अमरावतीमुख्य समाचार

चिखलदरा में 9 करोड से बनी आश्रमशाला मात्र 10 साल में हुई ‘भंगार’

  • सरकार ने 25 जनवरी से पहले आश्रमशाला खाली करने के आदेश दिये

  • वडगांव स्थलांतरित होगी आश्रमशाला

  • प्रतिमाह साढे तीन लाख रूपये का किराया देना होगा

चिखलदरा/प्रतिनिधि दि.20 – चिखलदरा क्षेत्र में स्थित एकमात्र सीबीएसई पैटर्न स्कुल के तौर पर पहचान रखनेवाली एकलव्य आदिवासी आश्रमशाला हेतु दस साल पहले 9 करोड रूपयों की लागत से इमारत बनायी गयी थी, जो मात्र दस साल में ही जर्जर हो गयी है. जिसे देखते हुए सरकार की ओर से इस आश्रमशाला को आगामी 25 जनवरी से पहले यहां से अन्यत्र स्थलांतरित करने का आदेश जारी किया गया है. जिसके चलते इस आश्रमशाला को वडगांव स्थित किराये की इमारत में स्थलांतरित किया जा रहा है. जिसके लिए प्रतिमाह साढे तीन लाख रूपये का किराया भी अदा करना होगा.
उल्लेखनीय है कि, करीब 10 वर्ष पूर्व आदिवासी बहुल चिखलदरा क्षेत्र में आदिवासी बच्चों को शिक्षा के मुख्य प्रवाह में लाने हेतु यहां पर सीबीएसई पैटर्न की स्कुल शुरू करते हुए एकलव्य आदिवासी आश्रमशाला स्थापित की गई थी. इस हेतु करीब 9 करोड रूपयों की लागत से आश्रमशाला के लिए इमारत का निर्माण किया गया था. जहां पर 420 बच्चों के रहने-खाने और पढाई करने का इंतजाम किया गया था. किंतु शुरूआती दौर से ही यह इमारत विवादों में फंसी रही, क्योेंकि नवनिर्मित इमारत में पहली बारिश से ही पानी टपकने की समस्या देखी गयी. साथ ही समय बीतने के साथ ही यहां पर सीवर, लैट्रीन, बाथरूम, पानी की पाईपलाईन व इलेक्ट्रीक फिटींग आदि को लेकर भी समस्या सामने आनी शुरू हो गयी. जिसके लेकर वर्ष 2015 में स्कुल के प्रिंसिपल ने पहली बार अपने विभाग के वरिष्ठाधिकारियों को पत्र लिखा. पश्चात नागपुर से यूएनआयटी की टीम ने इस इमारत का मुआयना करते हुए इसकी रिपोर्ट निगेटीव दी थी. जिसके बाद आदिवासी विकास विभाग के सचिव मनीषा वर्मा ने भी चिखलदरा का दौरा करते हुए इस इमारत का प्रत्यक्ष मुआयना किया था और यहां के खस्ताहाल को देखकर संबंधित ठेकेदार को कडी फटकार भी लगायी थी. किंतु बावजूद इसके हालात में कोई सुधार नहीं हुआ, और अब इमारत की छत से स्लैब के टुकडे टूटकर बच्चों पर गिर रहे है. जिसकी जानकारी मिलते ही इस इमारत को तुरंत खाली कर इस आश्रमशाला को किसी निजी इमारत में स्थलांतरित करने का निर्णय लिया गया है.

बिल्डींग में रेती की बजाय डस्ट का प्रयोग

इस पूरे मामले को लेकर की गई पडताल में पता चला है कि, इस इमारत का निर्माण करने हेतु संबंधित ठेकेदार को आदिवासी विकास विभाग द्वारा अबाउ यानी ज्यादा दर से काम दिया गया था. किंतु बावजूद इसके संबंधित ठेकेदार ने इस इमारत का बेहद निकृष्ट दर्जेवाला निर्माण किया है और बिल्डींग में रेती की बजाय डस्ट का प्रयोग किया गया है. हद तो यहां तक है कि, स्लैब में भी डस्ट का ही प्रयोग किया गया, जिसकी वजह से इस इमारत की छत निर्माण के समय से ही कमजोर है, और अब यह इमारत मात्र दस वर्षों में ऐसी स्थिति में पहुंच गयी है, जब यहां पर कोई बडा हादसा घटित होने की संभावना से इन्कार भी नहीं किया जा सकता. ऐसे में बेहद जरूरी है कि, इस इमारत के निर्माण कार्य में हुए भ्रष्टाचार की कडाई के साथ जांच की जाये. साथ ही घटिया निर्माण की वजह से अब तक हुए नुकसान और भविष्य में होनेवाले संभावित खर्च की भरपाई संबंधितों से की जाये.

Related Articles

Back to top button