डंपिंग ग्राउंड मामले में मनपा को पडी सुप्रीम कोर्ट की फटकार
अदालत ने 47 करोड के जुर्माने को भी बताया कम

* न्यायमित्र की नियुक्ति का दिया सुझाव
* अगली सुनवाई हेतु 26 अगस्त की तारीख तय
अमरावती/दि.31 – अमरावती मनपा क्षेत्र अंतर्गत डंपिंग ग्राउंड को लेकर हो रही लेटलतिफी व लापरवाही के संदर्भ में दायर जनहित याचिका पर आज 31 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर की दो सदस्यीय खंडपीठ ने इस महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दे पर गंभीर टिप्पणियाँ करते हुए अमरावती मनपा को जमकर आडेहाथ लिया. साथ ही हरित लवाद द्वारा ऐसी बदतर स्थिति के लिए लगाए गए 47 करोड रुपयों के जुर्माने को बेहद कम बताया. साथ ही इस दो सदस्यीय खंडपीठ ने यह सुझाव भी दिया कि, इस जनहित याचिका में अदालत की सहायता के लिए न्यायमित्र यानि एमिकस क्युरी की नियुक्ति की जानी चाहिए.
आज हुई सुनवाई के दौरान अमरावती महानगर पालिका द्वारा दायर हलफनामे में यह बताया गया कि मिशन महाराष्ट्र अभियान (णीलरप) 2.0 के तहत बायोमाइनिंग व बायो-रिमेडिएशन का कार्य प्रस्तावित है जिसकी अनुमानित लागत 13.12 करोड़ है. इस परियोजना को 21 जुलाई 2025 को तकनीकी स्वीकृति मिल चुकी है और 25 जुलाई 2025 को प्रशासनिक स्वीकृति हेतु प्रस्ताव भेजा गया है. कुल अनुमानित विरासत कचरा 2,38,550 मीट्रिक टन बताया गया है. मनपा ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के पालन का दावा किया और भविष्य में नियमों के प्रति प्रतिबद्धता जताई.
वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता गणेश अनासाने ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत के समक्ष शपथपत्र द्वारा कई वास्तविक तथ्य एवं जीपीएस फोटोग्राफ्स प्रस्तुत किए, जिनसे अमरावती मनपा के दावों की वास्तविकता पर सवाल उठे. मनपा ने अपने पहले के हलफनामे (दिनांक 21.04.2025) में लिगेसी वेस्ट की मात्रा केवल 1,15,098 क्यूबिक मीटर बताई, जबकि वास्तविक मात्रा इससे कहीं अधिक है. प्रस्तुत जीपीएस चित्रों में यह स्पष्ट है कि बड़ी मात्रा में पुराना कचरा आज भी जमा है. कुछ प्रोसेसिंग यूनिट्स में भी कचरा पड़ा है. एसएलएफ कार्य से निकाले गए कचरे को पुराने कचरे को ढकने में उपयोग किया गया. मृत जानवरों को खुले में फेंका जाना व वर्षों से अधूरा बायो-रिमेडिएशन कार्य, पर्यावरण और जनस्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं.
दोनों पक्षों के युक्तिवाद को सुनने के बाद न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा ने मौखिक रूप से टिप्पणी करते हुए कहा कि, ऐसी बदतर स्थिति के लिए 47 करोड़ का जुर्माना भी बहुत कम है. साथ ही, पीठ ने यह सुझाव भी दिया कि इस जटिल जनहित याचिका में न्यायालय की सहायता के लिए एक न्याय मित्र की नियुक्ति की जानी चाहिए. इसके साथ ही अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अगस्त 2025 की तारीख तय की. ऐसे में अब सभी की निगाहें इस मामले की अगली सुनवाई की ओर लगी हुई है.





