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सनातन को लेकर बहुत झूठ फैलाया गया, अब सत्य उजागर होना जरुरी

ख्यातनाम वक्ता डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का कथन

* दैनिक अमरावती मंडल को दिया विशेष साक्षात्कार
* हिंदूत्व का नाम लेकर सत्ता चलाने वाले लोगों को जमकर लिया आडे हाथ
अमरावती /दि.1- इस धरती पर जिस दिन सूरज की पहली किरण पडी और जिस दिन से इस धरती पर जीवन पल्लवित हुआ, उस दिन से लेकर आज तक इस धरती पर धर्म के रुप में केवल और केवल सनातन धर्म ही स्थापित और प्रतिष्ठित है. इसके अलावा अन्य जिन विचारधाराओं को धर्म की संज्ञा दी जाती है, वह गलत है. क्योंकि सनातन के अलावा इस दुनिया में अन्य कोई धर्म नहीं है. बल्कि अलग-अलग प्रवर्तकों द्बारा शुुरु किए गए पंथ है. अत: किसी भी पंथ को धर्म का नाम लेकर उसकी तुलना सनातन धर्म के साथ नहीं की जा सकती. परंतु इसके बावजूद विगत 70 वर्षों से इस देश में सनातन को लेकर सुनियोजित ढंग से बडे पैमाने पर झूठ फैलाया गया. ताकि सनातनियों के मनोबल को तोडा जा सके और सनातन की महत्ता को कम करते हुए अन्य किसी पंथ को स्थापित या प्रतिष्ठित किया जा सके. ऐसे में हम इस उद्देश्य को लेकर मैदान में उतरे है कि, सनातन को लेकर सत्य उजागर किया जाए और सनातन को उसकी प्रतिष्ठा वापिस दिलाई जाए. इस आशय का प्रतिपादन ख्यातनाम विचारक व वक्ता डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ द्बारा किया गया.
डॉ. गजेंद्र वसु स्मृति चेरिटेबल ट्रस्ट के निमंत्रण पर स्थानीय दशहरा मैदान पर आयोजित ‘सत्यमेव जयते’ व्याख्यान को संबोधित करने हेतु पहुंचे डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने गत रोज अकोली रोड निवासी डॉ. विक्रम वसु के निवासस्थान पर दैनिक अमरावती मंडल से विशेष तौर पर बातचीत की. इस बातचीत के दौरान डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने उन लोगों को विशेष तौर पर आडे हाथ से लिया. जो हिंदूत्व की बात करते हुए देश की सत्ता हासिल करते है और सत्ता में आने के बाद हिंदूत्व को भुलकर सेक्यूलिरज्म की बातें करने लगते है. अपरोक्ष तौर पर डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के निशाने पर देश की मौजूदा भाजपा सरकार थी. भाजपा को हिंदूत्ववादी पार्टी व पीएम मोदी नेतृत्व वाली सरकार को हिंदूत्ववादी सरकार के तौर पर उल्लेखित किए जाने को लेकर अपनी तीव्र आपत्ति जताते हुए डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने स्पष्ट तौर पर कहा कि, कोई भी सरकार या प्रधानमंत्री हिंदूत्ववादी नहीं होते. बल्कि सरकार और प्रधानमंत्री संविधान से बंधे होते है, जो सेक्यूलिरज्म की शपथ दिलाया है. यह तो आम जनमानस और मीडिया होते है, जो किसी सरकार या प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री को हिंदूत्ववादी छवि के साथ बांध देते है. डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और युपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कभी भी खुद को हिंदूत्ववादी नेता के तौर पर घोषित या प्रचारित नहीं किया है. बल्कि उन्हें लेकर आम जनमानस ने अपनी धारणा बनाई है और कुछ मीडिया वालों ने उनकी इस तरह की छवि प्रस्तुत की है. जबकि वे दोनों भी संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री के पद पर है.
इसके साथ ही डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने यह भी कहा कि, जिस समय देश को ब्रिटीश सत्ता से आजादी दिलाने हेतु देश की बहुसंख्य जनसंख्या समर्पित भाव से काम कर रही थी, उस समय कुछ लोग अपने क्षुद्र राजनीतिक व व्यक्तिगत हितों को ध्यान में रखते हुए धर्म व पंथ के नाम पर देश को बांटने की साजिश रच रहे थे. चूंकि एक तबके ने अपने पंथ के नाम पर इस देश को तीन हिस्सों में विभाजित करवाया और अपना हिस्सा ले लिया. तो उन्हें उसी वक्त चाहिए था कि, वे अपने हिस्से वाले जमीन के टूकडे पर चले जाते. परंतु देश को बांटने की साजिश रचने वाले लोग बंटवारे के बावजूद हिंदूओं यानि सनातनियों के हिस्से में आए देश में बने रहे. ताकि आगे चलकर इस देश को एक बार फिर तोडा जा सके. वहीं ऐसे लोगों को पोषित करने का काम तत्कालीन सरकारों ने अपनी तुष्टिकरण वाली नीतियों को अपनाकर किया. जिसकी वजह से ऐसे लोगों के हौसले अब इतने अधिक बुलंद हो चुके है कि, वे देश की सत्ता और संवैधानिक व्यवस्था तक को चुनौती देने लगे है. जिसका नजारा हम मुंबई के आजाद मैदान से लेकर दिल्ली के शाहीन बाग तक में देख चुके है. डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के मुताबिक देश में पनप रही देश विरोधी मानसिकता एवं प्रवृत्ति को देखते हुए यह बेहद जरुरी हो चला है कि, ऐसे लोगों का बंदोबस्त करने हेतु चीन की तरह सख्त नीति अपनाई जाए.
15 अगस्त 1947 को मिली आजादी को भी पूरी तरह से झूठी व फर्जी आजादी बताते हुए डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि, खुदको आजादी का सबसे बडा पैरोकार व दावेदार बताने वाले लोगों ने उस समय ‘इंडियन इंडिपेंडन्स ड्राफ्ट’ के नाम पर किस तरह के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे. इसकी जानकारी आज तक देश क सामने नहीं आयी है. उन दस्तावेजों को सार्वजनिक किए जाने की मांग विगत कई दशकों से इस देश की आम जनता द्बारा की जा रही है. ताकि देश को आजादी की असल सच्चाई पता चल सके. परंतु चूंकि कभी आजादी मिली ही नहीं थी, बल्कि केवल कुछ नियमों व शर्तों के अधीन रहते हुए सत्ता हस्तांतरण ही हुआ था और देश में इंग्रेजों व उनकी महारानी के नियंत्रण वाली कठपूतली सरकार अस्तित्व में आयी थी. अत: देश के तत्कालीन कर्णधारों ने देश से उस तथाकथित आजादी के सच को छिपाए रखा.
इसके साथ ही इन दिनों सनातन को लेकर बेतुके व अनर्गल बयान देने वाले नेताओं को भी जमकर आडे हाथ लेते हुए डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि, सनातनियों की सहिष्णुता को कुछ लोगों ने हमारी कायरता समझ लिया है. साथ ही सनातनियों की मौजूदा पीढी भी कुछ हद तक धर्मभिरु व कायर ही है. जो ऐसे लोगों के बयानों का तुरंत अपनी कडी प्रतिक्रिया नहीं देती है. अन्यथा यदि इसी तरह के बयान किसी अन्य धर्म अथवा पंथ को लेकर दिए जाए, तो ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगने के साथ ही लोगों के गले कटने भी शुरु हो जाते है. इस बात का अनुभव पिछले साल खुद अमरावती शहर ने भी लिया है. जब नुपूर शर्मा के बयान का सोशल मीडिया पर समर्थन भर कर देने की वजह से कई लोगों को जान से मारने की धमकी मिली और अमरावती में उमेश कोल्हे नामक मेडिकल व्यवसायी की गला रेतकर हत्या तक कर दी गई. जिस दिन सनातनियों द्बारा भी अपने धर्म के खिलाफ बोलने वाले लोगों के लिए इसी तरह की प्रतिक्रिया दी जाएगी, उस दिन सनातन को लेकर अनर्गल व बेतुके बयान आने बंद हो जाएंगे.
इस साक्षात्कार के दौरान जब डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ से यह पूछा गया कि, क्या उनकी इस तरह की विचारधारा और भूमिका की वजह से 2 समाजों के बीच दूरी पैदा नहीं हो रही और क्या वे भी एक तरह से धार्मिक उन्माद अथवा कट्टरवाद वाला माहौल नहीं बना रहे, तो डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ का कहना रहा कि, यदि देश के दो प्रमुख समाजों के बीच वाकई आपसी भाईचारा रहा होता और दोनों समाजों के बीच कोई दूरी नहीं रही होती, तो आजादी से ठीक पहले इस देश का धर्म के नाम पर बटवारा नहीं हुआ होता. उस बंटवारे ने ही यह साबित कर दिया कि, यह दोनों समाज एक-दूसरे के साथ नहीं रह सकते. ऐसे में चूंकि धर्म के आधार पर यह देश हिंदूओं यानि सनातनियों को मिला है, तो यहां पर व्यवस्था भी सनातन के हिसाब से ही चलनी चाहिए थी और जिन लोगों ने अपने धर्म के नाम पर अपने लिए अलग देश मांगा था. उन्हें उसी वक्त यहां से चले जाना चाहिए था. अब उस समय जो लोग यहां से नहीं गए, उन्हें चाहिए कि, या तो इस देश की व्यवस्था के हिसाब से यहां पर रहे, या फिर अब भी यह देश छोडकर उस हिस्से में चले जाएं, जो उनके पुरखो ने बंटवारे के नाम पर अलग मांगा था. डॉ. पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ के मुताबिक इस देश की सरकारों ने भी इस व्यवस्था को अमल में लाना चाहिए तथा धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर हिंसा व उत्पात मचाने वाले लोगों से निपटने के लिए चीन जैसी सख्त नीति अपनानी चाहिए. अन्यथा आज जिस तरह के हालात यूरोप के फ्रान्स, स्वीडन व ब्रिटेन जैसे देशों में दिखाई दे रहे है. उसी तरह के हालात आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में दिखाई देंगे. जिसकी एक झलक रोहिंग्याओ को लेकर हुए आंदोलन के साथ-साथ सीएए के खिलाफ हुए आंदोलन और जून 2022 में पैदा हुए हालात के समय दिखाई दे चुके है. ऐसे हालात से निपटने के लिए जरुरी है कि, अभी से सतर्क होकर कडे कदम उठाने की तैयारी की जाए.

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