मेलघाट के गांवों में घुंघरू बाजार की धूम
सप्ताह के बाद थाटया जंगल में रवाना

धारणी/ दि. 28 – फिलहाल मेलघाट में धारणी के नगराध्यक्ष के बारे में तेजी से घटनाएं हो रही है. राजनीति में एक का घुंघरू दूसरा ही पहनता है जबकि तीसरे की डफली पर ताल मारने का कारास्थान रचा जा रहा है. पैसो से सत्ता तो सत्ता से पैसा तत्व पर इनकमिंग सहित आउटगोइंग शुरू है. परंतु इन सभी घटनाओं से अलिप्त रहकर आदिवासी घुंघरू बाजार की पहचान है. सालभर जंगल में रहकर मवेशियों को चरानेवाले चरवाहा के लिए यह 7 दिन गांव में रहकर आराम करने के माने जाते है.
प्रत्येक बाजार में परंंपरागत लोकनृत्य सामूहिक तौर पर होते है. इकटठा हुई भेंट का एकत्रीकरण कर समान स्वरूप में उपभोग किया जाता है.
दिवाली का बाजार के जैसी यह भी घुंघरू बाजार में होती है. युवा – युवती श्रृंगार कर बाजार में आते है. एक दूसरे को देखने के लिए भी बाजार का उपयोग होता रहता है. इस भाग में गांव के वार्षिक अनुबंध से पालतू प्राणियों का जंगल में लालन पालन करनेवाले चरवाहा को थाटया कहते है. इसीलिए भोंगडू बाजार को थाटया बाजार भी कहते है. बाजार में नृत्य करते समय लोकगीतों का गायन करनेवाले को थाटया कहकर संबोधित किया जाता है. दिवाली के बाद के 7 दिन खत्म होने पर थाटया पुन: एक वर्ष के लिए काम में जुट जाते है. बाजार में हुर्र- हुर्र की आवाज एक अनोखा अलग आनंद देनेवाला है.





