वर्धा संसदीय सीट पर कांग्रेसियों ने जताया परंपरागत दावा
राकांपा के कोटे में सीट दिये जाने का दबे स्वर में शुरु हो गया विरोध
* हर्षवर्धव देशमुख ने राकांपा प्रत्याशी के तौर पर शुरु कर दिया है अपना प्रचार
* कांग्रेसी कर रहे मविआ के तहत वर्धा सीट कांग्रेस को दिये जाने की मांग
* वर्धा संसदीय क्षेत्र में राकांपा का कोई अस्तित्व नहीं रहने का किया जा रहा दावा
वर्धा/दि.2 – इस समय यद्यपि आगामी लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है तथा सत्ताधारी एवं विपक्षी गठबंधनों के बीच सीटों के बंटवारे का कोई फार्मूला भी तय नहीं हो पाया है. लेकिन इसके बावजूद किस दल की ओर से कौनसा प्रत्याशी किस सीट पर चुनाव लडेगा और कौनसी सीट गठबंधन के तहत किस दल के हिस्से में जाएगी. इसे लेकर अभी से जोरदार रस्साकशी शुरु हो गई है. जिससे वर्धा संसदीय क्षेत्र भी अछूता नहीं है. वर्धा संसदीय क्षेत्र में हमेशा से ही कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता आया है तथा इस बार भी यहां पर भाजपा के खिलाफ महाविकास आघाडी द्वारा सशक्त चुनौती पेश किये जाने की पूरी संभावना है. परंतु महाविकास आघाडी एवं इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस व राकांपा के बीच वर्धा संसदीय सीट को लेकर अभी से ही सिरफुटव्वल वाली स्थिति बनती दिखाई दे रही है. क्योंकि राज्य के पूर्व मंत्री तथा अमरावती स्थित शिवाजी शिक्षा संस्था के अध्यक्ष हर्षवर्धन देशमुख द्वारा अपना अगला चुनाव वर्धा संसदीय सीट से राकांपा प्रत्याशी के तौर पर लडने का नियोजन किया जा रहा है. जिसके लिए हर्षवर्धन देशमुख ने अभी से ही अपनी तैयारियां करनी भी शुरु कर दी है. जिसके तहत वे वर्धा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के साथ ‘टेलिफोनिक कॉन्टैक्ट’ करते हुए अपने जनसंपर्क व प्रचार अभियान में जुट गये है. वहीं दूसरी ओर वर्धा जिले के कांग्रेस पदाधिकारियों द्वारा कहा जा रहा है कि, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि रहने वाला वर्धा जिला हमेशा से ही कांग्रेस का मजबूत गढ रहा है और इस सीट पर परंपरागत रुप से कांग्रेस का ही दावा बनता है. अत: महाविकास आघाडी में शामिल राकांपा सहित किसी भी अन्य दल ने अपने मन में वर्धा संसदीय सीट को लेकर कोई मुगालता नहीं रखना चाहिए.
इस संदर्भ में वर्धा के कांग्रेस जिलाध्यक्ष मनोज चांदूरकर ने बताया कि, वर्धा संसदीय क्षेत्र में वर्धा जिले की वर्धा, हिंगणघाट, आर्वी तथा देवली-पुलगांव इन चार विधानसभा क्षेत्रों का समावेश होता है. इसके अलावा इस संसदीय क्षेत्र में अमरावती जिले के मोर्शी-वरुड तथा धामणगांव विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है. इन सभी 6 विधानसभा क्षेत्रों में इस समय राकांपा का कोई विधायक नहीं है. साथ ही नगरपालिका व नगर पंचायत जैसे स्थानीय स्वायत्त निकायों की सत्ता भी राकांपा के पास नहीं है. यहां तक कि, पूर्व मंत्री हर्षवर्धन देशमुख खुद अपने गृह क्षेत्र यानि मोर्शी-वरुड निर्वाचन क्षेत्र मेें कई बार विधानसभा का चुनाव हार चुके है. ऐसे में इनके द्वारा वर्धा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लडने के बारे में सोचना काफी हद तक हास्यास्पद है. इसके साथ ही वर्धा संसदीय क्षेत्र विगत लंबे समय से कांग्रेस-राकांपा आघाडी के तहत कांग्रेस के ही हिस्से में छुटता रहा है तथा गांधी जिला होने के नाते यह परंपरागत रुप से कांग्रेस के अधिकार वाली सीट है. अत: इस पर किसी भी अन्य घटक दल द्वारा दावेदारी करने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए.
इसके साथ ही मनोज चांदूरकर का यह भी कहना रहा कि, पूरे वर्धा जिले में केवल हिंगणघाट ही ऐसा एकलौता क्षेत्र है. जहां पर राकांपा का थोडा बहुत अस्तित्व है, लेकिन यह अस्तित्व विधानसभा या लोकसभा चुनाव में जीत दिलाने के लिए काफी नहीं है. ऐसे में राकांपा नेताओं ने इस सीट पर दावा करने से पहले अपनी जमीनी हकीकत का आकलन कर लेना चाहिए. चांदूरकर के मुताबिक वर्धा जिला परिषद तथा जिले की पंचायत समितियों व नगरपंचायतों एवं कृषि उत्पन्न बाजार समितियों में कांग्रेस की स्थिति काफी मजबूत है. अत: फिलहाल कांग्रेसी एकमात्र ऐसी पार्टी है, जो वर्धा जिले में पूरी ताकत के साथ भाजपा के प्रत्याशी को टक्कर दे सकती है. इस बात को इंडिया गठबंधन व महाविकास आघाडी के वरिष्ठ नेताओं ने गंभीरतापूर्वक ध्यान में रखना चाहिए.
* राकांपा व हर्षवर्धन का विरोध नहीं, वे तो हमारे सहयोगी है
साथ ही साथ चांदूरकर ने यह भी कहा कि, राकांपा भी इंडिया गठबंधन व महाविकास आघाडी का घटक दल है. अत: राकांपा अथवा हर्षवर्धन देशमुख का विरोध करने का कोई सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि वे हमारे सहयोगी है. हम अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता के समक्ष अपनी भूमिका और जमीनी स्थिति स्पष्ट कर रहे है, ताकि भाजपा के प्रत्याशी को कडी टक्कर देने के साथ ही शिकस्त दी जा सके. लेकिन इसके बावजूद भी पार्टी द्वारा कोई अलग निर्णय लिया जाता है, तो वर्धा जिले के कांग्रेस पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं द्वारा उस फैसले का पालन करते हुए गठबंधन धर्म का निश्चित तौर पर पालन किया जाएगा.
* कांगे्रस की ओर से 5 सशक्त दावेदार
कांग्रेस की ओर से वर्धा संसदीय सीट पर चुनाव लडने हेतु प्रत्याशी के तौर पर करीब 10 से 12 लोगों के नाम पार्टी के प्रदेश कार्यालय को भेजे गये है. जिनमें पूर्व मंत्री व विधायक सुनील केदार, पूर्व विधायक अमर काले सहित शैलेश अग्रवाल, चारुलता टोकस व शिरीष गोडे के नामों को सशक्त दावेदार माना जा रहा है. हालांकि इसमें से पूर्व मंत्री व विधायक सुनील केदार का नाम नागपुर जिला बैंक में उजागर हुए सरकारी बाँड खरीदी मामले में अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के चलते रेस से बाहर बताया जा रहा है. वहीं अन्य 4 दावेदारों के बीच कांगे्रस प्रत्याशी बनने हेतु अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा चल रही है.