मजबूरी का नाम ठाकरे परिवार
नवनीत राणा ने साधा उद्धव एवं राज ठाकरे पर निशाना

अमरावती/दि.20 – करीब 20 वर्ष के अंतराल पश्चात शिवसेना उबाठा के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे व मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बीच नजदिकियां बढ रही है. विगत जुलाई माह के दौरान मराठी के मुद्दे को लेकर उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे पहली बार एक मंच पर दिखाई दिए थे. जिसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भाजपा नेत्री व पूर्व सांसद नवनीत राणा ने कहा कि, एक महिला होने के नाते उन्हें ठाकरे परिवार के बीच दूरियां खत्म होते देख निश्चित तौर पर खुशी हुई है, परंतु जिन हालात के चलते उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे एक साथ आए है, उसमें दोनों का राजनीतिक स्वार्थ दिखाई दे रहा है और वे अपनी-अपनी मजबुरियों के चलते एक साथ आने पर विवश हुए है. ऐसे में इसे मजबूरी का नाम ठाकरे परिवार कहा जा सकता है.
पूर्व सांसद नवनीत राणा ने कहा कि, जिस समय शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का निधन हुआ था, यदि उसी समय दोनों भाई एक साथ आए होते, तो जनता के बीच संदेश गया होता कि, दोनों चचेरे भाई बालासाहब के विचारों के लिए एकजुट हुए है. लेकिन दोनों भाई अब एक साथ आते दिख रहे है, इसके पीछे निश्चित तौर पर उनका राजनीतिक स्वार्थ है. क्योंकि जब सत्ता हाथ से चली जाती है, तब मजबूरी में कुछ निर्णय लेने पडते है. यही वजह है कि, पिछले 20-25 वर्षों से एक-दूसरे के चेहरे भी नहीं देखनेवाले ठाकरे परिवार के सदस्य आज एक साथ आकर दीपोत्सव मना रहे है. जिसके चलते लोग अब इस स्थिति को मजबूरी का नाम ठाकरे परिवार कह रहे है.
इसके साथ ही पूर्व सांसद नवनीत राणा ने कहा कि, लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित होते ही देश में लोकतंत्र जीवित रहने का दावा करनेवाले लोग ही आज निर्वाचन आयोग पर बेसिर-पैर के आरोप लगा रहे है. क्योंकि विधानसभा चुनाव में भाजपा और महायुति को मिली जीत के चलते विपक्ष को अपना खुद का भविष्य अंध:कारमय दिखाई दे रहा है. यदि वाकई में वोटों की चोरी करना संभव होता, तो लोकसभा चुनाव में भाजपा व एनडीए गठबंधन की सीटे कम नहीं हुई होती. परंतु उस समय हमने विपक्ष पर अपने वोट चुराने का कोई आरोप नहीं लगाया, बल्कि चुनावी नतीजों को स्वीकार किया. क्योंकि हमें देश के मतदाताओं और निर्वाचन आयोग पर पूरा भरोसा है. वहीं विपक्ष के नेता पूरी तरह से संभ्रम का शिकार है. जिन्हें यही समझ में नहीं आ रहा कि, किस विषय को लेकर कब क्या बोलना है.





