दादाबाडी के सौंदर्य एवं संरचना के शिल्पकार : एंड. विजय बोथरा

अमरावती/ दि. 17 – शहर की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों में अग्रणी जैन दादाबाडी का बहुप्रतीक्षित भव्य नवीनीकरण सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया है. भगवान वासुपूज्य, आदिनाथ, महावीर स्वामी पार्श्वनाथ प्रभु के दिव्य देवालयों का तथा पूज्य जिनदत्त सूरी और जिनकुशल सूरी की पावन प्रतिमा से सुसज्जित यह तीर्थस्थल अब और अधिक दिव्य शांत एवं शांत एवं आकर्षक स्वरूप में श्रध्दालुओं के लिए उपलब्ध है.
सन 1963 में ंस्थापित दादाबाडी का यह पुननिर्माण एवं नवीनीकरण लगभग एक वर्ष की अत्यंत सूक्ष्म और पारंपरिक शिल्पकला आधारित प्रक्रिया का परिणाम है. जयपुर से विशेष कारीगरों की टीम आमंत्रित की गई. जिन्होंने परंपरागत नक्काशी और वास्तुशिल्प की बारीकियों को सुरक्षित रखते हुए पूरे परिसर को नया रूप प्रदान किया. दादाबाडी का नवीन रूप प्राचीनता और आधुनिकता के अद्बितीय समन्वय का सुंदर उदाहरण है .
विशेष उल्लेखनीय है पूरे दादाबाडी परिसर में उच्च कोटी की सामग्री से निर्मित कांच की अद्बितीय कलाकारी जो विदर्भ में विरल एकमात्र और आकर्षण का मुख्य केन्द्र बन चुकी है.
दादा गुंरूदेवों की जीवनगाथा को दर्शानेवाले चारों प्रेरणादायी पट श्रध्दालुओं के लिए विशेष आकर्षण बने हुए हैं. ये पट अहिंसा, तप, समाज सुधार और धर्म प्रचार की उनकी ऐतिहासिक यात्रा को जीवंत रूप से प्रस्तुत करते हैं. मुख्य देवालयों में भगवान वासुपूज्य, आदिनाथ, महावीर भगवान एवं पार्श्वनाथ प्रभ ु की सौम्य प्रतिमाएं तथा पूज्य जिनदत्त सूरी (बैठी मुद्रा) और जिनकुशल सूरी (खउी मुद्रा) की पावन प्रतिमाएं स्थल की आध्यात्मिक गरिमा को और प्रभावशाली बनाती है.
नवीनीकरण के पावन कार्य में सहयोग एवं समर्थन देनेवाले सभी दानवीरों, श्रध्दालुओं, समाजजनों तथा परिश्रमी कारीगरों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूं. सामूहिक प्रयास, श्रध्दा और समर्पण के बल पर दादाबाडी आज नई भव्यता के साथ आगामी पीढियों के लिए प्रेरणा का दिव्य स्त्रोत बनकर पुन: प्रतिष्ठित हुई है.





