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कैदियों द्वारा उगाये गये अनाज से 1,150 लोगों को मिलता है दो वक्त का भोजन

अमरावती/प्रतिनिधि दि.12 – जाने-अनजाने अपने हाथों से घटित अपराधों का सजा के रूप में प्रायश्चित करनेवाले मध्यवर्ती कारागार के कैदियों द्वारा की जाती खेती-किसानी से इसी कारागार में बंद 1,150 कैदियों को दो वक्त के भोजन हेतु साग-सब्जियां मिलती है. खुले कारागार में रखे गये कैदियों को खेती-किसानी के काम हेतु नियुक्त किया गया है, जो मौसम चक्र के अनुसार सेंट्रल जेल के खेत में साग-सब्जियों की फसल उगाते है.
बता देें कि, कैदियों को सुधारने और उनका पुनर्वसन करने हेतु चलायी जानेवाली योजना के तहत उन्हें उनके कौशल्यानुसार काम सौंपे जाते है. इसके तहत कुशल, अर्धकुशल व अकुशल ऐसी तीन श्रेणियों में कैदियों एवं उन्हें दिये जानेवाले कामों को विभाजीत किया गया है. यहां के खुले कारागार में रहनेवाले 35 से 40 कैदियों पर खेती संबंधी कामों की जिम्मेदारी है, जो रोजाना सुबह 8 से दोपहर 1 बजे के दौरान नियमित तौर पर खेतों में काम करते है और कारागार में बंद कैदियों का भोजन तैयार करने हेतु रोजाना लगनेवाली सब्जियां उगाते है. जेल के खेत में मौसम चक्र के अनुसार प्याज, आलु, बैंगन, गोभी, पालक, सम्हार, मिरची व ढेमसे जैसी साग-सब्जियों के साथ-साथ गेहू व धान की फसल भी ली जाती है. वहीं सरकार की ओर से भी कैदियों के लिए अनाज की आपूर्ति की जाती है और मसाले, अंडे, दूध, केले व मांस जैसी वस्तुओं की आपूर्ति करने हेतु ठेकेदार की नियुक्ति की गई है.

सेंट्रल जेल में कुल कैदी – 1,150
पैरोल पर बाहर रहनेवाले कैदी – 342
गंभीर अपराधोंवाले कैदी – 125

  • जेल में क्या-क्या बनाया जाता है

  • सतरंजी, दरी  – कारागार में बुनाई काम अंतर्गत दरी व सतरंजी बनाई जाती है. जिसे सरकार की मांग के अनुरूप भेजा जाता है. वहीं इस समय कारागार के उडान मॉल में भी इन वस्तुओं को बिक्री हेतु उपलब्ध किया गया है.
  • बेड, टेबल, मंदिर – बढाई काम अंतर्गत कैदियों के जरिये सागौन की लकडी से बेड, टेबल व मंदिर जैसे घरेलू प्रयोग के साहित्य बनवाये जाते है. जिनकी बिक्री की जाती है. साथ ही सरकारी कार्यालयों में भी फर्निचर तैयार करके दिये जाते है.
  • एलईडी लाईट – समूचे राज्य में केवल अमरावती सेंट्रल जेल मे ही कैदियों द्वारा एलईडी लाईट बनाये जाते है. जिन्हें मांग के अनुरूप अन्य कारागारों में भी भेजा जाता है.
  • मास्क – कोविड संक्रमण काल के दौरान सेेंट्रल जेल के कैदियों द्वारा जिला प्रशासन व स्वास्थ्य महकमे को मास्क की आपूर्ति करने का काम किया गया और इस दौरान 1 लाख से अधिक मास्क बनाकर बेचे गये.

 

  •  कोविड काल में हुए डेढ करोड रूपयों के काम

स्थानीय मध्यवर्ती कारागार में बढाई काम, सिलाई काम व बुनाई काम के साथ-साथ एलईडी लाईट का काम किया जाता है. यहां के कैदियों द्वारा तैयार किये जानेवाली एलईडी लाईट समूचे राज्य के कारागारों में भेजे जाते है. विशेष रूप से कोविड संक्रमण काल के दौरान कोविड अस्पतालों को बेड तथा जिला स्वास्थ्य प्रशासन को मास्क तैयार कर दिये गये. उक्ताशय की जानकारी देते हुए कारागार प्रशासन द्वारा बताया गया कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान कैदियों द्वारा करीब डेढ करोड रूपये के काम किये गये है. साथ ही अब कैदियों द्वारा तैयार की गई वस्तुओं की बिक्री हेतु स्वतंत्र मॉल भी उपलब्ध कराया गया है.

  •  पैरोल… ना बाबा ना…

– कोविड संक्रमण के खतरे को देखते हुए जेल में भीडभाड को कम करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सरकार ने कुछ नियमों व शर्तों के तहत कैदियों को पैरोल पर जेल से रिहा किया, लेकिन पैरोल पर छूटने के बाद पुलिस द्वारा लगातार नजर रखे जाने के चलते कई कैदियों का यह मानना है कि, पैरोल की बजाय कारागार में रहना ही ज्यादा ठीक है.

– अमरावती सेंट्रल जेल से करीब 342 कैदी पैरोल पर छोडे गये है, जो अब भी जेल से बाहर है. लेकिन कोविड संक्रमण के खतरे की वजह से उन्हें पुरा समय घर पर ही रहना पडता है और वे घर से बाहर नहीं जा पाते. साथ ही वहां जाने पर समाज उन्हें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता. इसके साथ ही उन्हें रोजाना सुबह-शाम पुलिस थाने में हाजरी भी लगानी पडती है. जिसकी वजह से पैरोल पर छूटे कई कैदी त्रस्त हो चले है और अब वापिस जेल लौटना चाहते है.

जेल में कैदियोें की दिनचर्या सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच रहती है. इस दौरान सभी सजायाप्ता कैदियों को दैनिक काम करने ही पडते है. इसके तहत कई कैदी भोजन तैयार करते है. वहीं अन्य कैदी बढाई काम, बुनाई काम, सिलाई काम व कृषि संबंधी काम करते है. इसके अलावा कुछ कैदियों को साफ-सफाई संबंधी काम दिये गये है.
रमेश कांबले
अधीक्षक, अमरावती मध्यवर्ती कारागार

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