स्वयंसेवक और शाखा ही सही मायनो में संघ के शक्ति केंद्र

संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य जे. नंदकुमार का प्रतिपादन

* आरएसएस की महानगर शाखा का विजयादशमी उत्सव व शस्त्र पूजन संपन्न
अमरावती /दि.6 – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए है. जिसके पिछे कई लोगों का अतुलनीय योगदान रहा. परंतु संघ के शक्ति केंद्र असल मायने में स्वयंसेवक और शाखाएं ही है. क्योंकि संघ की शाखाओं में स्वयंसेवकों को देशाभिमान, त्याग व बलिदान के संस्कार दिए जाते है, जिनसे संस्कारित होकर संघ के प्रत्येक स्वयंसेवक द्वारा खुद को समर्पित भाव के साथ राष्ट्रहित में अर्पित किया जाता है. इसी सेवाभाव के साथ संघ का देशभर में विस्तार हुआ और आज संघ ने अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर लिए, इस आशय का प्रतिपादन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य एवं प्रज्ञा प्रहाव के अखिल भारतीय संयोजक जे. नंदकुमार (नई दिल्ली) द्वारा किया गया.
गत रोज स्थानीय किरण नगर स्थित श्रीमती नरसम्मा महाविद्यालय के प्रांगण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अमरावती महानगर शाखा द्वारा विजयादशमी उत्सव एवं शस्त्र पूजन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस अवसर पर प्रमुख मार्गदर्शक के तौर पर जे. नंदकुमार अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. अपने संबोधन में जे. नंदकुमार ने संघ की यात्रा एवं भारत की प्रगति सहित हिंदू राष्ट्र की संकल्पना एवं इस बारे में स्वामी विवेकानंद के विचारों पर भी प्रकाश डाला. साथ ही संघ द्वारा स्वाधीनता संग्राम में दिए गए योगदान का आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा कि, यदि हिंदू एकजुट व संगठित रहते है, तभी राष्ट्र प्रगति करेगा. इस अवसर पर सांसद डॉ. अनिल बोंडे, पूर्व सांसद नवनीत राणा, पूर्व राज्यमंत्री प्रवीण पोटे पाटिल, विधायक राजेश वानखडे, पूर्व विधायक अरुण अडसड, उद्योजक लप्पीसेठ जाजोदिया, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता शिवराय कुलकर्णी, विहिंप के जिलाध्यक्ष अनिल साहू, भाजपा की महिला शहराध्यक्ष सुधा तिवारी सहित डॉ. वसुधा बोंडे, प्रा. राजेश जयपुरकर, शेखर भोयर व पूर्व पार्षद चेतन पवार प्रमुख रुप से उपस्थित थे.
इस समय संघ के राष्ट्रीय सदस्य जे. नंदकुमार ने कहा कि, 100 वर्ष पहले संस्थापक सरसंघचालक डॉ. केशव हेडगेवार द्वारा अपने 17 साथियों की मदद से एक तपस्या के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कर सेवा कार्य शुरु किया गया था और तब से लेकर आज तक संघ द्वारा कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत के सुखद व विकसित भविष्य हेतु काम किया जा रहा है. भारत पहले भी हिंदू राष्ट्र था, आज भी हिंदू राष्ट्र है और भविष्य में भी इसे हिंदू राष्ट्र बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति में शंका, कौशल्य, शक्ति व समर्पण भाव का होना बेहद जरुरी है. हमें ध्यान रखना चाहिए कि, इसी भाव की कमी एवं हिंदुओं के असंघठित रहने के चलते हमारा देश सैकडों वर्षों तक विदेशी शासकों के अधिन रहा और हम कई शतकों तक गुलाम रहे. जिसके चलते हमारी मानसिकता में भी कहीं न कहीं गुलामी के भाव बचे हुए है. ऐसे में संघ द्वारा समाजमन को परिवर्तीत करते हुए पूरे हिंदू समाज को संगठित किया जा रहा है. साथ ही साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अब एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान वाला संगठन बन चुका है. परंतु इसके बावजूद संघ अपने मूल शक्ति केंद्र अपने स्वयंसेवकों व अपनी शाखाओं को मानता है.
इस समय संघ के विस्तार पर भी प्रकाश डालते हुए जे. नंदकुमार ने कहा कि, संघ ने अपने मूल संगठन को विस्तारित करने के साथ-साथ अपने ही अंतर्गत कई संगठनों की भी स्थापना कर उनका विस्तार किया, ताकि समाज के अधिक से अधिक घटकों को हिंदुत्व की विचारधारा के साथ जोडा जा सके. यही वजह है कि, हिंदुत्व की विचारधारा का विरोध करनेवाले लोगों द्वारा समय-समय पर संघ को खत्म करने के प्रयास किए जाते रहे. जिसके तहत वर्ष 1975 में आपातकाल की घोषणा कर संघ के सभी नेताओं को जेलो में डाल दिया गया था. यद्यपि देश के लिए आपातकाल अगले दो-ढाई वर्ष में खत्म हो गया, परंतु संघ के लिए मुश्किलों वाला दौर सन 2000 तक चलता रहा. परंतु संघ की नीव इतनी मजबूत थी कि, इसे कभी भी कोई खत्म नहीं कर सका. बल्कि समर्पित भाव से किए जाते अपने सेवाकार्यों के दम पर संघ लगातार विस्तारित होता चला गया.
संघ की भविष्य की योजनाओं को लेकर जानकारी देते हुए जे. नंदकुमार ने कहा कि, आनेवाले 25 वर्षों में हमें पंच परिवर्तीत बिंदू तय करने होंगे और हिंदू मूल्यों व हिंदू संस्कृति का जतन भी करना होगा, ताकि भारतवर्ष को एक बार फिर से संगठित व वैभवशाली बनाया जा सके. इसके लिए परिवार को नष्ट करनेवाली प्रवृत्तियों को दूर करते हुए परिवार संस्था व संस्कृति को जीवित एवं सशक्त रहना होगा. साथ ही साथ समाज में समरसता लानी होगी. जिसकी बदौलत भारत का हिंदू राष्ट्र के तौर पर अस्तित्व हमेशा बना रहे.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए चंद्रशेखर भोंदू ने सभी को विजयादशमी के पर्व एवं संघ के शताब्दी वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए अपने विचार व्यक्त किए. साथ ही महानगर संघ चालक उल्हास बपोरीकर ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी. इस कार्यक्रम का प्रारंभ बैंड पथक के साथ पथ संचालन से किया गया. जिसके उपरांत ध्वजारोहण व ध्वजवंदन करने के पश्चात उद्घोषणा, व्यायाम, प्रात्यक्षिक, सांघिक गीत, अमृत वचन व व्यक्तिगत गीत की प्रस्तुति हुई तथा राष्ट्रगान से इस आयोजन का समापन हुआ. इस अवसर पर पूर्व सांसद अनंत गुढे, पूर्व पार्षद मिलिंद बांबल, प्रा. डॉ. संजय तिरथकर, सचिनदेव महाराज, डॉ. चंद्रशेखर कुलकर्णी, भाजपा के पूर्व शहराध्यक्ष किरण पातुरकर व जयंत डेहनकर, पूर्व उपमहापौर कुसूम साहू, पूर्व पार्षद प्रणित सोनी, भाजपा के शहर महामंत्री बादल कुलकर्णी, उद्योजक किशोर गोयनका, सुनील साहू, तुलसी सेतीया एवं सिद्धार्थ वानखडे सहित अनेकों गणमान्य बडी संख्या में उपस्थित थे.
* कमलताई ने पत्र भेजकर आयोजन को दी शुभकामनाएं
– सशक्त व एकसंघ राष्ट्र निर्माण की बात कही
उल्लेखनीय है कि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महानगर शाखा द्वारा गत रोज आयोजित विजयादशमी उत्सव व शस्त्र पूजन कार्यक्रम में पूर्व लेडी गवर्नर प्रा. कमलताई गवई को बतौर प्रमुख अतिथि आमंत्रित किया गया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक पत्र की वजह से काफी हो हल्ला भी मचा था और कमलताई गवई के इस कार्यक्रम में उपस्थित होने अथवा नहीं होने को लेकर संदेह व संभ्रम वाली स्थिति भी बनी थी. जिसके बाद खुद प्रा. कमलताई गवई सहित गवई परिवार द्वारा स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया गया था कि, संघ ने कमलताई की अनुमति लेकर ही उनका नाम निमंत्रण पत्रिका में प्रकाशित किया था और कमलताई ने संघ के आमंत्रण को स्वीकार भी किया था. हालांकि इसके साथ ही कमलताई गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि, वे अपने स्वास्थ कारणों के चलते संघ के कार्यक्रम में प्रत्यक्ष उपस्थित नहीं रह पाएंगी. ऐसे में कमलताई गवई द्वारा संघ के महानगर संघ चालक उल्हास बपोरीकर के नाम एक शुभकामना पत्र भेजा गया. जिसका बीती शाम नरसम्मा कॉलेज के प्रांगण पर आयोजित संघ के विजयादशमी उत्सव में वाचन किया गया.
अपने द्वारा संघ के नाम प्रेषित पत्र में प्रा. कमलताई गवई द्वारा कहा गया था कि, मानवी जीवन मूल्यों से विकसित हुआ है. भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता विश्व परिप्रेक्ष्य में सर्वोत्तम है. भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक दृष्टि से विश्व का आदर्श रहा है. तथागत गौतम बुद्ध, वर्धमान महावीर, सम्राट अशोक, संत कबीर, संत तुकाराम, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रामास्वामी परियार और भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर जैसे अनेक महापुरुषों ने मानवीय मूल्यों को विकसित करनेवाली महान परंपरा भारत में स्थापित की है. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने समानता, स्वतंत्रता, बंधुता, न्याय, वैज्ञानिक दृष्टिकोन और धर्मनिरपेक्षता के आधार पर भारतीय संविधान की रचना की. जिसने आज भारत और भारतीय नागरिकों को विकास की ओर अग्रसर किया है. भारत यह सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं से सुसज्जित देश है और अब तक लोकतांत्रिक मूल्यों का जतन कर आगे बढ रहा है. भारत को एक सशक्त और एकजुट राष्ट्र निर्माण करना है. यह केवल समानता, स्वतंत्रता, बंधुता, न्याय, वैज्ञानिक दृष्टिकोन तथा धर्मनिरपेक्षता के माध्यम से ही संभव होगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को भी उपयुक्त मानवीय और संवैधानिक मूल्यों के माध्यम से भारत को सक्षम राष्ट्र के रुप में विकसित करने का अवसर प्राप्त हुआ है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर विजयादशमी उत्सव संपन्न हो रहा है, किंतु कुछ अपरिहार्य कारणों से मैं इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पा रही हूं, इस अवसर पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं.

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