हिमनदी मिलती है. बर्फ के पहाडों की गुफा देखने को मिली.
अमरनाथ गुफा में रात 9 बजे प्रवेश किला ओम नम: शिवाय , बम- बम भोले के जयकारे से गुफा गूंज रही थी. गुफा में पहुंचते ही ऐसा लग रहा था मानो हम धरती पर नहीं स्वर्ग में भगवान शंकर के घर आए हो गुुफा में बूंद- बूंद टपकता जल ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शंकर अपने भक्तों को जल का प्रसाद बांट रहे हो गुफा में अमरनाथ भगवान का 8 फुट का शिवलिंग बर्फ से अपने आप बना हुआ था तथा पार्वती और गणेशजी में शिवलिंग के दर्शन करके हमने अपना जीवन धन्य कर लिया. जितनी लंबी लाइन अमरनाथ गुफा में दर्शन करने वालों की होती है उतनी ही लंबी लाइन वापस जानेवाले भक्तों की होती है. अधिकतर यात्री बालटान मार्ग से उतरते है. हमने भी बालटाल मार्ग पैदल उतरना ठीक समझा. 4 किलोमीटर दो का संगम मिलता है. इसलिए हमें अमर गंगा नदियों का संगम मिलता है. इसलिए हम इसे अमरगंगा संगम नामक स्थान कहते है. यहां पर भी दवा और भोजन का प्रबंध सेना द्बारा किया जाता है. बालटाल मार्ग संकरा है. इसलिए यहां पर बहुत संभल- संभल कर उतरना पडता है. राह के साथ ही गहरी खाई रहती है शाम तक हम बालटाल पहुंए गए बालटाल में रात को रूकने के लिए लंगर टेंटों की व्यवस्था रहती है दूसरे दिन बालटाल से जम्मू बस से रघुनाथ मंदिर पहुंचे इस यात्रा में 8 दिनों का समय लगता है.
प्राचीन काल में अमरनाथ की कथा शुकदेवजी ने सुनाई थी. जिससे वे अमर हो गए थे. अमरनाथ की कथा एकबार बरगद के पेड ने नीचे शुकदेवजी ने सुनाई थी नीचे बेैठे थे तभी धरती व आकाश हिलने लगे. क्योंकि सारे जीव इस कथा को सुनकर अमर होनेवाले थे. सभी देवता भगवान शंकरजी के पास गए. क्योंकि धरती का संचालन भरण-पोषण की समस्याएं खडी होनेवाली थी.विष्णुजी के पास गए. भगवान विष्णुजी देवी देवताओं के विजय पश्चात शंकरजी वहां उपस्थित हुए. शंकरजी ने कहा आज के बाद इस अमर कथा को सुननेवाला अमर नहीं होगा. जो भक्त अमरनाथ धाम आकर मेरी इस गुफा का वह शिवलोक का वासी होगा. श्रावण महीने में अमरनाथ गुफा शिवलिंग के जो मनुष्य दर्शन करता है वह भोलेनाथ शिव शंकर का अतिथि होता है. शिव कल्याण्कारी है वह अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते जो भी भक्त अमरनाथ धाम आकर मेरी इस गुफा के दर्शन करेगा वह शिवलोक का वासी होगा. शिव जन्म जन्मांतर के पापों को धो डालते है. उन्हें असीम आनंद की प्राप्ति कराते है तथा अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते है.
ओम नम: शिवाय बम बम भोले, जय श्रीराम , जय जय श्रीराम
गणेश रघुवीर कुशवाह
एम ए हिंदी, समाज शास्त्र,
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड होल्डर
मोरबाग- मसानगंज , इतवारा बाजार, अमरावती

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