महाबोधी विहार का व्यवस्थापन रहेगा संयुक्त

सर्वोच्च न्यायालय ने सुनाया महत्वपूर्ण फैसला

* व्यवस्थापन पूरी तरह बौद्धों को देने से स्पष्ट इंकार
नागपुर/दि.30 – भगवान गौतम बुद्ध ने जहां पर ज्ञान प्राप्ति की थी, उस बोधगया (बिहार) स्थित महाबोधी महाविहार मंदिर का पूरा व्यवस्थापन केवल बौद्ध धर्मियों को ही सौंपा जाए, इस आशय की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट इंकार कर दिया तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुलेखा कुंभारे द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए कहा कि, वे चाहें तो इस मामले को लेकर एक बार फिर हाईकोर्ट में जाकर याचिका दायर कर सकती है.
इस संदर्भ में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुलेखा कुंभारे द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि, बोधगया मंदिर अधिनियम 1949 पूरी तरह से असंवैधानिक है. फिलहाल इस कानून के अंतर्गत मंदिर का व्यवस्थापन 9 सदस्यीय समिति के पास है. जिसमें जिलाधीश के अध्यक्षता के तहत 4 बौद्धों व 4 हिंदुओं को बतौर सदस्य शामिल किया जाता है. परंतु जिलाधीश ज्यादातर समय हिंदू ही होते है. जिसके चलते निर्णय प्रक्रिया में बौद्धों का संख्यात्मक व प्रभावी प्रतिनिधित्व नहीं हो पाता. ऐसे में बौद्ध धर्मियों का आग्रह है कि, विश्व के सबसे पवित्री बौद्ध तीर्थ स्थान का पूरा नियंत्रण बौद्धों के ही अधिकार में हो, बौद्धों के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक संस्थाओं का व्यवस्थापन) व 29 (सांस्कृतिक अधिकार) के अंतर्गत उन्हें यह अधिकार मिलना ही चाहिए.
इसके साथ ही इस याचिका में यह दावा भी किया गया है कि, महाबोधी मंदिर को युनेस्को ने वैश्विक विरासत स्थल घोषित किया है. इसापूर्व 5 वें शतक के दौरान गौतम बुद्ध ने इसी स्थान पर बोधी वृक्ष के निचे ध्यान करते हुए ज्ञान की प्राप्ति की थी. जिसके बाद इस स्थल का बौद्ध धर्म के केंद्रबिंदू के तौर पर विकास हुआ. पश्चात कई शतक उपरांत सम्राट अशोक ने यहां पर भव्य-दिव्य वास्तु का निर्माण किया. परंतु भारत में आगे चलकर बौद्ध धर्म का प्रभाव कम हो जाने के चलते बौद्ध धर्म के सभी विहारों व मंदिरों पर हिंदू व ब्राह्मण पुजारियों का वर्चस्व निर्माण हुआ. पश्चात सन 1949 में देश की आजादी के बाद बौद्ध समाज ने महाबोधी मंदिर को दुबारा हासिल करने के लिए आंदोलन शुरु किया. जिसके परिणामस्वरुप बोधगया मंदिर कानून पारित हुआ. जिसके बाद व्यवस्थापन समिति में कुछ हद तक बौद्धों का समावेश किया गया. परंतु आज भी मंदिर में मुख्य पुजारी हिंदू ब्राह्मण ही होता है और सभी महत्वपूर्ण निर्णय जिलाधीश के अध्यक्षता वाली समिति द्वारा लिया जाता है एवं अधिकांश समय जिलाधीश पद पर हिंदू समाज का ही कोई अधिकारी आसीन रहता है. जिसके चलते लगभग यह सरकारी दृष्टिकोन बन गया है कि, यह केवल बौद्ध मंदिर नहीं है, बल्कि संयुक्त व्यवस्थापन वाला स्थान है.
इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट के. न्या. एम. एम. सुंदरेश व न्या. के. विनोदचंद्रन की खंडपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुनने से इंकार करते हुए कहा कि, खंडपीठ इस याचिका पर सुनवाई करने की बिलकुल भी इच्छुक नहीं है. हालांकि याचिकाकर्ता के पास हाईकोर्ट में जाने का पर्याय खुला हुआ है.

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