प्रशासन छिपा रहा ‘लालची’ अस्पतालों के नाम!
कोविड मरीजों से 1.30 करोड रूपये अतिरिक्त वसूलने का मामला
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ऑडिट में दोषी पाये गये ‘उन’ आठ अस्पतालोंं के नाम अब तक उजागर नहीं
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आठ में से केवल तीन अस्पतालों ने दिये अपने आर्थिक ब्यौरे
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बाकी अस्पताल प्रशासन को भी नहीं गिन रहे
अमरावती/प्रतिनिधि दि.9 – विगत दिनों खबर आयी थी कि, जिलाधीश शैलेश नवाल द्वारा गठित किये गये ऑडिट पथक ने शहर में स्थित 11 निजी कोविड अस्पतालों में से 8 अस्पतालों द्वारा उनके यहां भरती रहनेवाले कोविड संक्रमित मरीजों से इलाज के नाम पर निर्धारित शुल्क से अधिक रकम वसूली थी और अनाप-शनाप रकम के बिल बनाये थे. ऐसे में इस ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन ने तय किया था कि, इन आठ अस्पतालों से कुल 1 करोड 30 लाख रूपये की वसूली की जायेगी और जिन-जिन मरीजों से इलाज के नाम पर अतिरिक्त रकम वसूली गई है, उन्हें वह राशि वापिस लौटायी जायेगी. किंतु हैरत की बात यह है कि, प्रशासन द्वारा अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इन आठ अस्पतालों में शहर के किन-किन निजी कोविड अस्पतालों का समावेश है और उन अस्पतालों द्वारा कितने मरीजों से कितनी रकम अतिरिक्त ली गई थी और कुल कितने मरीजों को प्रति मरीज कितनी-कितनी राशि लौटायी जायेगी.
ज्ञात रहें कि, करीब तीन-चार दिन पहले खुद जिला प्रशासन की ओर से खबर जारी करते हुए कहा गया था कि, शहर के आठ अस्पतालों से 1 करोड 30 लाख रूपयों की वसूली की जानी है. जिसके बारे में जिलाधीश द्वारा अगले एक-दो दिनों में विधिवत आदेश जारी किया जायेगा. साथ ही इस संदर्भ में संबंधित अस्पतालों को भी नोटीस जारी की जा चुकी है. जिसका सीधा मतलब है कि, प्रशासन के पास इस बात का पूरा विवरण उपलब्ध है कि, शहर के किन-किन निजी कोविड अस्पतालों द्वारा उनके यहां भरती रहनेवाले किस-किस मरीज से कितनी-कितनी राशि ज्यादा ली गई. किंतु हैरत की बात यह है कि, प्रशासन द्वारा इसका ब्यौरा चार दिन बाद भी जारी नहीं किया गया, बल्कि अब यह जानकारी सामने आ रही है कि, ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर प्रशासन की ओर से जारी की गई नोटीस के जवाब में केवल तीन अस्पतालों द्वारा ही अपने आर्थिक ब्यौरे के साथ विस्तृत स्पष्टीकरण दिया गया है. वहीं अन्य निजी कोविड अस्पतालों द्वारा अपने आगे प्रशासन को भी नहीं गिना जा रहा. प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक जिन निजी कोविड अस्पतालों को नोटीस जारी की गई है, उसमें से एक-दो निजी कोविड अस्पताल कोविड संक्रमण की दूसरी लहर से पहले ही बंद भी हो चुके है. जिनके कहना है कि, निजी कोविड अस्पताल बंद करते समय वे अपना पुरा हिसाब-किताब पहले ही बता चुके है.
उल्लेखनीय है कि, कोविड संक्रमण की पहली लहर के दौरान विगत वर्ष सितंबर माह में तथा दूसरी लहर के दौरान जारी वर्ष के फरवरी से अप्रैल माह के दौरान रेमडेसिविर इंजेक्शन सहित ऑक्सिजन को लेकर काफी किल्लत पैदा हुई थी और रेमडेसिविर इंजेक्शन की बडे पैमाने पर कालाबाजारी होने के मामले भी सामने आये थे. याद दिला दें कि, निजी कोविड अस्पतालों को मान्यता देते समय उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर ही मरीजों का इलाज करने हेतु कहा गया था. किंतु कई अस्पतालों के बारे में यह शिकायते मिली कि, वहां पर सरकारी दरों के नियमों का उल्लंघन करते हुए मरीजों से इलाज के नाम पर अनाप-शनाप रकम वसूली गई. ऐसी तमाम शिकायतों को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा ऑडिट पथक गठित करते हुए जिले के सभी निजी कोविड अस्पतालों के बिल संबंधी रिकॉर्ड को खंगालना शुरू किया गया है. जिसमें ऑडिट पथक ने पाया कि, कुल 8 निजी अस्पतालों द्वारा उनके यहां भरती मरीजों से करीब 1 करोड 30 लाख रूपये अतिरिक्त वसूले गये. पश्चात यह रिपोर्ट जिलाधीश के समक्ष पेश की गई और यह तय किया गया कि, इन अस्पतालों से यह अतिरिक्त रकम वसूल करते हुए संबंधित मरीजों को जिलाधीश या संभागीय आयुक्त के हाथों वापिस लौटायी जायेगी. किंतु प्रशासन द्वारा इस बात का ब्यौरा उपलब्ध नहीं कराया गया है कि, किन-किन अस्पतालों से कितनी-कितनी रकम वसूल की जायेगी और यह भी नहीं बताया गया है कि, इन अलग-अलग अस्पतालों में कितने-कितने मरीजों से कितनी-कितनी रकम ज्यादा ली थी.
ऐसे में यह सवाल उपस्थित हो रहा है कि, कोविड संक्रमण काल के दौरान ‘आपदा को अवसर’ समझनेवाले लालची डॉक्टरों व उनके द्वारा संचालित निजी कोविड अस्पतालों के नाम उजागर क्यों नहीं किये जा रहे. इस बारे में वरिष्ठ प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि, कुछ अस्पतालों द्वारा ऑडिट रिपोर्ट के बाद अपनी ओर से आर्थिक ब्यौरे के साथ ही विस्तृत स्पष्टीकरण किया गया है कि, उनके यहां किसी मरीज से कोई अतिरिक्त रकम नहीं ली गई, वहीं कुछ अस्पतालों का आर्थिक ब्यौरा मिलना बाकी है. इस वजह से उन अस्पतालों के नाम उजागर नहीं किये जा रहे, ताकि बिना वजह किसी की बदनामी न हो. प्रशासन के इस तर्क पर दूसरा सवाल उपस्थित होता है कि, यदि अस्पतालों द्वारा दिये जानेवाले आर्थिक ब्यौरे और स्पष्टीकरण को ही आधार माना जाना है, तो जिलाधीश द्वारा गठित ऑडिट पथक की रिपोर्ट का क्या औचित्य है, क्योंकि इस पथक द्वारा उन्हीं सब आर्थिक ब्यौरे को खंगालते हुए ही अपनी रिपोर्ट बनायी गयी थी. ऐसे में कुल मिलाकर कहीं न कहीं यह महसूस हो रहा है कि, प्रशासन द्वारा या तो इस मामले में कुछ लीपापोती करने का प्रयास किया जा रहा है, या फिर ऑडिट रिपोर्ट में फंस चुके कुछ लालची लोगों को जानबूझकर बचाने का प्रयास किया जा रहा है. इसके अलावा ऑडिट रिपोर्ट में दोषी पाये गये निजी कोविड अस्पतालों के नामों को उजागर नहीं करने की और कोई दूसरी वजह तो फिलहाल दिखाई नहीं दे रही. बावजूद इसके यह इंतजार किया जा सकता है कि, जिला प्रशासन व मनपा प्रशासन द्वारा इस मामले में संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई कब तक की जाती है और कोविड संक्रमण काल के दौरान मजबूर मरीजों की लाचारी का फायदा उठानेवाले लालची लोगों और उनके द्वारा की गई लूट का ब्यौरा कब तक उजागर किया जाता है.