विद्यार्थियों ने गांव- गांव जाकर बतलाए असली-नकली बीजों के अंतर
शिवाजी कृषि कॉलेज की सराहनीय पहल

* सैकडों किसानो से संवाद
अमरावती/ दि. 5-मार्केट में थोडे पैसों के लालच में कृषकों से नकली बीज देकर धोखाधडी करने का पैमाना बढने के बीच शिवाजी शिक्षा संस्था संचालित शिवाजी कृषि महाविद्यालय ने सराहनीय पहल जारी रखी है. महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने गांव- गांव जाकर किसानों से संवाद किया. उन्हें असली और नकली बीजों का फर्क बतलाया. सावधान रहने कहा. ऐन बीजाई के समय महाविद्यालय की इस पहल ने क्षेत्र के सैकडों किसानों को जागरूक किया है. बता दें कि जुलाई माह का प्रथम सप्ताह होने के साथ अमरावती और क्षेत्र में बुआई का काम अंतिम चरण मेें है. लाखों हेक्टेयर में सोयाबीन, कपास, तुअर और कुछ प्रमाण में ज्वार की बुआई होने की जानकारी कृषि विभाग ने दी है.
उल्लेखनीय है कि बीजाई का सीजन शुरू होते ही मार्केट में नकली बीजों का भी बोलबाला हो जाता है. किसानों को थोडे पैसे का लोभ दिखाकर कुछ लोग नकली बीज थमा देते हैं. किसान वह बीज बो देते और अनेक दिनों बाद उन्हें ठगे जाने का अहसास होता. ऐसे में सिर पर हाथ मारने के सिवाय चारा नहीं रहता.
शिवाजी कृषि महाविद्यालय ग्रामीण जागरूकता कार्यानुभव कार्यक्रम कठोरा में किसानों से बात कर जानकारी दी. इस अभियान में कृषि दूत विधि पुरवार, साक्षी जीतकर, चांदनी कापगते, बरखा पटले, सानिका समरित, अवनी रोकडे ने भाग लिया. किसानों एवं ग्रामस्थों को बीजों के प्रकार, उसके टैग्ज तथा महत्व पर मार्गदर्शन किया. बीज खरीदते समय बरती जानेवाली सावधानियों की जानकारी दी. शास्त्रशुध्द चयन करने के बारे में बतलाया.
विधि पुरवार ने बताया कि मूलभूत बीज (ब्रीडर सीड) आईएआर व आईसीएआर संस्था द्बारा विकसित होते हैं. यह बीज जैविक शुध्दता पर 100 प्रतिशत रहते हैं. इन पर कोई टैग नहीं रहता. उन्होंने बताया कि फाउंडेशन सीड मूल बीजों से निर्मित किए जाते है. यह भी 100 प्रतिशत जैविक शुध्दता लिए होते हैं. उन पर गोल्डन यलो टैग रहता है. मूलभूत बीजों से तैयार किए जानेवाले रजिस्टर्ड, सर्टीफाइड बीजों की जैविक शुध्दता 99.4 प्रतिशत होती है. मूलभूत बीजों पर आधारित सर्टीफाइड बीज भी 99 प्रतिशत खरे होते हैं. टूर्थफूल बीज भी एक प्रकार होता है. इसका उत्पादन काफी होता है. किसानों से तसल्ली कर बीजों की खरीदी करने का आवाहन विद्यार्थियों ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने प्रा. एस.एस. लांडे, प्रा. जेबी दुर्गे और प्रा. गेडाम का सहयोग रहा.





