ग्रामीण क्षेत्र के डॉक्टर कोरोना से निपटने हेतु अतिरिक्त सतर्कता बरते
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वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. प्रफुल्ल कडू ने दी ग्रामीण क्षेत्र के लिए सलाह
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बुखार आते ही टेस्टिंग को बताया जरूरी
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पहले सप्ताह में स्टेरायड का प्रयोग न करे डॉक्टर
अमरावती/प्रतिनिधि दि.14 – इस समय अमरावती जिले के ग्रामीण इलाकों में बडी तेजी के साथ कोविड वायरस का संक्रमण फैल रहा है. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि, ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा देनेवाले डॉक्टरों द्वारा अपने पास आनेवाले मरीजों का इलाज करते समय विशेष तरह की सतर्कता बरती जाये. जिसके तहत बुखार से पीडित मरीज की तुरंत ही कोविड टेस्ट करवायी जाये और यदि मरीज किसी कारणवश कोविड टेस्ट के लिए तैया नहीं हैं, तो उसे तुरंत एजीफोमायसीन व आयवर मैक्वीन नामक एंटीवायरस दवा शुरू करते हुए बुखार उतरने के लिए कैलपॉल व क्रोसीन जैसी दवाए दी जाये. इस आशय की महत्वपूर्ण सलाह शहर के वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ व चिकित्सक डॉ. प्रफुल्ल कडू द्वारा दी गई है.
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करनेवाले डॉक्टरोें के नाम एडवाईजरी के तौर पर सलाह जारी करते हुए डॉ. प्रफुल्ल कडू ने कहा कि, बुखार से पीडित किसी भी मरीज को बुखार आने पश्चात पहले सात दिनों के दौरान कोई स्टेरायड न दिया जाये. बल्कि इस दौरान एंटीवायरल दवाईयों से ही मरीज का इलाज किया जाये. डॉ. प्रफुल्ल कडू के मुताबिक बुखार आने पर पहले सप्ताह में ही स्टेरायड देने से मरीज को कुछ हद तक आराम व राहत मिलने का ऐहसास होता है, किंतु हकीकत में इससे शरीर और स्वास्थ्य पर विपरित परिणाम पड सकता है. अत: पहले सप्ताह में मरीज की स्थिति ठीक नहीं होने पर दूसरे सप्ताह में स्टेरायड का प्रयोग किया जाना चाहिए. वहीं यदि किसी मरीज को हार्ट, हाई बीपी व ब्लड शूगर की शिकायत है, तो उसे तुरंत ही जिलास्तर के बडे अस्पताल में रेफर कर दिया जाना चाहिए. सबसे जरूरी बात यह भी है कि, बुखार से पीडित मरीज यदि कोविड टेस्ट करने के लिए किसी डर अथवा भय की वजह से तैयार नहीं है, तो उसके मन का भय व संभ्रम निकालते हुए उसे कोविड टेस्ट करवाने हेेतु राजी किया जाये.
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रेमडेसिविर के बदले फैबीफ्ल्यू का करे प्रयोग
इन दिनों कोविड संक्रमण का लक्षण रहनेवाले सभी मरीजों द्वारा रेमडेसिविर का इंजेक्शन प्राप्त करने हेतु काफी जद्दोजहद की जाती है. इस संदर्भ में प्रतिक्रिया देते हुए डॉ. प्रफुल्ल कडू ने कहा कि, रेमडेसिविर केवल एक एंटी वायरल दवाई है. इसकी बजाय फैबीफ्ल्यू नामक गोलियों के साथ ही एजीमोफायसीन तथा आयवरमैक्वीन नामक एंटीवायरल दवाईयोें के डोज शुरू किये जा सकते है. इससे भी मरीज को काफी आराम मिल सकता है और रेमडेसिविर के लिए उनकी दौडभाग सहित इस पर होनेवाला भारी भरकम खर्च भी बच सकता है.
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स्टेरायड के अति प्रयोग से हो सकता है ‘ब्लैक फंगस’
डॉ. प्रफुल्ल कडू के मुताबिक इन दिनोें कई कोविड संक्रमित मरीजों में म्युकर मायकोसीस नामक फंगल इंफेक्शन का भी संक्रमण देखा जा रहा है. इसे ब्लैक फंगस के नाम से भी जाना जाता है. कोरोना के साथ ही डाईबीटीज, हाई ब्लड प्रेशर व ब्लड शूगर से पीडित मरीजों में यह इंफेक्शन होने का खतरा काफी अधिक होता है. यदि ऐसे मरीजों पर स्टेरायड का प्रयोग किया जाता है, तो मरीज के ब्लैक फंगस से संक्रमित होने की संभावना कई गुना अधिक बढ जाती है. ऐसे में डाईबीटीज से पीडित मरीजों को केवल इन्स्युलीन का ही प्रयोग किया जाना चाहिए. साथ ही हृदयरोग संबंधी बीमारियों हाई ब्लड प्रेशर व ब्लड शूगर से पीडित मरीजों पर स्टेरायड का बिल्कुल भी प्रयोग नहीें किया जाना चाहिए. डॉ. कडू के मुताबिक ब्लैक फंगस नामक बीमारी सीधे आंखों और मस्तिष्क पर हमला करता है और इसका इलाज भी काफी महंगा होता है. साथ ही महंगे से महंगा इलाज और ऑपरेशन करने के बावजूद जान बचने की कोई गारंटी नहीं होती. ऐसे में विभिन्न बीमारियों से पीडित रहने के साथ ही कोविड संक्रमण की चपेट में आनेवाले मरीजों के इलाज में काफी अधिक सावधानियां बरती जानी चाहिए.