मेलघाट में बाघ का मंदिर, तीन वर्ष में एक बार भंडारा
बाघ की लकडी की मूर्ति, झूला भी

परतवाडा/ दि. 12 – मेलघाट के आदिवासी प्रकृति पूरक माने जाते हैं. इसी कडी में वे बाघ को श्रध्दा से कूल मामा कहते हैं. इतना ही नहीं तो गिरगुटी ग्राम में आदिवासियों ने बाघ का मंदिर भी स्थापित कर रखा है. यहां पूजा अर्चना के साथ तीन वर्ष में एक बार भंडारा प्रसादी भी आदिवासी लोग आयोजित करते हैं. भोग में गांव के लोग यथाशक्ति योगदान करते हैं.
अकोट- धारणी रोड के किनारे तेंदुसोडा- जामली- अंबा पाटी- गिरगुटी मार्ग पर गिरगुटी में खेत में बाघ का मंदिर है. लकडी की मूर्ति बनी है. जिसका समय- समय पर रंगरोगन जनजातीय लोग करवाते हैं. इस मूर्ति में बाघ के गले के आसपास आयल दिखाई देती है. कूलामामा के मंदिर के रूप में यह प्रसिध्द है. छोटे मंदिर में 25 वर्ष पहले मूर्ति स्थापित की गई थी. आदिवासी बांधव पीढी दर पीढी अनेक वर्षो से यहां श्रध्दापूर्वक शीश झुकाते हैं. पंचक्रोशी के जनजातीय लोग यहां आने का दावा किया गया है. आदिवासी बांधव श्रध्दा से अपनी मनोकामना भी इस मंदिर में रखते हैं.
चैत्र में भारी भीड
मनोकामना पूर्ण होने पर आदिवासी यथाशक्ति रूप से भोजन प्रसादी देते हैं. चैत्र माह में बडी संख्या में जनजातीय लोग यहां आते हैं. मंदिर में आपको इन लोगों द्बारा चढाए गये लोहे के त्रिशूल, लकडी के बने छोटे बाघ, लकडी के झूले दिखाई देंगे.
आसपास बाघ
गिरगुटी के जंगल में वन्य जीवों के साथ बाघों का बसेरा है. जंगल और खेत में जाते समय बाघों से सुरक्षा होने और अपने पालतू जानवरों को बाघ हानि न पहुंचाए, इस श्रध्दा से आदिवासी बांधव कूलामामा के मंदिर में पूजा करते हैं.





