टुकडा बंदी कानून रद्द, परंतु अध्यादेश कब
50 लाख नागरिकों की अमल पर टिकी निगाहें

पुणे/दि.14 – राज्य सरकार ने राज्य की महानगर पालिका, नगर पालिका व नगर पंचायत के साथ ही पीएमआरडीए के क्षेत्र अंतर्गत टुकडा बंदी को रद्द करने का निर्णय लिया है, परंतु इसके लिए प्रचलित कानून की धारा 8 (ब) के प्रावधान को रद्द करने के साथ ही महाराष्ट्र मुद्रांक शुल्क कानून के नियमों में भी बदलाव करना होगा. इस निर्णय पर अमल करने हेतु तुरंत एक अध्यादेश भी जारी करना होगा, अन्यथा आगामी शीत सत्र के दौरान विधान मंडल में इसे लेकर संशोधन करना पडेगा. जिसके बाद ही इस निर्णय का फायदा होगा. ऐसे में इस निर्णय से लाभान्वित होनेवाले 50 लाख नागरिकों को कुछ समय तक इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी.
महाराष्ट्र खेत जमीन टुकडे जोड व टुकडे बंदी कानून 1947 के अनुसार मुंबई व पुणे जैसे शहरों की सीमाओं के पास स्थित गांवों में जमीन के बडे पैमाने पर टुकडे होने के चलते राज्य सरकार ने ऐसे व्यवहारों पर पाबंदी लगा दी थी. जिसके चलते लाखों मध्यमवर्गीयों के सपनों के घर के व्यवहार अधर में लटक गए थे. जिसकी वजह से राज्य सरकार से इस विषय को लेकर सकारात्मक निर्णय लिए जाने की मांग की जा रही थी. पश्चात सरकार ने स्थानीय स्वायत्त निकायों के क्षेत्र सहित महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण व विशेष नियोजन प्राधिकरण के कार्यक्षेत्र एवं प्रादेशिक योजना (आरपी) में निवासी, वाणिज्यिक, औद्योगिक व अन्य किसी भी अकृषक प्रयोग हेतु तय किए गए क्षेत्रों में जमिनों के लिए लागू रहनेवाले टुकडा बंदी कानून को रद्द करने का निर्णय घोषित किया. इस निर्णय पर पूर्वलक्ष्यी प्रभाव से अमल करने हेतु कानून में सुधार सहित ऐसे टुकडों का व्यवहार 5 फीसद शुल्क लगाकर नियमित करने की बजाए बिना शुल्क नियमित करने हेतु हाल ही में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में निर्णय लिया गया था.
टुकडा बंदी कानून में मान्यता प्राप्त लेआऊट जमिनों के टुकडे करते हुए उन्हें विक्री करने की अनुमति प्रदान की गई है. जिसके लिए प्रचलित कानून की धारा 8 (ब) के प्रावधान को रद्द करना होगा. साथ ही महाराष्ट्र मुद्रांक शुल्क कानून के कुछ नियमों में भी बदलाव करने होंगे. ऐसे नियमों की वजह से ही 10 गुंठे से कम वाले टुकडों के दस्त पंजीयन करने पर पाबंदी लगाई गई है. ऐसे नियमों को भी हटाना होगा. जिसके बाद ही ऐसे टुकडे वाली जमिनों के दस्त पंजीयन करना संभव हो सकेगा. इस निर्णय पर तत्काल अमल करने हेतु राज्य सरकार को या तो राज्यपाल के हस्ताक्षर से अध्यादेश जारी कर 6 माह के भीतर उसे मान्यता प्रदान करनी होगी. या फिर विधान मंडल के शीतकालिन सत्र में सीधे कानून में संशोधन का प्रस्ताव पेश कर उसे मान्यता देनी होगी. जब तक इन दोनों में से किसी भी एक पर्याय पर अमल नहीं होता, तब तक इस निर्णय पर अमल होना संभव नहीं है, ऐसा अधिकारियों की ओर से बताया गया है.





