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कलंकित नेताओं के चुनाव लड़ने पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगाएं

कोर्ट के मित्र का सुझाव, केवल 6 वर्ष की पाबंदी पर्याप्त नहीं

नई दिल्ली./दि.15- आपराधिक प्रकरणों में न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए गए नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी लगनी चाहिए. जनप्रतिनिधित्व कानून के वर्तमान 6 वर्ष की पाबंदी का प्रावधान कम होने का दावा कोर्ट के मित्र ने किया. सर्वोच्च न्यायालय के सामने वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने रिपोर्ट रखी. जिसमें कहा गया कि लोकपाल और सीवीसी जैसे शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे अधिकारी हटाए जा सकते हैं तो राजनेता क्यों नहीं?
* अनुच्छेद 14 का उल्लंघन
नैतिक अधमता का अपराध करने पर लोकपाल, निजीलेंस कमीश्नर और मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष सहित 20 उच्च संवैधानिक पदों के व्यक्ति कोर्ट से दोषी पाये जाने पर हटाए जा सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार सांसदों, विधायकों को रियायत देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. कोर्ट इस मामले में अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है. उपाध्याय ने कलंकित नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध की मांग की है.
* 40 प्रतिशत सांसद, विधायक पर केसेस
देश के कुल 763 सांसदों में से 40 प्रतिशत अर्थात 306 पर आपराधिक प्रकरण दर्ज है. इसमें से 194 पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिला पर अत्याचार जैसे संगीन मामले भी है. 4300 विधायकों में से 44 प्रतिशत के विरुद्ध आपराधिक प्रकरण दर्ज है. इनमें 1136 विधायकों पर महिलाओं पर अत्याचार, हत्या और अपहरण के केस है. केरल में सर्वाधिक 70 प्रतिशत विधायकों पर क्रिमिनल केसेस दर्ज है.
* महाराष्ट्र में 482 प्रकरण लंबित
सांसद और विधायकों पर 5175 प्रकरण अदालतों में चल रहे हैं. इसमें भी 211 प्रकरण पांच वर्ष से अधिक पुराने हैं. महाराष्ट्र में लंबित 482 राजनेताओं के प्रकरण में 169 केसेस पांच वर्ष से ज्यादा पुराने है. हाइकोर्ट अपने अधीनस्थ न्यायालयों से कहे कि किसी भी कारण से इन प्रकरणों की सुनवाई न टाले. कम से कम दो विशेष लोक अभियोक्ता नियुक्त करें. न्यायालय के मित्र ने कहा कि राजनेता चुनाव जीतकर कानून बनाते हैं. इसलिए संभावना है कि दागी नेता सत्ता में लौटकर कानून भी बदल सकते हैं.

राज्य लंबित मामले 5 साल से पुराने
यूपी            1377          719
बिहार          546           381
महाराष्ट्र        482          169
म.प्र.            329           51
झारखंड      198            72
पंजाब          91             16
हिमाचल       70            17

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