अमरावतीमुख्य समाचार
दीपक के स्वप्नदिप रोशन करती पूजा,पायल,दीक्षा और राधा
बगैर माँ-बाप की बेटियां विषम परिस्थिति में बनी आत्मनिर्भर
परतवाड़ा/अचलपुर दि ७ – नारी तुम प्रेम हो,आस्था हो ,विश्वास हो, टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो.
26 सितंबर 2000 में माँ ज्योति सिसांगिया का निधन हुआ तब वो अपने पीछे छोड़ गई थी चार पुत्रियां.बड़ी पुत्री पायल महज पांच वर्ष की होंगी तो सबसे छोटी राधा थी सिर्फ 16 माह की.ये सब दीपक उर्फ दीपल्या बाबूलाल सिसांगिया परिवार के नूर-ए-चश्मिया थी.घर मे कोई दूसरी महिला नही थी, ताई और ताऊजी पड़ोस में ही रहते.वृध्द दादाजी बाबूलाल भी जीवित थे.लेकिन माँ तो जो गई तो फिर लौटकर नही आई.ताऊ भिकुलाल और उनकी धर्मपत्नी ने शुरुआती दिनों से बच्चियों पर नीतिगत ध्यान रखा.यह मूलतःगुजराती नाई समाज के एक कुटुंब में जन्मी चार बहनों की दास्तान है.घर मे कोई भी व्यक्ति शिक्षित नही, अकस्मात माता का छोड़ चले जाना और पिता दीपक का अनिश्चित और अव्यवस्थित आचरण और व्यापार..! इस तरह एक घोर विषम परिस्थिति ने इन मासूमो से उनका बचपन भी छीन लिया.कहा जा सकता है कि ये सभी सीधे समझदार और परिपक्व ही बने.आर्थिक तंगी, माँ-बाप का अभाव और अंधेरी दिशा हर किसी को मजबूत ही कर दे ,यह जरूरी तो नही.लेकिन परमात्मा ने इन्हें जरूर राह दिखाई.कुछ बरसो तक अत्यंत कम शिक्षित ऑल राउंडर पिताजी का भरोसेमंद साथ मिला, प्यार मिला, जीते जी बाप ने कभी रुपयों-पैसों की कमी अपनी बच्चियों को नही होने दी.पायल कहती है कि हमे तराशने में पापा का अमूल्य योगदान रहा.उन्होंने हम बच्चियों को स्त्री के होते प्राथमिक बदलाव से लेकर दुनियादारी क्या होती है, ये सभी सबक सिखाये.दीक्षा कहती है कि पापा कहते थे कि तुम सभी को आत्मनिर्भर बनना है.रिश्तेदार या किसी अन्य के भरोसे मत रहो, न ही किसी का मोह रखो..जो करना है स्वयं करो.अपनी पूरी भागमभाग भरी जिंदगी के बीच एक सामान्य बाप ने करीब चौदह बरसो तक बच्चियों को माँ और बाप दोनों का स्नेह दिया.सिर्फ प्यार की ही बात नही, बल्कि यही बाप उनका मार्गदर्शक भी रहा, उनका पालक भी और उन्ही की हर पीड़ा का डॉक्टर भी वो बना.पायल बताती है कि हमे स्वनिर्भर बनाने में हमारे पिताजी की सिख ही काम आई.वो बताती है हम नौंवी कक्षा में जाने तक ताईजी ने भी चारो का ध्यान रखा.ताऊजी का पुत्र भरत भी हमे यथायोग्य मार्गदर्शन करता रहा.बड़े पापा हमारे पिताजी के जाने के बाद से ही हमारे साथ रहते है.दादाजी से भीहमारी सुरक्षा काफी होती रही.दादू हमको अकेला घर मे छोड़कर कभी बाहर नही जाते.2010 में दादाजी और 11 जुलाई 2014को पापा का निधन हो गया.ये हम चारो के लिए बड़ी ही विषम स्थिति थी.एक अंधेरा पथ दिख रहा था, समझ से परे था कि अब क्या करे और क्या न करे.परमात्मा ने हमसे हमारी सबसे बड़ी सुरक्षा दादाजी और पिताजी को छीन लिया.
पायल और दीक्षा दोनों बताती है कि सबसे बड़ी बहन पूजा ने माँ के निधन के बाद ही जो भूमिका निभाई उसका ऋण हम कभी नही चुका पाएंगे.वो मासूम सी उम्र में ही समझदार हो गई.उसने बहन नही अपितु एक माँ समान हमारा ध्यान रखा.हमे कपड़े पहनाने से लेकर टिफिन देने तक की जवाबदारी वो निभाती और हमारे ही साथ खुद भी स्कूल जाती थी.पूजा और पायल एक ही कक्षा में पढ़े, पिताजी के कारण ये हुआ.स्थानीय लाइफ एंड लाइट कान्वेंट में चारो बहनों की प्राथमिक पढ़ाई हुई.इनके बड़े होने तक पिताजी का स्वर्गवास हो गया.तब तक पायल यह स्थानीय एक स्कूल में बतौर टीचर जॉब भी करने लगी थी.वही सबसे बड़ी पूजा यह अमरावतीं के विद्याभारती से एमएससी कर रही थी.पूजा ने अपने पिता की प्रेरणा से लर्निंग विथ अर्निंग शुरू किया.उसने अमरावतीं में ट्यूशन लेनी शुरू की.उसी के बल पर एमएससी और बीएड पूर्ण किया.छोटी दीक्षा के एलएलबी प्रवेश का इंतजाम किया.एक बहन ने माँ के रूप में जिस दीक्षा को पाला वो आज एलएलएम कर अंतिम वर्ष में है.स्थानीय अचलपुर न्यायालय में वो घुलक्षे वकील की सहयोगी बनकर प्रैक्टिस के साथ ही अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही.उसे न्यायधीश बनना है, उसके प्रयत्न जारी है.
दो वर्ष पूर्व पूजा का विवाह हो गया.पूजा जिसने इन छोटी बहनों को ममता दी, हौसला दिया. विवाह से पूर्व पूजा ने स्थानीय जगदंब महाविद्यालय में बतौर लेक्चरार नोकरी की.बाद में उसने लोकल की एक कान्वेंट में भी शिक्षक का कार्य किया था.संजोग और संयोग आया और पूजा का विवाह हुआ.अहमदाबाद गुजरात के पारस वैष्णव उसके जीवनसाथी बने.पारस का अहमदाबाद में विडाल्स नाम से यूनिक सलून पार्लर है.पूजा अब एक बिटिया की माँ बन चुकी.अपनी गृहस्थी के साथ ही उसे अपने लक्ष्य का विस्मरण कभी नही हुआ.वो किसी शासकीय महाविद्यालय में बतौर व्याख्याता कार्य करने का सपना संजोए हुए है.वो सी-टेक, सेटनेट की स्पर्धा परीक्षाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किये हुए है.
पूजा 28वर्ष की, पायल 26 की, दीक्षा 24 और राधा 22 वर्ष की हो चुकी है.सभी अपनी अपनी जगह आत्मनिर्भर है.ताऊजी ताईजी का अपनत्व, स्नेह, मार्गदर्शन उनके साथ है.
पायल ने स्वयं के बल पर बीए किया, क्राफ्ट में डीएड भी और फिलहाल उसका बीएड भी चल रहा.पायल खुद एक अच्छी कुक भी है.लॉकडाउन में उसे अपने भीतर पैठ कर रहे इस सुप्तगुण का पता चला.वर्षभर पूर्व जब कोरोना के फर्स्ट फेज में लॉकडाउन लगा तब स्कूल बंद , टयूशन बंद, आनाजाना बंद, व्यवहार बंद और किसी सुरसा के समान जरूरतें मुहं फैलाये रोज सामने आ खड़ी होती थी.पायल को खुद को भी फास्टफूड खाने का शौक है.चलो घर मे ही कुछ ट्राय करते है.लॉकडाउन से त्रस्त कुछ लोग खाद्य पदार्थो की होंम डिलीवरी कर रहे.इस बारे में भी उसे मालूम पड़ा.तभी उसने फ़ास्ट फूड , चाइनीज और पेस्ट्री आयटम बनाने और बेचने की सोची.आश्चर्य की बात है लोगो ने इसे भरपूर प्रतिसाद दिया.आज भी जब प्रस्तुत प्रतिनिधि ने पायल के निवास को भेंट दी तब वो किसी के ऑर्डर का केक बनाने में ही व्यस्त थी.पायल का कहना कि उसकी तमन्ना एक शानदार होटल चलाने की है.एक युवती अथवा महिला भी शानदार ढंग से, सात्विक तरीके से होटल का संचालन कर सकती, ये उसे पूरी दुनिया को बताना है.वो कहती है कि शिक्षक की जो जॉब वो कर रही उसमे मेरा कोई इंटरेस्ट नही.मै तो आज नही तो कल होटल व्यवसाय में ही अपनी किस्मत आजमाउंगी.
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राधा के अभिभावक है शेख रहीम
सिसांगिया बेटियों की पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त.माँ ज्योति मरने से पूर्व 16 माह की राधा को रोता-बिलखता छोड़ गई.राधा इन चारों में सबसे छोटी और लाड की है.पायल , पूजा और दीक्षा उसे पैम्पर्ड चाइल्ड कहते है.आजमहिला दिन पर खून से परे रिश्तों की यह खुली दास्तान है जिसमे राधा के पालनकर्ता का जिम्मा एक मुस्लिम गृहस्थ ने संभाल रखा. तभी से जब वो 16 माह की ही थी.भगवान कृष्ण यह वासुदेव और देवकी के पुत्र थे, लेकिन उनका पालन पोषण किया यशोदा और नंदबाबा ने.यहां ज्योति और दीपक की सबसे छोटी पुत्री राधा के पालकत्व को सहर्ष स्वीकार किया शेख रहीम शेख रुस्तम ने.एक गुजराती परिवार में जन्मी कन्या एक इस्लाम धर्मी व्यक्ति के घर मे किलकारियां देने लगी.राधा अब 22 की हो चुकी.स्थानीय टिंबर डिपो रोड के कॉलेज से वो अपना स्नातक पाठयक्रम पूरा कर रही.उसकी पढ़ने में कम और सिलाई, कढ़ाई, क्राफ्ट और रसोई में बहोत ज्यादा रुचि है.चाहे वो ओवैसी की पार्टी हो या फिर बजरंग दल, शिवसेना, विश्व हिंदू परिषद या अन्य कोई कट्टर मुस्लिम पार्टी ही क्यो ना हो.सभी हिन्दू-मुस्लिमो के जबरदस्त पैरोकार, वकील अथवा नेतागण आकर इस रहीम की पुत्री राधा का दीदार अवश्य करे.ये सिर्फ नाम से रहीम नही..ये वाकई में रहीम है.रहिमन धागा प्रेम का मत खींचो, चटकाय 22 वर्षो से राधा की परवरिश रहीम कर रहे.उनके खुद के बच्चे भी आज बाप बन चुके.वो दादा बन गए.राधा आज भी उनकी आंखों का सितारा है.इस रिश्ते में मानवीय संवेदना है, कोई लालच नही, स्वार्थ नही.राधा आज भी राधा दीपक सिसांगिया ही है.ना उसका धर्म परिवर्तन हुआ, ना ही उसकी पहचान बदली गईऔर ना ही उसके साथ कोई बदसलूकी की गई.रहीम के परिवार ने इस बिटिया का इतना ज्यादा ध्यान रखा कि उसके बड़ी होने तक उसे कभी मांसाहार भी नही खिलाया गया.राधा आज भी रहीम के साथ स्थानीय हबीबनगर में रहती है.राधा और पूजा, पायल,दीक्षा सभी की आपस मे बहोत पटती है कोई आपस मे वैमनस्य नही.प्रगाढ़ बहनचारा बना हुआ है.जो लोग हिन्दू-मुस्लिम के बीच खाई खोदने का काम करते उन्हें रहीम और राधा के इस पाक और मुकद्दस रिश्ते पर नजर डालकर , फिर अपने गिरहबान में भी झांकना चाहिए.
बहरहाल बगैर किसी मार्गदर्शन, ट्यूशन के और बिना मांबाप की इन बेटियों का इस्तकबाल किया जाना चाहिए.एक बढ़िया सी कृतज्ञता और एक बड़ा धन्यवाद राधा के लिए यशोदा और नंदबाबा बने शेख रहीम को भी दिया जा सकता.इन चारों बेटियों का स्वर्णिम भविष्य बने, महिला दिवस पर यह कामना की जाती.परवरदिगार हमारी दुआ कबुल करे..आमीन, सुम्मा आमीन
जो तुझसे लिपटी बेड़ियां, समझ न इनको वस्त्र तू, ये बेड़ियां पिघाल के, बना ले इनको शस्त्र तू, तू खुद की खोज में निकल, तू किसलिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है