‘मिर्झा एक्सप्रेस’ का सफर थमा

डॉ. रफिक अहमद बेग मिर्जा का इंतकाल

* ख्यातनाम मराठी हास्य कवि के रुप में विख्यात थे डॉ. रफिक मिर्जा
* 69 वर्षीय डॉ. मिर्जा लंबे समय से चल रहे थे बीमार, आज सुबह 6 बजे ली अंतिम सांस
* दोपहर बाद ईदगाह में हुई नमाज-ए-जनाजा, कब्रस्तान में किए गए सुपुर्दे खाक
अमरावती/दि.28 – साहित्यिक जगत में ‘मिर्झा एक्सप्रेस’ के नाम से विख्यात तथा मराठी हास्य कविताओं में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके ख्यातनाम कवि डॉ. रफिक अहमद बेग मिर्जा का आज सुबह लगभग 6 बजे इंतकाल हो गया. वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. उनके निधन की खबर लगते ही साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई.
हास्य व्यंग्य को सरल और चुटीले अंदाज़ में प्रस्तुत करने वाले डॉ. मिर्जा ने वर्षों तक मंचों पर अपनी कलम और अंदाज़ से दर्शकों को हँसी से लोटपोट किया. मूलत: यवतमाल जिले के नेरपरसोपंत निवासी डॉ. मिर्जा कई वर्ष पूर्व अमरावती आकर बस गए थे और यहीं से साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय रहे.
डॉ. रफिक मिर्जा अपने पश्चात पत्नी फातिमा मिर्जा, बेटे रमीज मिर्जा और दो विवाहित पुत्रियों जबीन मिर्जा व हुमा मिर्जा के शोकाकुल परिवार सहित अपने लाखों चाहनेवालों को गमगीन छोड़ गए हैं. मरहूम डॉ. मिर्जा का जनाजा दोपहर 2 बजे उनके वलगांव रोड पर धर्मकांटा के आगे स्थित अपनी बेकरी के पास के निवास से निकला गया और जुमे की नमाज के बाद ईदगाह मैदान में नमाज-ए-जनाजा अदा की गई. जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को ईदगाह मैदान के पास स्थित कब्रस्तान में सुपुर्दे खाक किया गया. इस अवसर पर साहित्यिक जगत सहित विभिन्न क्षेत्रों से वास्ता रखनेवाले कई लोग उपस्थित थे. डॉ. मिर्जा के इंतकाल से शहर ने एक बहुमुखी और लोकप्रिय हास्य कवि को खो दिया है.
डॉ. मिर्झा ने अपनी 6 हजार से अधिक काव्य प्रस्तुतियों से देशभर में विशिष्ट पहचान बनाई थी और उन्हें वर्‍हाडी भाषा के संरक्षण के बड़े स्तंभ के तौर पर जाना जाता था. डॉ. मिर्झा मूल रूप से यवतमाल जिले के नेर तहसील के धनज-माणिकवाडा के निवासी थे, लेकिन लंबे समय से अमरावती के वलगांव रोड स्थित नवसारी परिसर में ‘मिर्झा एक्सप्रेस’ नामक निवास पर रह रहे थे. करीब 50 वर्षों तक हास्य-व्यंग्य के केंद्रबिंदु रहे डॉ. मिर्झा विदर्भ साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रह चुके थे. उनके 20 काव्यसंग्रह प्रकाशित हुए, जबकि ‘मिर्झा एक्सप्रेस’ नामक काव्य मैफिल के 6 हजार से अधिक मंचीय प्रस्तुतियाँ देशभर में की गईं. सिर्फ हास्य नहीं, सामाजिक, ग्रामीण, कृषि और राजनीतिक विरोधाभासों पर नर्म व्यंग्य के रूप में गूढ़ संदेश देना उनकी खासियत थी. उनका ‘मिर्झाजी कहिन’ नामक अख़बारी स्तंभ बेहद लोकप्रिय रहा. डॉ. मिर्जा की रचनाधर्मिता ने धर्म और भाषा की सीमाएँ तोड़ीं तथा मराठी और वर्‍हाडी बोली के प्रति उनका अगाध प्रेम था. धर्म और सामाजिक भेदभाव पर उन्होंने बड़ी सहजता से कलम चलाई. उनकी कविताएँ दर्शकों को हँसी के साथ गहरे चिंतन का संदेश भी देती थीं. उनकी चर्चित प्रस्तुतियों में ‘मोठा माणूस’, ‘सातवा महिना’, ‘उठ आता गणपत’, ‘जांगडबुत्ता’ जैसी कविताएँ बेहद लोकप्रिय रहीं. जांगडबुत्ता शब्द के जनक भी वे ही माने जाते हैं. इसके अलावा वे विदर्भ के ख्यातनाम संत फकीरजी महाराज मंदिर ट्रस्ट में वे ट्रस्टी थे.
डॉ. रफिक मिर्जा के पिता मिर्झा रज्जाक बेग उर्फ भाईजी यवतमाल के प्रभावशाली सामाजिक-राजनीतिक व्यक्तित्वों में गिने जाते थे, जबकि नागपुर के वरिष्ठ विधिज्ञ फिरदोस मिर्झा उनके चचेरे भाई हैं. डॉ. मिर्झा के निधन से वर्‍हाडी भाषा और हास्य साहित्य का एक मजबूत स्तंभ ढह गया है. साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जगत में उनके चाहने वालों में शोक और मायूसी का माहौल है.

* अभिनेता भरत गणेशपुरे पहुंचे अंतिम दर्शन हेतु
डॉ. रफिक मिर्जा के इंतकाल की खबर मिलते ही उनके अभिन्न मित्र रहनेवाले ख्यातनाम अभिनेता भरत गणेशपुरे तुरंत ही मिर्जा परिवार के निवासस्थान पर पहुंचे और उन्होंने ‘मिर्जा एक्सप्रेस’ के रुप में विख्यात वर्‍हाडी कवि डॉ. रफिक मिर्जा के अंतिम दर्शन किए. साथ ही मिर्जा परिवार के सदस्यों के प्रति शोक संवेदनाएं व्यक्त करते हुए उन्हें ढांढस भी बंधाया. इस समय अभिनेता भरत गणेशपुरे ने डॉ. रफिक मिर्जा के निधन को साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति भी बताया.

* सीएम फडणवीस व डेप्युटी सीएम अजीत पवार ने जताया शोक
ख्यातनाम वर्‍हाडी कवि डॉ. रफिक मिर्जा के अवसान की खबर मिलते ही राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने शोक व्यक्त करते हुए इसे साहित्य जगत के लिए एक बडी क्षति बताया और दिवंगत डॉ. रफिक मिर्जा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ ही उनके परिजनों हेतु शोक संवेदनाएं भी व्यक्त की.

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