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18 वर्ष की आयु के बाद माता-पिता का धर्म लागू नहीं होता, वानखडे का पक्ष मजबूत

एड. प्रकाश आंबेडकर ने दिया सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला

मुंबई/दि.20 – यदि कोई भी बच्चा 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर लेता है, तो उसके बाद माता-पिता का धर्म उस बच्चे पर लागू नहीं होता, बल्कि वह बच्चा एक बालिग के तौर पर अपना दादा-परदादा के धर्म व जात की यानी कुल में रहने हेतु स्वतंत्र होता है. इस आशय का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा इससे पहले एक मामले में दिया गया है. इस आशय की जानकारी देते हुए वंचित बहुजन आघाडी के नेता एड. प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि एनसीबी के अधिकारी समीर वानखेडे का पक्ष बेहद मजबूत है और इस मामले में फैसला भी उनके ही हक में आयेगा.
यहां बुलाई गई पत्रवार्ता में एड. प्रकाश आंबेडकर ने इन दिनों समीर वानखेडे की जाति व धर्म के मुद्दे को लेकर चल रहे हंगामे पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, 26 फरवरी 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय दिया था. इस मामले में एक व्यक्ति के पिता ने क्रिश्चियन धर्म स्वीकार लिया था. किंतु उस व्यक्ति ने अपने पिता के धर्म को स्वीकार करने से इन्कार करते हुए मदिगा जाति का सर्टिफिकेट मिलने की मांग की थी. यह मामला हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट गया था और उस वक्त उसके दादा व परदादा के धर्म को ग्राह्य मानते हुए उस व्यक्ति को दिया गया मदिगा जाति का प्रमाणपत्र ग्राह्य माना गया था. चूंकि उस व्यक्ति को कुल से बाहर नहीं निकाला गया था. अत: न्यायालय ने माना था कि, वंश परंपरागत कुल द्वारा उसे धर्म का अधिकार दिया गया है. जिसके अनुसार उसे उसकी जाति में अभय दिया गया. साथ ही इस फैसले में यह भी स्पष्ट किया गया था कि, 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके व्यक्ति पर माता-पिता का धर्म लागू नहीं होता. लगभग यहीं स्थिति समीर वानखेडे के मामले में भी है. जिसके चलते उन पर उनके माता-पिता का धर्म लागू नहीं होता. एड. प्रकाश आंबेडकर के मुताबिक यद्यपि समीर वानखेडे की मां धर्म से मुस्लिम है और उनके पिता ने मुस्लिम धर्म अपनाया है, किंतु समीर वानखेडे ने कभी भी मुस्लिम धर्म का स्वीकार नहीं किया है. कोर्ट के निर्णयानुसार 18 वर्ष की आयु तक हर बच्चा अपने माता-पिता के अधीन रहता है और वे उस बच्चे के पालक रहते है. किंतु पालक के तौर पर माता-पिता द्वारा लिये गये फैसले बच्चे पर बिल्कुल भी लागू नहीं होते. साथ ही 18 वर्ष की आयु के बाद हर व्यक्ति को अपना धर्म चुनने की आजादी है और समीर वानखेडे ने अपने दादा-परदादा के धर्म व वंश में रहने का फैसला किया है, जो पूरी तरह से नियमों के अनुरूप है. ऐसे में समीर वानखेडे के कास्ट व रिलीजन सर्टिफिकेट पर किसी भी तरह की कोई आंच नहीं आयेगी. इसके अलावा समीर वानखेडे द्वारा अपना पहला विवाह मुस्लिम पध्दति से करने और पहली पत्नी को मुस्लिम पध्दति से तलाक दिये जाने की ओर ध्यान दिलाये जाने पर एड. प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि, पत्नी की धार्मिक रिती-रिवाज के अनुसार विवाह होना यह एक भाग है. किंतु दूसरा भाग भी बेहद महत्वपूर्ण है कि, उन्होंने पहला विवाह स्पेशल मैरेज एक्ट के अनुसार ही किया था. ऐसे में पहली पत्नी की बजाय वानखेडे का इंटेंशन बेहद महत्वपूर्ण है. वहीं उन्होंने अपना दूसरा विवाह भी एक हिंदू लडकी के साथ हिंदू पध्दति से करते हुए उसे भी रजिस्टर्ड करवाया है, यह नहीं भुला जाना चाहिए.

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