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शहर में एम्बुलन्स चालकों ने अचानक की हडताल

मरीजों व शवों को लाने-ले जाने से किया इन्कार

अमरावती/प्रतिनिधि दि.४ – अमरावती शहर में शुक्रवार ४ सितंबर को एम्बुलन्स चालकों द्वारा अचानक ही हडताल करते हुए मरीजों को अस्पताल लाने-ले जाने का काम करने से इन्कार कर दिया गया. जिसके चलते कोरोना जैसे संक्रमण काल में स्वास्थ्य संबंधी हालात गंभीर रहनेवाले मरीजों एवं उनके परिजनों की दिन भर हालात खराब रही. साथ ही उन्हें भारी असुविधाओं का सामना करना पडा. इसके अलावा इन एम्बुलन्स चालकों ने अस्पतालों से विभिन्न बीमारियों के चलते मृत हुए लोगों के शवों को भी उनके घर पहुंचाने के काम से इन्कार किया. जिसकी वजह से संबंधितों को अपने मरीजों एवं परिचितों के शवों को लाने-ले जाने हेतु निजी वाहनों की व्यवस्था करनी पडी. इसके साथ ही कोरोना संकटकाल जैसे भयंकर समय के दौरान एम्बुलन्स चालकों की संवेदनहीनता सामने आते हुए सेवाभाव व इंसानियत जैसे शब्द बुरी तरह से तार-तार हो गये.
बता दें कि, अमरावती शहर सहित जिले में विभिन्न सामाजिक व स्वयंसेवी संगठनों तथा राजनीतिक दलों की ओर से सेवाभाव के नाम पर एम्बुलन्स वाहन चलवाये जाते है. जिसमें से अधिकांश वाहन सांसद व विधायक निधी यानी आम जनता के पैसों से ही उपलब्ध करवाये गये है, ताकि स्वास्थ्य संबंधी किसी भी आपात स्थिति में आम नागरिकों को एम्बुलन्स वाहन उपलब्ध हो सके. जानकारी के मुताबिक इन सभी एम्बुलन्स वाहनों से मरीजों को लाने-ले जाने हेतु स्थानीय प्रादेशिक परिवहन कार्यालय द्वारा वर्ष २०१८ में ही दूरी एवं यात्रा में लगनेवाले समय को ध्यान में रखते हुए यात्रा की दरें तय की गई थी. किंतु विगत दो-तीन वर्षों से न तो यह दरें प्रचलन में थी और न ही आम लोगों को इन दरों के बारे में कोई जानकारी ही थी. जिसके चलते एम्बुलन्स चालकों द्वारा मरीजों एवं शवों को लाने-ले जाने हेतु अपनी मर्जी के हिसाब से शुल्क वसूला जाता था. किंतु इन दिनों कोरोना संक्रमण काल जारी रहने के चलते बडे पैमाने पर मरीजों एवं शवों को इधर से उधर लाने-ले जाने का काम चल रहा है. जिसकी वजह से एम्बुलन्स चालकों ने मौके का फायदा उठाते हुए लोगों से अनाप-शनाप रकम वसूलनी शुरू की है.
ऐसी शिकायतें बडे पैमाने पर सामने आना शुरू हुई. जिसकी दखल लेते हुए विगत दिनों ही आरटीओ कार्यालय द्वारा वर्ष २०१८ में तय की गई दरों को आम जनता की जानकारी के लिए प्रकाशित किया गया. साथ ही सभी अस्पतालों के सामने यह दरपत्रक लगाये जाने का निर्देश दिया. लेकिन आरटीओ द्वारा की गई इस पहल का स्थानीय एम्बुलन्स चालकोें द्वारा विरोध करना शुरू किया गया और गत रोज एम्बुलन्स चालकोें ने इन दरों के प्रति असंतोष जताते हुए स्थानीय जिलाधीश को एक ज्ञापन सौंपा. ऐसे में यह सवाल उठाया जा सकता है कि, जब यह दरें वर्ष २०१८ से लागू है, तो विगत दोन वर्षों के दौरान एम्बुलन्स चालकों ने इन दरों का विरोध क्यों नहीं किया. और यदि आज वे इन दरों का विरोध कर रहे है तो फिर उन्होंने इतने दिनों तक किस दर के हिसाब से लोगों से मरीजों एवं शवों को लाने-ले जाने का काम किया.
बता दें कि, स्थानीय जिला सामान्य अस्पताल के सामने हमेशा ही एम्बुलन्स वाहनों का भारी जमघट लगा रहता है, लेकिन आज एम्बुलन्स वाहनों का पार्किंग स्थल सुबह से सुनसान पडा था और यहां पर एक भी एम्बुलन्स वाहन उपलब्ध नहीं था. इस संदर्भ में पूछताछ करने पर पता चला कि, आरटीओ द्वारा जारी दरों के खिलाफ एम्बुलन्स वाहन चालकों ने हडताल कर दी है. वहीं दूसरी ओर एम्बुलन्स वाहन चालकों की इस अचानक हडताल का सीधा असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पडा और मरीजों व शवों को अस्पताल लाने-ले जाने का काम बुरी तरी से प्रभावित हुआ. ज्ञात रहे कि, इस समय कोरोना के साथ-साथ अमरावती में सारी व डेंग्यू का संक्रमण भी फैला हुआ है और रोजाना सैंकडों मरीजों को अस्पताल लाकर भरती करना पड रहा है. जिसमें से कई मरीजों की स्थिति गंभीर रहने के चलते उन्हें सरकारी अस्पताल से निजी अस्पताल अथवा अन्य जिलों के अस्पताल में रेफर करना पडता है. जिसके लिए बडे पैमाने पर एम्बुलन्स वाहनों की जरूरत पडती है. लेकिन शुक्रवार को शहर में एक भी एम्बुलन्स उपलब्ध नहीं रहने के चलते मरीजों को लाने-ले जाने का काम बुरी तरह से चरमरा गया. साथ ही अधिकांश मरीजों को जहां कार जैसे निजी वाहनों में बिठाकर अस्पताल पहुंचाया गया, वहीं अस्पतालों में मृत हुए मरीजों के शवों को टेम्पो जैसे मालवाहक वाहनोें के जरिये उनके घर पहुंचाया गया.

एम्बुलन्स चालकों की मगरूरी व संवेदनहिनता आयी सामने

यहां यह कहना कतई अतिशयोक्ती नहीं होगा कि, इस हडताल के जरिये एम्बुलन्स चालकों की मगरूरी और असंवेदनशिलता ही उजागर हुई है, क्योंकि अपने फायदे के लिए एम्बुलन्स चालकों ने शहर के हजारों मरीजों की जान को खतरे में डाल दिया है. पुनश्च याद दिला दें कि, अधिकांश एम्बुलन्स वाहन किसी न किसी सामाजिक संस्था या राजनीतिक दल द्वारा दान स्वरूप प्रदान किये गये है. साथ ही कई परिवारों द्वारा अपने किसी दिवंगत परिजन की स्मृति में एम्बुलन्स वाहन उपलब्ध कराये गये है. यानी अधिकांश एम्बुलन्स वाहन चालकों के पास अपना खुद का वाहन नहीं है. बल्कि वे किसी अन्य के जरिये दान में दिये गये एम्बुलन्स वाहन को चलाकर अपनी रोजी-रोटी कमाते है. लेकिन ऐसा करते समय एम्बुलन्स चालकों से सेवाभाव का प्रर्दशन किये जाने की अपेक्षा की जाती है. qकतु पाया गया है कि, कई एम्बुलन्स चालक मौके का फायदा उठाते हुए विशेषकर रात के समय मरीजों के परिजनों से अनाप-शनाप रकम की मांग करते है. साथ ही कोरोना काल के दौरान कई एम्बुलन्स चालकों ने मरीजोें के परिजनों की जमकर आर्थिक लूट भी की. ऐसे में यह सवाल भी उठाया जा सकता है कि, जिन सामाजिक संगठनों व राजनीतिक दलों द्वारा यह एम्बुलन्स वाहन लोकार्पित किये गये है, उनका इस ओर ध्यान क्यों नहीं है.

हमारी भी जान कीमती, कोरोना काल में पूरे सेवाभाव के साथ किया काम

इस संदर्भ में चर्चा हेतु संपर्क किये जाने पर एम्बुलन्स चालक एसोसिएशन के अध्यक्ष अनुप खडसे ने कहा कि, सरकार द्वारा ठेके पर दी गई १०८ व १०४ क्रमांक की एम्बुलन्स को ४८ रूपये प्रति किमी की दरें दी जा रही है. वहीं निजी एम्बुलन्सों को १० किमी के लिए ऑक्सीजन सहित २५० रूपये यानी मात्र २५ रूपये प्रति किमी की दर के हिसाब से शुल्क लेने कहा जा रहा है. जों कि पूरी तरह से अन्यायकारक है. वहीं खडसे के मुताबिक हर एक मरीज को लाने-ले जाने के बाद एम्बुलन्स को सैनिटाईज करना पडता है. जिसके लिए सरकार या स्थानीय प्रशासन की ओर से निजी एम्बुलन्स के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है.
इसके साथ ही निजी एम्बुलन्स चालकों को अपने खर्च पर खुद के लिए पीपीई कीट व मास्क व ग्लब्ज की व्यवस्था भी करनी पडती है. इसके अलावा पेट्रोल, डीजल व मेंटेनन्स खर्च के साथ-साथ अपने व अपने परिवार के भरणपोषण हेतु भी दो पैसे कमाने होते है. यह सबकुछ सरकारी दरों के हिसाब से संभव नहीं है. अत: अपनी समस्या की ओर सरकार व प्रशासन का ध्यान दिलाने के लिए एम्बुलन्स चालकों ने काम बंद आंदोलन शुरू किया है. साथ ही खडसे ने यह स्पष्ट किया कि, जब तक जिलाधीश द्वारा इस समस्या का समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक एम्बुलन्सवालोें की हडताल जारी रहेगी. खडसे के मूताबिक सभी एम्बुलन्स चालक किसी भी आपात अथवा हादसेवाली स्थिति में पुलिस महकमे के बुलावे पर अपनी नि:शुल्क सेवाएं भी प्रदान करते है और हर एक एम्बुलन्स चालक ने कोरोना काल के दौरान अपनी जान का खतरा उठाकर काम किया है. इस कोरोना काल के दौरान सरकार ने डॉक्टरों व नर्सों सहित पुलिसवालों को आर्थिक सुरक्षा कवच प्रदान किया है, लेकिन ऐसी कोई सुविधा एम्बुलन्स चालकोें को प्रदान नहीं की गई है. जिसका सीधा मतलब है कि, प्रशासन व सरकार की नजर में एम्बुलन्स चालकों के प्राणों की कोई कीमत नहीं है. इस समय जब एम्बुलन्स चालक एसो. के अध्यक्ष अनुप खडसे से पूछा गया कि, यदि आपके आंदोलन के चलते एम्बुलन्स का अभाव रहने की वजह से किसी मरीज की जान जाती है, तो उसकी जिम्मेदारी किस पर होगी, तो अनूप खडसे का कहना रहा कि, सरकार के पास १०८ व १०४ क्रमांक की तमाम एम्बुलन्स है. उन्होंने सभी मरीजों का जिम्मा उठाना चाहिए. इसके लिए निजी एम्बुलन्स चालकों को जिम्मेदारी नहीं माना जा सकता.

 

 

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दोनों पक्षों से बात कर सामंजस्यपूर्ण रास्ता निकालना होगा

एम्बुलन्स चालकों द्वारा की गई हडताल बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. ऐसे में यह जरूरी है कि, प्रशासन व एम्बुलन्स चालकों के बीच आपसी चर्चा कराते हुए इस समस्या का सामंजस्यपूर्ण समाधान निकाला जाये. जहां तक एम्बुलन्स चालकों द्वारा अचानक की गई हडताल का मसला है, तो इसका समर्थन नहीं किया जा सकता. क्योंकि इस समय एम्बुलन्सों की बडे पैमाने पर जरूरत है और इस महामारी के काल में मरीजोें को किसी की भी मांग के लिए अडाया नहीं जा सकता. – नवनीत राणा सांसद

 

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कडी कार्रवाई की जायेगी

इस समय कोरोना जैसी महामारी का संक्रमण जारी है और स्वास्थ्य संबंधी व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरूस्त रखने पर काम किया जा रहा है. ऐसे में यदि निजी एम्बुलन्स चालकों द्वारा मरीजों को लाने ले जाने हेतु मरीजों के परिजनों से अनाप-शनाप रकम लिये जाने अथवा हडताल करते हुए स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित करने के संदर्भ में कोई शिकायत मिलती है

 

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धनउगाही की मानसिकता ना रखे एम्बुलन्स चालक

रूग्णवाहिका इस शब्द में ही सेवा का सुगंध है और इस काम में लाभ कमाना गौण होता है. हालांकि व्यवस्था को चलाने के लिए एम्बुलन्स चालकों द्वारा आवश्यक शुल्क लिया जाना चाहिए, लेकिन अनाप-शनाप रकम लेकर मरीजों के परिजनों से धनउगाही की मानसिकता नहीं रखनी चाहिए. एम्बुलन्स चालकों को हमेशा याद रखना चाहिए कि, उनके पास जो वाहन है, वे किसी व्यक्ति विशेष की स्मृति अथवा सार्वजनिक फंड या विकास निधी से खरीदे गये है. यानी उन वाहनों में समाजसेवियों व जनता का ही पैसा लगा है. अत: एम्बुलन्स चलाने का व्यवसाय करने के साथ-साथ उन्हें सेवाव्रती भी होना चाहिए. एम्बुलन्स चालकों द्वारा अचानक शुरू की गई हडताल का समर्थन नहीं किया जा सकता. – प्रा. दिनेश सूर्यवंशी प्रदेश सदस्य, भाजपा

 

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हडताल से आम नागरिकों के हुए हाल-बेहाल

एक मराठी न्यूज चैनल के स्थानीय प्रतिनिधी संजय शेंडे के रिश्तेदार तथा सेवानिवृत्त चीफ अकाउंटंट मधुकर वानखडे का शुक्रवार की सुबह शहर के एक निजी अस्पताल में निधन हुआ. इसके बाद बतौर पत्रकार हमेशा ही दूसरों के सुख-दु:ख में दौडकर जानेवाले संजय शेंडे ने जब अपने रिश्तेदार के पार्थिव शरीर को घर ले जाने हेतु रूग्णवाहिका प्राप्त करनी चाही और अपने परिचित एम्बुलन्स चालकों को फोन किया, तो उन्हें हर ओर से टकासा जवाब मिला कि, आज एम्बुलन्स की हडताल है और कोई एम्बुलन्स उपलब्ध नहीं है. इसके बाद पत्रकार संजय शेंडे ने अपने एक परिचित के जरिये स्मृतिरथ शववाहिका वाहन बुलवाया और उस वाहन में रखकर मधुकरराव वानखडे के पार्थिव शरीर को घर ले जाया गया. इस विषय को लेकर दैनिक अमरावती मंडल के साथ अपनी भावनाए एवं तकलीफों को साझा करते हुए पत्रकार संजय शेंडे ने कहा कि, कोरोना जैसे संकटकाल के समय एम्बुलन्स वाहन चालकों द्वारा की गई हडताल का कतई समर्थन नहीं किया जा सकता. इस समय स्वास्थ्य व्यवस्थाओं एवं सेवाओं को और अधिक चुस्त-दुरूस्त किये जाने की जरूरत है, लेकिन ऐसे समय अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए एम्बुलन्स चालकों ने शहर के हजारों मरीजों की जान को खतरे में डाल दिया है.

रोजाना सैंकडों मरीजों को करना पडता है इधर से उधर

यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, इस समय अमरावती शहर में रोजाना ही १०० से अधिक कोरोना संक्रमित मरीज पाये जा रहे है. जिन्हें सुपर स्पेशालीटी के कोविड अस्पताल सहित शहर के अलग-अलग हिस्सों में बनाये गये निजी कोविड अस्पतालों में भरती कराया गया है. इसके अलावा जिला सामान्य अस्पताल सहित शहर के अन्य निजी अस्पतालों में गंभीर बीमारियों से पीडित मरीज भी भरती है. जिन्हें कई बार अलग-अलग तरह की स्वास्थ्य जांच के लिए पैथालॉजी टेस्ट लैब अथवा रेडिओलॉजी लैब में ले जाना पडता है. इस काम के लिए ज्यादातर लोगबाग मारूती ओमनी वैन में बनायी गयी छोटी एम्बुलन्स ही मंगवाते है, जो अधिकांशत: जिला सामान्य अस्पताल के सामने खडी रहती है. किंतु शुक्रवार को शहर की सडकों पर एक भी निजी व छोटे एम्बुलन्स वाहन उपलब्ध नहीं थे. ऐसे में गंभीर बीमारियों से पीडित मरीजोें को स्वास्थ्य जांच सहित अन्य कामों के लिए इधर से उधर लाने-ले जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पडा.

 

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