दिवाली पर्व के लिए हजारों मजूदरों का काफिला लौटा अपने गांव
आदिवासी बंधुओं के आगमन से खिल उठा मेलघाट

* फसल से मिले पैसों से पर्व मनाने की तैयारी
परतवाडा/दि.19 – मेलघाट से सैकडों आदिवासी मजदूर पिछले तीन दिनों से दिवाली के त्योहार के लिए लौटने लगे हैं. एक महीने पहले ये लोग विदर्भ और अन्य जिलों में गए थे. शहर में जगह-जगह सैकडों वाहनों में सवार होकर देर रात तक हजारों आदिवासी अपने गांवों की ओर जाते देखे गए. फसल से मिले पैसों से उन्होंने दिवाली के लिए किराने का सामान और कपडे खरीदे.
हर साल सैकडों आदिवासी मजदूर सोयाबीन और अन्य फसलों की कटाई के लिए विदर्भ के दूसरे जिलों में जाते हैं. इस साल भारी बारिश के कारण आदिवासी फसलों की कटाई के लिए देर से निकले और दिवाली के त्यौहार को देखते हुए, वे मेलघाट के धारणी और चिखलदरा तहसील की घुमावदार घाटियों और घाटियों में स्थित आदिवासी कस्बों में लौट आए हैं. परतवाडा शहर के अंजनगांव स्टॉप, कॉटन मार्केट, चिखलदरा स्टॉप, होली क्रॉस परेड ग्राउंड और बस स्थानक परिसर में भारी भीड उमडी है. बाजार के बाद आदिवासी भाइयों का काफिला अपने-अपने गांव पहुंचेगा.
* दिवाली की खरीदारी
खेतमालिक के चार पहिया वाहन से फसल काटने के लिए बच्चों के साथ गए आदिवासी परिवारों को उनके कार्यस्थल से अपने घर तक जाने की व्यवस्था निजी वाहन से करना पडता है. यहां से घर तक आने-जाने के लिए निजी वाहन का प्रबंध करना पडता है. ग्रामीणों का मुख्य बाजार परतवाडा है. फसल से प्राप्त पैसों से किराने का सामान, सब्जियां और अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदी जाती हैं. वापसी में आरामदायक यात्रा सुनिश्चित करने के लिए एक चार पहिया वाहन किराए पर लिया गया था.
* मेलघाट खिलने लगा
सुसर्दा, केरपणी, रायपुर, नागुढाना, बागलिंगा, बैरागड और निकटवर्ती मध्य प्रदेश के कुछ पाडा के आदिवासी मजदूर दर्यापुर, अकोला, अकोट, कारंजा और कुछ मराठवाडा तक जाते हैं. 400 से 500 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिलती है, ऐसा सुकराय धिकार नामक महिला ने बताया. उन्होंने आगे बताया कि, अब जब मजदूर मेलघाट लौट रहे हैं, तो मेलघाट खिल उठा है. होली की तरह, दिवाली का भी आदिवासियों के बीच पारंपरिक महत्व है.





