28 साल से आधी-अधूरी पडी भूमिगत गटर योजना पर अब हाईकोर्ट हुआ सख्त

‘अमृत-2’ में योजना का समावेश नहीं रहने को लेकर पूछे कडे सवाल

* राज्य सरकार को नोटिस जारी, केंद्र को भी पक्षकार बनाने के निर्देश
* संबंधितों को अगले चार सप्ताह में पेश करना होगा अपना जवाब
* पूर्व मंत्री डॉ. सुनील देशमुख की याचिका पर हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई
अमरावती/दि.18- शहर की बहुप्रतीक्षित भुयारी गटर परियोजना को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने राज्य सरकार को कड़े शब्दों में सवालों के घेरे में खड़ा किया है. पूर्व पालकमंत्री डॉ. सुनील देशमुख द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने पूछा कि, अमरावती शहर को अमृत-2 योजना में शामिल क्यों नहीं किया गया. न्यायमूर्ति अनिल किलोर एवं रजनीश व्यास की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को भी प्रतिवादी बनाने के निर्देश दिए तथा राज्य के नगरविकास विभाग और महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण को चार सप्ताह में विस्तृत उत्तर प्रस्तुत करने का आदेश दिया.
* सालों से ठप्प पड़ी परियोजना, नागरिक झेल रहे खुली नालियों की समस्या
बता दें कि, राज्य के छह संभागीय मुख्यालयों में शामिल अमरावती शहर में भूमिगत गटर योजना का काम वर्ष 1997 में तत्कालिन पालकमंत्री जगदीश गुप्ता के कार्यकाल दौरान शुरु हुआ था. जिसके बाद विधायक निर्वाचित होने के साथ ही पालकमंत्री रहनेवाले डॉ. सुनील देशमुख के कार्यकाल दौरान इस योजना को अमलीजामा पहनाना शुरु किया गया था. परंतु इसके उपरांत विगत कई वर्षों से अमरावती शहर में भूमिगत गटर योजना का काम पूरी तरह से ठप पडा हुआ है. जिसके चलते खुली नालियों से निकलती बदबू और गंदगी के कारण शहर में डेंगू-मलेरिया जैसे रोगों का प्रकोप बढ़ा है, परंतु इसके बावजूद स्थानीय जनप्रतिनिधियों सहित प्रशासन द्वारा इस योजना के काम को पूरा करने हेतु कोई गंभीरता नहीं दिखाई जा रही. जिसके चलते पूर्व पालकमंत्री डॉ. सुनील देशमुख ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में इस विषय को लेकर एक जनहित याचिका दायर की थी. जिस पर कल हुई सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने मनपा प्रशासन सहित राज्य सरकार को कडी फटकार लगाने के साथ ही इस मामले में केंद्र सरकार को भी प्रतिवादी बनाए जाने के निर्देश जारी किए.
* मंजूरी व निधि मिलने के बावजूद योजना पडी है अधूरी
बता दें कि, भूमिगत गटर योजना की यात्रा 1997 में 123 करोड़ के मूल प्रारुप के साथ शुरू हुई थी. पश्चात इस योजना हेतु वर्ष 2008 में यूआईडीएसएसएमटी योजना के तहत 141.93 करोड़ की मंजूरी मिली थी. जिसके चलते वर्ष 2017 तक कई क्षेत्रों में पाइपलाइन और एसटीपी कार्य पूरे किए गए. इसी बीच वर्ष 2014 से 2019 के दौरान 25,000 प्रॉपर्टी कनेक्शन के लिए 59.56 करोड़ रुपए तथा संबंधित कार्यों के लिए कुल 87 करोड़ रुपए मंजूर हुए थे. लेकिन इसके बावजूद 2019 के बाद फिर गति पूरी तरह थम गई. इसके अलावा कॉन्ट्रैक्टर नियुक्त होने के बावजूद पिछले छह वर्षों में केवल 8,000 कनेक्शन ही जोड़े जा सके. यह जानकारी अपनी जनहित याचिका में देने के साथ ही पूर्व मंत्री डॉ. सुनील देशमुख की ओर से बताया गया कि जब-जब उन्हें शासन में काम करने का अवसर मिला, तब-तब योजना को आगे बढ़ाया गया, परंतु वर्तमान प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से काम पूरी तरह रुक गया.
* अब हाईकोर्ट के हस्तक्षेप से उम्मीद जगी
सुनवाई के दौरान न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अमरावती जैसे प्रमुख शहर की मूलभूत परियोजना को लटकाना उचित नहीं है. अब कोर्ट के हस्तक्षेप से कार्यों में तेजी आने की उम्मीद जताई जा रही है. इस बारे में पूर्व मंत्री डॉ. सुनील देशमुख का कहना रहा कि, यह शहर के स्वास्थ्य और भविष्य की लड़ाई है. न्यायालय के माध्यम से ही सरकार को योजना पूरी करने के लिए बाध्य किया जाएगा.
* आखिर क्यों अधर में लटकी है भूमिगत गटर योजना
इस मामले की सुनवाई के दौरान इस प्रकल्प की जिम्मेदारी रहनेवाले महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण ने विगत दिनों ही हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिज्ञा पत्र पेश करते हुए साफ तौर पर कहा कि, अमरावती मनपा द्वारा अपने हिस्से की निधि नहीं दिए जाने के चलते इस योजना का काम अधर में लटका हुआ है. मजीप्रा के प्रतिज्ञा पत्र के मुताबिक इस योजना हेतु अमरावती मनपा द्वारा 94.06 करोड रुपए देना अपेक्षित था, परंतु जून 2005 तक केवल 8.08 करोड रुपए ही जमा हुए. ऐसे में निधि का अभाव रहने के चलते प्रकल्प की स्थिति दयनीय हो गई है.
* अब तक कौन-कौनसे काम हुए
जानकारी के मुताबिक भूमिगत गटर योजना के तहत अमरावती शहर में अब तक गंदे जल की निकासी हेतु केवल 265 किमी की लंबाई वाली पाइप लाइन डाली जा सकी है और 24 हजार 646 में से केवल 8 हजार 422 संपत्तियों को भूमिगत गटर के नेटवर्क के साथ जोडा जा सका है. शहर में 44 एमएलडी की क्षमता वाला मलजल प्रक्रिया केंद्र भी साकार हो चुका है. परंतु उसे अब तक प्रयोग में नहीं लाया जा रहा. शहर के पांच जोन में से केवल दो जोन में ही भूमिगत गटर योजना को कार्यान्वित किया गया है. मुख्य पाइप लाइन से घरेलू कनेक्शन जोडने का काम काफी खर्चीला रहने के चलते इसे लेकर नागरिकों की ओर से कोई प्रतिसाद नहीं मिला था. जिसे ध्यान में रखते हुए सरकारी खर्च पर निशुल्क कनेक्शन देने का निर्णय लिया गया था. जिसके लिए 87 करोड रुपए का प्रावधान भी किया गया था, परंतु इतनी उठापटक करने के बावजूद भी अमरावती शहर में 28 साल बाद भूमिगत गटर योजना का काम आधा-अधूरा पडा रहने के साथ-साथ अधर में भी लटका हुआ है.
* क्यों नाकाम रही अमरावती मनपा?
अमरावती शहर में भूमिगत गटर योजना वर्ष 1997 से शुरु हुई थी. जिसकी मूल लागत 123 करोड रुपए थी. जिसमें से 66 फीसद यानि 82 करोड रुपए की निधि अमरावती महानगर पालिका को उपलब्ध करानी थी. ऐसे में अपने हिस्से की रकम उपलब्ध कराने हेतु मनपा द्वारा हुडको के पास कर्ज प्रस्ताव पेश किया गया था. लेकिन हुडको के नियमों व शर्तो की पूर्तता नहीं हो पाने के चलते हुडको ने कर्ज देने से मना कर दिया था. जिसके चलते हमेशा ही आर्थिक तंगी में घिरी रहनेवाली अमरावती मनपा द्वारा भूमिगत गटर योजना के काम हेतु निधि उपलब्ध नहीं कराई जा सकी और यह योजना आधी-अधूरी ही पडी रही. परंतु इसका खामियाजा अमरावती शहर के आम नागरिकों को भुगतना पड रहा है, क्योंकि भूमिगत गटर योजना का काम प्रलंबित रहने के चलते शहर में खुली नालियों से उठती बदबू व गंदगी की समस्या जस की तस बनी हुई है.

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