बदइंतजामी के बीच कहर ढाती ठंड
मौसम का अपना चक्र होता है और उसी मुताबिक देश-दुनिया के अलग-अलग इलाकों में तापमान भी बढ़ता-घटता रहता है. इसलिए फिलहाल अगर समूचा उत्तर भारत कड़ाके की ठंड से कांप रहा है, तो यह कोई अस्वाभाविक घटना नहीं है. लेकिन ऐसे मौसम में जीवन अगर अस्त-व्यस्त होता है, तो इसका मुख्य कारण उसका सामना करने के मामले में कहीं उचित सावधानी नहीं बरतना तो कहीं संसाधनों का अभाव होना होता है. गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों समेत पश्चिमोत्तर भारत के व्यापक हिस्से में तापमान में गिरावट की वजह से ठंड काफी बढ़ गई है. ये इलाके शीतलहर की चपेट में हैं. खासतौर पर दिल्ली के कुछ इलाकों में इस बार तापमान चार और पांच डिग्री के आसपास तक चला गया, जबकि ऐसी आशंका कुछ पहाड़ी इलाकों में होने को लेकर जताई जाती रही है. ज्यादा मुश्किल इसलिए पेश आ रही है कि कई राज्यों में बेहद कम तापमान के बीच कोहरे की समस्या खड़ी हो गई है, जिससे सड़कों पर वाहनों से लेकर रेल गाड़ियों की रफ्तार भी बहुत धीमी हो गई है. समझा जा सकता है कि ऐसी स्थिति में रोजमर्रा की जिंदगी में लोगों को किस तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा होगा.
ऐसे हालात में बचाव ही एकमात्र उपाय होता है, जिसे जहां सुविधा संपन्न लोग अपने स्तर पर सुनिश्चित करते हैं, तो बड़ा तबका ऐसा भी है, जो ठंड की मार के बीच सरकार की ओर से किए जाने वाले बचाव के इंतजामों की उम्मीद करता है या फिर किसी तरह अपनी जिंदगी काटता है. ऐसे में दिल्ली और अन्य शहरों में रैन बसेरे सहित ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़ों और अन्य उपाय सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए.
यह छिपा नहीं है कि देश की राजधानी होने के बावजूद दिल्ली के रैन बसेरे व्यवस्थागत कोताही या बदइंतजामों की वजह से कई बार केवल दिखावे का ठौर बन कर रह जाते हैं. जबकि जमा देने वाली ठंड से जूझते जरूरतमंद लोगों को थोड़ी राहत देने के लिए उचित इंतजाम करना सरकार की जवाबदेही भी है. अभी जाड़े के मौसम की मार एक तरह से बढ़नी शुरू ही हुई है, जो अगले कुछ हफ्ते तक बनी रह सकती है. इसलिए दिल्ली सहित ठंड से बुरी तरह प्रभावित सभी राज्यों और इलाकों में कड़ाके की ठंड से बचने के लिए सरकारी स्तर पर भी उचित प्रबंध किए जाने चाहिए. इसके अलावा, पिछले करीब तीन सालों के दौरान कोरोना विषाणु से उपजी महामारी ने जो हालात पैदा किए थे, उसके मद्देनजर इस बार आशंका यह जताई जा रही है कि तापमान के इतना नीचे गिरने को लेकर सावधानी नहीं बरती गई, तो आम लोगों की सेहत के सामने कई जोखिम पैदा हो सकते हैं.
दरअसल, जाड़े के मौसम में रक्तचाप सहित कई तरह की दिक्कतें बढ़ जाने को स्वाभाविक माना जाता रहा है, लेकिन इस बार कोरोना विषाणु से संक्रमित होकर बाहर आ चुके होने के बावजूद ऐसे लोगों को ज्यादा सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही है. यों भी इस मौसम में बहुत सारे लोगों को सर्दी-जुकाम और बुखार जैसी मुश्किलें पेश आती रही हैं, लेकिन अब इन्हीं स्थितियों में संक्रमण के स्वरूप को पहले की तरह सहज भाव से लेना खतरे से खाली नहीं रह गया गया है. सामान्य सर्दी-जुकाम या बुखार दिखने वाली परेशानी के पीछे कोई गंभीर वजह हो सकती है, इसलिए समय पर इसकी जांच और उचित इलाज एक प्राथमिक और जरूरी कदम है. जाहिर है, इस साल का जाड़ा पहले के मुकाबले ज्यादा सावधान और सुरक्षित रहने की ताकीद करता है.