यवतमाल/दि.5- उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी.ए.सानप ने दिग्रस के किसन बलिराम राठोड और पुणे के विभूती राधारमण देवनाथ पर रिश्वतखोरी में लिप्त होने के आरोप से छुटकारा देने की याचिका को अस्वीकार कर दिया. प्रकरण 20 वर्ष से अधिक पुराना है. निचली अदालत के बाद अकोला में विशेष न्यायाधीश ने भी दोनों राठोड तथा देवनाथ पर सितंबर 2016 में भ्रष्टाचार प्रतिबंधक मामले में दोषी माना था.
शुरुआत में इस प्रकरण में तीन आरोपी रहे यातायात निरीक्षक हीरामन गत्ते की 29 अप्रैल 2011 को मौत हो गई. हाइकोर्ट में दूसरे याची विभूती देवनाथ की भी सुनवाई दौरान मृत्यु हो गई. अब किसन राठोड की याचिका भी राठोड आरोप पत्र दाखिल होने से पहले 30 जून 2005 को सेवानिवृत्त हुआ. राज्य पथ परिवहन निगम में देवनाथ अभियंता और राठोड विभागीय नियंत्रक था.
अभियोजन पक्ष के अनुसार तीनों आरोपियों को रिक्त पदों की पूर्ति करना था. उन्होंने 267 चुने गए उम्मीदवारों की सूची और अंकों में हेराफेरी का मामला उजागर होते ही आरोपी राठोड ने चयन सूची नष्ट कर दी. आरोपियों ने जूठी मार्कलिस्ट भी बनाई थी. असली दस्तावेज नष्ट कर नकली कागजात बनाए गए थे. हाइकोर्ट ने इन्हीं मुद्दों को रेखांकित किया और आरोपियों को दोषमुक्त करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने माना कि आरोपियों के विरुद्ध लगाए गए आरोपों के सबूत है. कोर्ट में निचली अदालत को इस मामले का एक वर्ष के अंदर फैसला करने के निर्देश दिए हैं. सरकारी पक्ष एपीपी अमित चुटके ने रखा.