लाठी-डंडे को प्राणघातक शस्त्र माना जा सकता है
मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ का महत्वपूर्ण निरीक्षण

नागपुर /दि.24 – मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कि एक साधारण सी दिखने वाली बांस की छड़ी या लाठी भी एक घातक हथियार मानी जा सकती है, हत्या की सज़ा के खिलाफ एक अपील खारिज कर दी. अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि अगर लाठी जैसी दिखने वाली किसी वस्तु का इस्तेमाल हत्या या शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग पर वार करने के लिए किया जाता है, तो उसे भी ’धारदार हथियार’ माना जाएगा. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था कि लाठी धारदार हथियार नहीं है, लेकिन मुंबई हाईकोर्ट ने इससे असहमति जताते हुए उपरोक्त टिप्पणी की.
न्यायमूर्ति अनिल पानसरे और न्यायमूर्ति वाई. खोब्रागड़े की पीठ ने वर्धा जिले में हुए एक हत्याकांड में यह फैसला सुनाया. 17 मार्च 2016 को वर्धा जिले के हिंगणघाट तहसील में मामूली विवाद में आरोपी रामेश्वर पंधगडे और उसकी पत्नी निर्मला पंधगडे की हत्या कर दी गई थी. एक व्यक्ति पर लाठी और कुल्हाड़ी से हमला किया गया. सिर पर गंभीर चोट लगने से उसकी मौत हो गई. इस मामले में सत्र न्यायालय ने आरोपी रामेश्वर पंधगड़े को धारा 302 के तहत आजीवन कारावास और 2,000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई, जबकि उसकी पत्नी निर्मला पंधगड़े को धारा 324 के तहत तीन साल सश्रम कारावास और एक हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी. अभियुक्त ने इस सज़ा के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय में अपील दायर की, लेकिन अदालत ने अपील खारिज कर दी और सज़ा बरकरार रखी. अदालत ने अपने ़फैसले में यह स्पष्ट किया कि यह एक पूर्व-नियोजित हमला था, न कि क्रोध में किया गया कृत्य. बहस समाप्त होने के बाद, अभियुक्त घर में गया और एक लाठी और कुल्हाड़ी लेकर लौटा. जिससे साबित होता है कि अपराध पूर्व-नियोजित था. अदालत ने आगे कहा कि हालाँकि लाठी एक सामान्य हथियार है, लेकिन अगर इसका इस्तेमाल पर्याप्त बल के साथ और शरीर के किसी महत्वपूर्ण अंग पर किया जाए, तो यह जानलेवा हो सकता है. चूँकि राज्य सरकार द्वारा आरोपी महिला की सज़ा के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की गई थी, इसलिए सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई सज़ा बरकरार रखी गई. अदालत ने उसकी ज़मानत रद्द कर दी है और उसे तीन हफ़्तों के भीतर वर्धा स्थित सत्र न्यायालय में सज़ा काटने के लिए पेश होने का आदेश दिया है.
* लाठी से हमले के लिए भी कड़ी सजा!
भारतीय दंड संहिता के अनुसार, किसी धारदार हथियार को परिभाषित करते समय उसके आकार, गुणों और चोट पहुँचाने की क्षमता को ध्यान में रखा जाता है. 2017 में, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अनुसूया दहरवा बनाम गोविंद राम के मामले में कहा था कि बाँस की छड़ी धारदार हथियार नहीं है. इसके लिए, उच्च न्यायालय ने छड़ी के आकार, गुणों और क्षमता पर विचार करके यह निर्धारित किया था कि छड़ी धारदार हथियार नहीं है. छड़ी धारदार हथियार की श्रेणी में नहीं आती, इसलिए छड़ी से किए गए हमलों में कम सजा वाली धाराएँ लागू होती हैं. हालाँकि, अब मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने छड़ी की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित किया है, और ऐसे मामलों में भी आरोपी को कड़ी सजा दी जा सकेगी.





