पब्लीसिटी स्टंट साबित हो रहे प्रकाश साबले के आरोप
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अब तक अपने आरोपों को लेकर साबले नहीं दे सके कोई प्रूफ
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जिप सीईओ येडगे ने जिलाधीश को सौंपी अपनी क्लोजनृर जांच रिपोर्ट
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जिलाधीश मामले की जांच सौंप सकते हैं पुलिस के पास
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झूठी खबर और अफवाह फैलाना महंगा पड़ सकता है साबले पर
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कई यूट्यूब चैनल भी आ सकते हैं कार्रवाई के लपेटे में
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पूरे मामले को लेकर जिलाधीश नवाल बेहद गंभीर व सख्त
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साबले ने जिप आमसभा में कोविड बीमा घोटाले का आरोप लगाकर मचाई थी सनसनी
अमरावती/प्रतिनिधि दि. 26 – विगत सोमवार को जिला परिषद की आमसभा के दौरान जिप सदस्य प्रकाश साबले ने यह कहकर सनसनी मचा दी थी कि कई सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों ने सवैतनिक अवकाश सहित कोविड बीमा पॉलिसी का लाभ लेने हेतु जानबूझकर अपनी कोविड टेस्ट रिपोर्ट पॉजीटिव दिखाई है और इसमें कुछ कोविड टेस्ट लैब के लोगों की मिलीभगत भी थी. साबले ने यहां तक दावा किया था कि खुद उन्हें एक कोविड टेस्ट लैब से इस तरह की ऑफर मिली थी. साबले द्वारा लगाये गये आरोपों की वजह से जिले में कोरोना संक्रमितों की लगातार बढ़ती संख्या के साथ ही विगत एक वर्ष से प्रशासन व स्वास्थ्य महकमे द्वारा किये जा रहे कामों पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये थे और लोगों में एक तरह के अविश्वास का भाव पैदा होने लगा था. ऐसे में इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए प्रशासन ने साबले से उनके द्वारा लगाये गये आरोपों के संदर्भ में आवश्यक दस्तावेजों व सबूतों की मांग की. लेकिन हैरत की बात यह है कि आरोप लगाने के चार दिन बाद तक प्रकाश साबले अपने आरोपों के संदर्भ में प्रशासन को कोई सबूत नहीं दे पाये हैं. ऐसे में अब काफी हद क यह माना जाने लगा है कि जिप सदस्य प्रकाश साबले के आरोप किसी पब्लिसिटी स्टंट से ज्यादा नहीं थे. लेकिन कोरोना संक्रमण काल के दौरान महामारी प्रतिबंधात्मक कानून के लागू रहते समय साबले ने जिस तरह की सनसनी फैलाने का काम किया है, उसे लेकर प्रशासन अब उनके खिलाफ कोई सख्त कदम भी जरूर उठा सकता है, ऐसी संभावना दिखाई दे रही है. साथ ही साबले द्वारा लगाये गये आरोपों के आधार पर जिन लोगों ने यूट्यूब चैनलों सहित सोशल मीडिया साईट्स पर भ्रामक खबरे फैलाई, शायद वे तमाम लमाम लोग भी अब कार्रवाई के दायरे में आ सकते हैं.
बता दें कि विगत सोमवार को जिप की आमसभा में आरोप लगाने के साथ ही जिप सदस्य प्रकाश साबले ने कई मीडियाकर्मियों के सामने भी अपने आरोप दोहराते हुए कहा था कि जिले में कई सरकारी अधिकारी व कर्मचारी फर्जी तरीके से कोविड पॉजीटिव दिखाए गये है. इसके लिए इन लोगों की निगेटिव रिपोर्ट को जानबूझकर फर्जी तरीके से पॉजीटिव दर्शाया गया है और उन्हें कोविड अस्पतालों में भर्ती किया गया है, ताकि उन्हें 15 दिनों का सवैतनिक लाभ मिलने के साथ ही कोविड बीमा पॉलिसी का भी फायदा मिल सके. साबले के मुताबिक इस पूरे मामले में कुछ कोविड टेस्ट लैब संचालकों की मिलीभगत है. उन्होंने यह भी दावा किया कि विगत दिनों खुद उन्होंने अपनी कोविड टेस्ट करवाई थी, तब लैब की ओर से उन्हें भी पॉजीटिव रिपोर्ट देने का ऑफर दिया गया था. साबले द्वारा यह आरोप लगाये जाते ही मानों पूरे जिले में भूचाल आ गया था और लोग-बाद कोरोना संक्रमितों की लगातार बढ़ती संख्या को संदेह की नजर से देखने लगे थे. वहीं इन आरोपों के बाद प्रशासन ने इस मामले की जांच शुरू की और साबले से उनके द्वारा लगाये गये आरोपों के संदर्भ में सबूत मांगे. लेकिन हैरत की बात यह है कि आमसभा में आरोप लगानेवाले साबले चार दिन बीत जाने के बावजूद अबतक जिप प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को किसी तरह का कोई सबूत नहीं दे पाये हैं.
इस बारे में दैनिक अमरावती मंडल द्वारा की गई पड़ताल में पता चला है कि प्रकाश साबले ने अपनी कोविड टेस्ट विगत 5 फरवरी को करवाई थी और उन्होंने अपना आरोप सोमवार 22 फरवरी को लगाया. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि अगर कोविड टेस्ट कराते ही साबले को फर्जी तरीके से पॉजीटिव रिपोर्ट देने की ऑफर मिल चुकी थी, तो वे अगले 17 दिनों तक चुप क्यों थे और उन्होंने उसी समय इसकी जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं दी तथा इसकी उसी समय शिकायत दर्ज क्यों नहीं करवाई. साथ ही इस समय एक सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि साबले ने अबतक उस लैब का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किया, जिस लैब से उन्हें ऑफर मिली थी और वे उस कोविड अस्पताल का नाम भी क्यों नहीं बता रहे, जहां फर्जी तरीके से कोरोना संक्रमित दर्शाए जानेवाले मरीजों को भर्ती करते हुए कोविड बीमा घोटाले को अंजाम दिया जाता है. इसके अलावा सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों पर इस घोटाले में शामिल रहने का आरोप लगानेवाले साबले अबतक ऐसे किसी भी अधिकारी व कर्मचारी का नाम भी प्रशासन को नहीं बता पाये हैं. बल्कि इन तमाम जवाबों की बजाय साबले ने अपने द्वारा लगाये गये आरोपों को लेकर प्रशासन को केवल एक लिखीत पत्र ही सौंपा है. ऐसे में प्रशासन के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि किसके खिलाफ कौनसी कार्रवाई की जाये.
बता दें कि साबले द्वारा आरोप लगाये जाने के बाद जिप प्रशासन ने उनसे दो दिन के भीतर इन आरोपों को लेकर तमाम सबूत सौंपने कहा था, किंतु चार दिन बीत जाने के बाद भी जब साबले की ओर से कोई सबूत नहीं मिला, तो जिप सीईओ अमोल येडगे ने अपनी ओर से मामले की जांच पूरी करते हुए अपनी क्लोजर रिपोर्ट जिलाधीश शैलेश नवाल को सौंप दी है. वहीं इस पूरे मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए जिलाधीश नवाल अब इस मामले की जांच को पुलिस के सुपर्द कर सकते हैं. ऐसी जानकारी है. यदि ऐसा होता है, तो यह जिप सदस्य प्रकाश साबले के लिए काफी महंगा सौदा साबित हो सकता है, क्योंकि तब उनके खिलाफ महामारी काल के दौरान अफवाह व भ्रामक खबरे फैलाने का मामला दज हो सकता है. इसके साथ ही साबले के आरोपों को सच मानकर अमरावती में कई लोगों ने अपने यूट्यूब चैनलों के जरिए कोरोना संक्रमितों की संख्या को लेकर कई तरह की खबरे चलाई थी, ऐसे लोगों पर भी कार्रवाई की गाज गिर सकती है. यह फिलहाल तय माना जा रहा है.
कुल मिलाकर चार दिन बाद यह लगभग पूरी तरह से साफ हो गया है कि साबले द्वारा लगाये गये आरोप किसी पब्लिसिटी स्टंट से अधिक नहीं थे. लेकिन इन आरोपों की वजह से जिला प्रशासन, स्वास्थ्य महकमे, मनपा तथा पुलिस विभाग द्वारा पिछले एक साल से किए जा रहे कामों पर सवालिया निशान जरूर लगता नजर आया. साथ ही आम लोगबाग इन आरोपों को सच मानकर कोरोना संक्रमितों की लगातार बढ़ती संख्या का मखौल भी उड़ाते नजर आए. इसके अलावा इस समय लोगों में कोरोना संक्रमण को लेकर काफी हद तक लापरवाही भी देखी गई, क्योंकि इस तरह के आरोपों ने लोगों के मन में प्रशासन के लिए अविश्वास का भाव पैदा कर दिया था. जिसकी वजह से प्रशासन को हालात नियंत्रित करने में अब पहले से कहीं अधक मशक्कत करनी पड़ रही है. ऐसे में पूरी संभावना है कि बेसिरपैर के आरोप व भ्रामक खबरों के मामले में अब प्रशासन द्वारा संबंधितों के खिलाफ कोई कड़ी व सख्त कार्रवाई की जाये.