‘आज आवतण घ्या, उद्या जेवायला या’
कृषि संस्कृति के उत्सव बैल पोला को लेकर हर ओर उत्साह

* आज कंधे सिंकाई से शुरु हुआ कृषि संस्कृति का उत्सव
* सभी किसान अपने भरोसेमंद साथी बैलों के प्रति कल जताएंगे आभार
अमरावती/दि.21 – पूरे सालभर अपने साथ कंधे से कंधा मिलाकर सर्दी-गर्मी और बरसात का सामना करते हुए खेत-खलिहानों में काम करनेवाले बैलों के प्रति आभार जताने हेतु किसानों द्वारा बैल पोला का उत्सव बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. जिसके तहत खरीफ सीजन की बुआई से फारीग होने के उपरांत बैलों के कंधों की सिंकाई करते हुए उनका पूजन किया जाता ैहै. साथ ही उन्हें पुरणपोली का नैवेद्य अर्पित करते हुए उनके प्रति आभार भी ज्ञापित किया जाता है. साथ ही बैलों को आकर्षक ढंग से सजाते हुए उनकी शोभायात्रा भी निकाली जाती है. कृषि संस्कृति के साथ जुडे इस उत्सव का आज के आधुनिक दौर में भी महत्व बना हुआ है तथा ग्रामीण क्षेत्र में यह उत्सव बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
बता दें कि, इस वर्ष कल शुक्रवार 22 अगस्त को बैल पोला का उत्सव मनाया जाना है. जिसकी तैयारियां आज से ही शुरु हो गई है. जिसके तहत आज सभी किसानों ने खरीफ संबंधी कामकाज को निपटाते हुए थक चुके अपने साथीदार बैलों के कंधों की सिंकाई की और उनके पैरों की मालिश भी की गई. साथ ही उन्हें कल पोले पर नैवेद्य-प्रसाद हेतु आने का यह कहते हुए आमंत्रण भी दिया कि, ‘आज आवतण घ्या, उद्या जेवायला या.’ जिसके बाद कल किसानों द्वारा अपने बैलों को नहला-धुलाकर उनका आकर्षक साज-श्रृंगार किया जाएगा और फिर पोला छुटने के बाद बैलों को पुरणपोली का नैवेद्य व प्रसाद अर्पित किया जाएगा.
ज्ञात रहे कि, विदर्भ क्षेत्र में बैलपोला का उत्सव बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. सालभर किसानों के साथ खेतों में मेहनत-मशक्कत करनेवाले बैलों के उपकार के प्रति कृतज्ञता जतानेवाला यह त्यौहार विदर्भ क्षेत्र की कृषि संस्कृति का हिस्सा है. जिसके तहत पोले के पहले दिन ‘खांदे मलनी’ यानि कंधों सिंकाई की जाती है. जिसके तहत बैलों को सुबह के वक्त नहलाया जाता है और प्रत्येक किसान के घर धाप पर पाणगे, मसाला, भेंडी व चवली के पत्तों से वडे, कुम्हडे की सब्जी व कढी का नैवेद्य तैयार किया जाता है. पश्चात शाम के समय तबेले में बैलों की पूजा कर उनके कंधे पर दूध व मख्खन के मिश्रण को पलाश के पांच पत्तों से लगाया जाता है. साथ ही बैलों को नैवेद्य अर्पित करने के बाद पलाश की डंडी से कांसे की थाली बजाते हुए उन्हें आज आमंत्रण लेने और कल भोजन हेतु आने का सम्मानपूर्वक निमंत्रण दिया जाता है.
इसके उपरांत पोले वाले दिन वृषभ राजा यानि बैलों व बलिराजा यानि किसानों का कुछ अलग ही थाट होता है. जिसके तहत शाम के समय बैलों के सिंगों पर बेगड डालकर सजाया जाता है और रंगीन कासरे, घुंगरुओं की माला, तोडा व झुला डालकर बैलों को गांव में हनुमान मंदिर के पास बनाए गए तोरण के नीचे ले जाकर खडा किया जाता है. जहां पर महादेव के गीतों की प्रस्तुति होती है और तोरण तोडने के बाद पोला छुटता है. पोला छुटने के बाद बैलों को किसानों द्वारा अपने घर के दरवाजे पर ले जाकर खडा किया जाता और उनके सामने धान्य राशि डाली जाती है. साथ ही किसान परिवार की मुख्य महिला द्वारा साग के पत्ते पर बैलों को पुरणपोली का नैवेद्य अर्पित किया जाता है. साथ ही इस समय घर के सभी छोटे-बडे सदस्यों द्वारा बैलों का दर्शन लिया जाता है. साथ ही साथ बैलों के सिंग पर ककडी फोडकर उसके प्रसाद का वितरण किया जाता है.
* पोले के अगले दिन मनाये जाते है तान्हा पोला व पोले की कर
बैल पोले के अगले दिन तान्हा पोला यानि छोटा पोला मनाने के साथ ही पोले की कर मनाई जाती है. इस दिन जहां छोटे-छोटे बच्चे लकडी व मिट्टी से बने नंदी बैलों को लेकर घर-घर घूमते है. साथ ही किसानों द्वारा शिंदी के पत्तों से बने हुए रथ को बैल की पीठ पर रखकर गांव में जुलूस निकाला जाता है. इस रथ को द्वारका कहा जाता है. जिसे महादेव मंदिर ले जाने के बाद उसे मंदिर के शिखर पर रखा जाता है और इसके साथ ही कृषि संस्कृति के साथ जुडे तीन दिवसीय उत्सव का समापन किया जाता है.
* आज भी होता है बारह बलुतेदारी का पालन
गांव-देहातों की पहचान रहनेवाली बारह बलुतेदारी पद्धति अब धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है. लेकिन पोला पर्व के निमित्त बारह बलुतेदारी के मानकरियों का मान रखा जाता है. जिसके तहत खांदे मलनी वाले दिन गांव के कुंभार से लाए गए मिट्टी के बैलों का पूजन किया जाता है. जिसके लिए कुंभार को नकद भुगतान नहीं किया जाता, बल्कि इसके बदले अनाज दिए जाते है. इसी तरह पोले वाले दिन साग और पलाश के पत्ते मातंग समाज के मानकरी से लिए जाते है और पोले के तोरण के नीचे बैलों को नैवेद्य दिखाने के बाद नाभिक समाज के मानकरी द्वारा ही पानी पिलाया जाता है, यानि इस त्यौहार में प्रत्येक समाज का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है और उन सभी का किसानों व गाववासियों द्वारा सम्मान किया जाता है.





