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पांढूर्णा के गोटमार मेले में २७३ लोग घायल

धारा १४४ का किया गया उल्लंघन

अमरावती/दि.७ – बीते सप्ताह भर से कोरोना पार्श्वभूमि पर पांढूर्णा में गोटमार मेले का आयोजन नहीं होना चाहिए. इसके लिए जिलाधिकारी व अन्य अधिकारियों की बैठक लेकर घोषणा भी की गई थीं. लेकिन मंगलवार को प्रशासन के आदेशों की धज्जियां उडाते हुए पांढूर्णा व सावरगांव में रहनेवाले लोगों ने गोटमार शुरू की.
पांढूर्णा के प्रसिद्ध गोटमार मेले को सुबह ११ बजे के दरम्यिान शुरूआत हुई. सुबह ७ बजे सावरगांव के कावले परिवार की ओर से जाम नदी पुल के मध्य हिस्से में झंडा बांधा गया. इसके बाद सुबह १० बजे नागरिकों ने झंडे की पूजा की. पश्चात गोटमार समिति व शांति समिति की बैठक में हुए निर्णय के बाद झंडा पांढूर्णावासी नागरिकों के स्वाधीन कर मां चंडिका के मंदिर में ले जाकर रखा जाना था. सावगांव और पांढूर्णा पक्ष की आम सहमति से यह झंडा ले जाया जाना था. लेकिन ऐन समय पर आम सहमति नहीं बनने से पांढूर्णा के नागरिक झंडा ले जाने पर विफल साबित हुए. जिसके बाद सुबह ११ बजे से गोटमार की शुरूआत हुई. शाम ६ बजे के दरम्यिान गोटमार रोक दी गई. इस गोटमार में २७३ से अधिक लोग जख्मी हुए है. जबकि दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए है. बीते ३०० सालों की यह परंपरा आज भी बरकरार है. बीते कुछ दिनों से पांढूर्णा शहर और तहसील में धारा १४४ लागू की गई है. परंतु नियमों का उल्लंघ कर गोटमार का आयोजन इस साल भी किया गया.
इस गोटमार में वहां पर तैनात पुलिस कर्मचार भी घायल होने से बाल-बाल बच गए. इसके बाद वहां से पुलिस बंदोबस्त हटा दिया गया. इसके बाद अपर जिला पुलिस अधीक्षक शशांक आनंद ने तत्काल पांढूर्णा के समाज भवन परिसर में लगाया गया पुलिस बंदोबस्त भी हटा दिया.
पांढूर्णा के नागरिक हमेशा ही झंडा तोडने का प्रयास करते है और सावरगांव के नागरिक झंझे की सुरक्षा करते है. इस बार जाम नदी मं पत्थरों की कमी देखने को मिली. इस दौरान कुछ नागरिक घर की बोरियों में जमा रखे पत्थर लेकर गोटमार स्थल पर पहुंचे थे. जबकि कुछ नागरिक नदी के पत्थर बरसाते पाए गए.
वहीं इस दौरान गुजरी में भी तनाव की स्थिति निर्माण हुई थीं. यहां पर पुलिस ने लोगों पर नियंत्रण रखने का प्रयास किया. लेकिन लोगों ने गुस्से में आकर पुलिस वाहनों पर भी पथराव करना शुरू किया. जिसके चलते पुलिस कर्मचारी वहां से वाहन लेकर वापस लौट गए. दोपहर के समय गोटमार मेले में पांढूर्णा व सावरगांव में लोगों की भीड़ उमडी थी और एक दूसरे पर पत्थर बरसाने जारी थे. इससे पूर्व ही पांढूर्णा के जिलाधिकारी सौरभकुमार सुमन, जिला पुलिस अधीक्षक विवेक अग्रवाल सहित अन्य अधिकारियों ने दोनों पक्षों के नागरिकों की बैठक लेकर कोरोना पार्श्वभूमि और मानवाधिकार नियमों का पालन कर गोटमार सांकेतिक तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया था. प्रशासन के निर्णय को दोनों पक्षों ने मान भी लिया था. लेकिन आज सुबह ११ बजे से दोनों पक्षों ने प्रशासन के निर्णय की धज्जियां उडाते हुए तुफान पथराव किया. जिससे जिला व पुलिस प्रशासन विफल नजर आया.

  • अब तक १३ लोगों की मौत

वर्ष १९७८ से गोटमार मेले का सिलसिला लगातार चलते आ रहा है. इस गोटमार में अब तक १३ लोगों की जान जा चुकी है और हजारों भाविक घायल हुए है. प्रशासन की ओर से अनेक मर्तबा इस खूनी परंपरा को बंद करने का प्रयास किया है. लेकिन प्रशासन को इसमें सफलता नहीं मिल पायी है. वर्ष १९८५ में तत्कालीन प्रशासन ने दोनों गांव के नागरिकों को रबर की गेंदे एक दूसरे पर फेंकने के लिए उपलब्ध कराकर दिए थे. लेकिन उनका यह प्रयास भी विफल साबित हुआ.

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