दिव्यांग कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए
अदिव्यांग कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना लागू की जाए

अमरावती/दि.27 – राज्य के शासकीय, निमशासकीय और अनुदानित शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग आरक्षण के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारियों को विशेष प्रकरण मानते हुए पुरानी पेंशन योजना लागू करने के संदर्भ में राज्य के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, प्रधान सचिव, अपंग आयुक्त तथा दिव्यांग कल्याण मंत्रालय के सचिव को महाराष्ट्र राज्य अपंग कर्मचारी संघटना की ओर से निवेदन सौंपा गया.
राज्य सरकार ने हाल ही में 1 नवंबर 2005 से पहले विज्ञापन जारी करने वाले तथा उसके बाद नियुक्त कर्मचारियों को पुरानी पेंशन योजना का लाभ देने का निर्णय लिया है. लेकिन इस निर्णय में दिव्यांग कर्मचारियों के साथ अन्याय हुआ है. अपंग हक अधिनियम 2016 के अनुसार दिव्यांग कर्मचारियों के प्रति समानता का सिद्धांत स्वीकार नहीं किया गया है. पुरानी पेंशन योजना से दिव्यांग कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक सुरक्षा प्राप्त हो सकती है, परंतु शारीरिक रूप से सक्षम कर्मचारियों को यह लाभ देते समय दिव्यांगों की समस्या को नजरअंदाज किया गया है.
राज्य में एनपीएस नीति वर्ष 2005 में लागू की गई थी. इसके बाद नियुक्त कर्मचारियों को अंशदायी पेंशन योजना (एनपीएस) में सम्मिलित किया गया. वास्तव में देखा जाए तो 2005 से पहले अनेक शिक्षण संस्थाओं में दिव्यांग उम्मीदवारों की सीधी सेवा से भर्ती नहीं हुई थी. न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था कि दिव्यांग उम्मीदवारों की भर्ती किए बिना अन्य किसी पद को मान्यता नहीं दी जा सकती. इसी कारण 2006 में राज्य के अनुदानित शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग उम्मीदवारों की सीधी सेवा से अपंग आरक्षित पदों पर भर्ती की गई.
वर्ष 2006 में भरी गई ये सभी पदें 2005 से पहले के लंबित पद (अनुशेष) थीं. ऐसे में दिव्यांग उम्मीदवारों का क्या दोष? यदि सरकार यह कहकर 2005 से पहले के विज्ञापन वाले सक्षम कर्मचारियों को पुरानी पेंशन दे रही है, तो 2006 में अनुशेष के अंतर्गत नियुक्त दिव्यांग कर्मचारी भी उसी के हकदार हैं.
1999 से 2002 के बीच कई दिव्यांग कर्मचारी अनुदानित शिक्षण संस्थानों में रिक्त पदों पर अल्पमानधन (कम वेतन) पर काम कर रहे थे. लेकिन उनके साथ समानता के सिद्धांत की अनदेखी की गई. 1995 के कानून के अनुसार भर्ती में क्रमांक 1, 3 और 67 की जगहें दिव्यांगों के लिए आरक्षित रखी जानी थीं, फिर भी व्यवहार में उन्हें नज़रअंदाज किया गया. कई अधिवेशनों में राज्य के कर्मचारियों की मांगें उठाई जाती हैं, लेकिन दिव्यांग कर्मचारियों के हक के लिए कोई भी जनप्रतिनिधि, विधायक या सांसद अपनी ठोस भूमिका प्रस्तुत करता नहीं दिखता – यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.
इस परिस्थिति में ऐसा प्रतीत होता है कि दिव्यांग अधिकार कानून 2016 की प्रभावी अमल केवल कागजों पर ही सीमित है. पेंशन की असली आवश्यकता दिव्यांग कर्मचारियों को है, क्योंकि यह उनके बुढ़ापे का सहारा है. सरकार का दृष्टिकोण इस विषय पर संवेदनशील होना चाहिए ताकि सेवानिवृत्ति के बाद भी दिव्यांग कर्मचारी आत्मसम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर सकें. इसी न्यायपूर्ण मांग को लेकर संघटना ने शासन को निवेदन भेजा है. यदि दिव्यांग कर्मचारियों को उनका यह अधिकार नहीं मिला, तो भविष्य में आंदोलन को और तेज किया जाएगा, ऐसा संगठन के जिलाध्यक्ष राजेंद्र दीक्षित ने कहा.





