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4 घंटे में जांच पूर्ण और आरोपियों की कोर्ट पेशी

रातभर सर्चिंग, जब्ती व गिरफ्तारी की मुहिम चली

  •  आखिर पुलिस को पीसीआर लेने की जरुरत क्यों नहीं पडी

  •  रेमडेसिविर कालाबाजारी में आज भी अनेकों प्रश्न अनुत्तरित

  •  आरोपियों ने कब, कहा से लाये थे इंजेक्शन

  •  इससे पहले कितने इंजेक्शन ब्लैक में बेचे

अमरावती/प्रतिनिधि दि.13 – कोरोना की महामारी में समूचा अमरावती जिले में ही नहीं बल्कि समूचे राज्य, देश में हाहाकार मचा दिया. रोजाना हजारों की संख्या में मरीज कोरोना पॉजिटीव पाये जाते है. सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड की कमी है, कही वेंटिलेटर नहीं मिल रहे है, तो अनेकों मरीजों को कोरोना बीमारी पर उपयुक्त साबित होने वाले रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए दर-दर भटकना पडता है. उसी का फायदा उठाकर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाला गिरोह सक्रीय हो चुका है. अमरावती ही नहीं बल्कि इससे पहले नागपुर और यवतमाल में रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वाले गिरोह का पर्दाफाश हुआ.
परसो रात अमरावती शहर आयुक्तालय पुलिस ने ऐसे ही एक गिरोह का पर्दाफाश करते हुए दो डॉक्टरों समेत छह लोगों को गिरफ्तार किया, उनके पास से रेमडेसिविर के 12 व्हायल जब्त किये. आश्चर्य की बात यह कि जिस इंजेक्शन की मूल कीमत 600 रुपए है, वह इंजेक्शन यह लोग 6 हजार में बेच रहे थे. समूूचे रातभर चली कार्रवाई में इंजेक्शन की जब्ती, आरोपियों की गिरफ्तारी, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करना और गिरफ्तार आरोपियों का मेडिकल कल उन्हें पुलिस लॉकअप में डालना आदि प्रक्रिया में लगभग सुबह के 10 बजे तक का समय पुलिस का बीत गया था और दोपहर 12 बजे पुलिस ने सभी छह आरोपियों को न्यायालय में पेश किया, लेकिन सभी पर दर्ज अपराध यह नॉन बेलेबल रहते हुए भी पुलिस ने उनके पीसीआर की मांग न करते हुए सभी का एमसीआर मांगा और आरोपियों की बिनती पर एमसीआर के बाद कोर्ट ने सभी आरोपियों जमानत दे दी. रात में रेमडेसिविर की कालाबाजारी में पकडे गए आरोपी दोपहर बाद जमानत पर रिहा हो गये, लेकिन कोरोना बाधितों की जान से खिलवाड कर रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी के इस मामले से जुडे अनेकों प्रश्न आज भी अनुत्तरीत है. उसमें मुख्य प्रश्न यह कि पुलिस को आरोपियों का पीसीआर लेने की जरुरत क्यों महसूस नहीं हुई?, रातभर चली मुहिम के बाद मिले 4 घंटे में पुलिस आरोपियों से क्या उगलवा पायी, आरोपियों ने उनके पास जब्त किये रेमडेसिविर के इंजेक्शन कहा से लाये?, कब लाये, क्या यह इंजेक्शन किसी मरीज को न देते हुए उसे यह लोग ज्यादा भाव से बेच तो नहीं रहे थे?, पकडे गए आरोपियों का यह कारनामा क्या पहला था?, इससे पहले पकडे गए आरोपियों ने इस तरह से कितने रेमडेसिविर इंजेक्शन ब्लैक में बेचे?, पिछले कितने दिनों से वे इस तरह की कालाबाजारी कर रहे थे?, इस तरह के अनेेकों प्रश्नों का अभी तक जवाब नहीं मिला और इस मामले की जांच कर रहे अपराध शाखा के पुलिस निरीक्षक कैलाश पुंडकर से पूछने पर उन्होंने बताया कि उनकी जांच पूर्ण हो चुकी थी, और उन्हें आरोपियों का पीसीआर लेने की जरुरत महसूस नहीं हुई, इस कारण उन्होंने आरोपियों का पीसीआर न मांगते हुए उनका एमसीआर मांगा, लेकिन शायद रेमडेसिविर के इस कालाबाजारी से जुडे जो प्रश्न आज अनुत्तरीत है, उसका जवाब शायद ही इस मामले की जांच कर रहे पीआई पुंडकर के पास नहीं होगा, तो फिर जांच में इतनी जल्दबाजी क्यो बरती गई, इसी के चलते इस मामले में पुलिस की भूमिका पर अनेकों संदेह उपस्थित किये जा रहे है. उल्लेखनीय है कि इस मामले में पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 188, 34, सहकलम परिशिष्ट 26 औषध कीमत नियंत्रण आदेश 2013 व सहकलम 3 (2) (सी), 7 (1)(ए)(ळळ) अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम 1955 व सहकलम 18 (सी), 27 (बी) (ळळ), 28 औषधि व सौंदर्य साधन कानून 1940 व सहकलम 3 साथी रोग प्रतिबंधक कानून के तहत अपराध दर्ज किया गया है. यह सभी कलम नॉन बेलेबल बताये जा रहे है.

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