दिल्ली दि.11– महाराष्ट्र के सत्ता संघर्ष पर उच्चतम न्यायालय में एक बडा फैसला आज आया. जिसमें कोर्ट ने पूरे प्रकरण में तत्कालीन राज्यपाल भगतसिंग कोश्यारी की भूमिका को गैर कानूनी बताया. कोर्ट ने कहा कि, देवेंद्र फडणवीस व्दारा दिए गए पत्र पर राज्यपाल व्दारा की गई कार्यवाही सरासर गलत थी. विशेषकर संविधान पीठ के प्रमुख और प्रधान न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड ने कहा ‘राज्यपाल व्दार लिए गए फैसले देश के संविधान के अनुरुप नहीं थे. असंतुष्ट विधायकों को सरकार का समर्थन वापस लेना है, ऐसा सूचित करने वाली किसी भी संवाद पर राज्यपाल को भूमिका नहीं लेनी चाहिए. उद्धव ठाकरे ने बहुमत गंवा दिया, यह निष्कर्ष निकालने राज्यपाल शिंदे गट के प्रस्ताव पर निर्भर रहे, यह भी उनकी बडी भूल थी.’ कोश्यारी के लगभग सभी फैसलों पर देश की सबसे बडी अदालत ने कडा रुख व्यक्त किया है. जिसमें राज्यपाल व्दारा फ्लोर टेस्ट का निर्णय देना गैर कानूनी था. राज्यपाल को राजनीतिक निर्णय का अधिकार नहीं था. उनका यह निर्णय राजनीतिक हस्तक्षेप कहा जा सकता है. राज्यपाल के पास ठोस सबूत नहीं थे. राज्यपाल के अधिकार अलग है. उन्हें राजकारण का हिस्सा नहीं बनना चाहिए. जो पत्र राज्यपाल को दिया गया था उसमें सरकार से समर्थन निकाला गया था, इससे सरकार को खतरा नजर नहीं आया. उल्लेखनीय है कि कोर्ट में लगभग 8 माह तक तारीख पर तारीख चली. अनेक संवैधानिक मुद्दों पर दोनों पक्षों के सिद्धहस्त वकीलों ने तर्क वितर्क किए. कोर्ट ने डेढ माह तक अपना फैसला सुरक्षित रखा था. इस बीच राज्यपाल पद से भगतसिंह कोश्यारी ने त्यागपत्र दे दिया. उनके स्थान पर छत्तीसगढ के भाजपा नेता रमेशसिंह बैस को नया महामहिम बनाया गया है.
* राज्यपाल कोश्यारी की काफी गलतियां
फ्लोर टेस्ट को किसी पार्टी के आंतरिक विवाद को सुलझाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की थी कि ठाकरे ने विधायकों के बहुमत का समर्थन खो दिया था. राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए कोई पुख्ता आधार नहीं था. इस मामले में राज्यपाल के विवेक का प्रयोग कानून के अनुसार नहीं था.
राज्यपाल का निर्णय गलत है. उन्होंने ऐसे तथ्य देखे जो वहां थे ही नहीं. आज सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि स्पीकर को तुरंत फैसला लेना चाहिए था. जब व्हिप का उल्लंघन हुआ तो राज्यपाल को खुद ही बागी विधायकों को डिस्क्वॉलिफाई करना चाहिए था. व्हिप किसी पॉलिटिकल पार्टी का होता है, सरकार का नहीं. ये सही बात है कि मुख्यमंत्री ने फ्लोर टेस्ट के पहले इस्तीफा न दिया होता तो सरकार बच सकती थी, लेकिन इससे राज्यपाल की भूमिका बड़ी हो जाती है.