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प्रति पालकत्व मौजूदा समय की बडी मांग

बेसहारा बच्चों को अनाथालयों की नहीं, परिवारों की जरूरत

  •  यशोदा और पन्नाधाय का ममत्व साकार करना जरूरी

  •  स्वनाथ फाउंडेशन के सारिका व गगन महोत्रा का कथन

अमरावती/प्रतिनिधि दि.31 – अमूमन अपने अभिभावकों को खो चुके बच्चों को पालन, पोषण व संरक्षण हेतु अनाथालयों में ले जाकर रख दिया जाता है. जहां पर बच्चों को दो जोडी कपडे और दो वक्त का भोजन तो मिल जाता है, किंतु वे ममता की छांव, भावनात्मक लगाव एवं संस्कारों के जुडाव से वंचित रहते है. साथ ही अनाथालय में मेट्रेन व वॉर्डन की मशीनी देखभाल व कडे अनुशासन के बीच रहने की वजह से बच्चों का मानसिक व बौध्दिक विकास भी नहीं हो पाता. ऐसे में जब वे 18 वर्ष की आयु के बाद अनाथालयों से बाहर निकलते है, तब दुनिया की चुनौतियों व प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम नहीं होते. साथ ही कई बार गलत रास्ते पर भी चल पडते है. इसमें भी अनाथ लडकियों को लेकर तो स्थिति और भी बिकट हो सकती है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि, जिस तरह कभी माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण का तथा पन्नाधाय ने राणा उदयसिंह का प्रति पालकत्व स्वीकारा था. उसी तरह आज सक्षम परिवारों द्वारा मातृ-पितृ छत्र से वंचित बच्चों का प्रति पालकत्व स्वीकारा जाये, ताकि उन्हें सुयोग्य व संस्कारित पीढी के तौर पर विकसित किया जाये. इस बात को ध्यान में रखते हुए स्वनाथ फाउंडेशन की स्थापना की गई है. ऐसी जानकारी फाउंडेशन की कार्यकारी समिती के सदस्य सारिका पन्हालकर (महोत्रा) तथा गगन महोत्रा द्वारा दी गई.
स्वनाथ फाउंडेशन से संबंधित कामों के लिए अमरावती जिले के दौरे पर पहुंचे सारिका व गगन महोत्रा ने दैनिक अमरावती मंडल कार्यालय को भी सदिच्छा भेट दी. इस अवसर पर अमरावती मंडल के प्रबंधक राजेश अग्रवाल ने उनका पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया. इस समय हुई बातचीत में सारिका व गगन महोत्रा ने स्वनाथ फाउंडेशन के बारे में उपरोक्त जानकारी देने के साथ ही कहा कि, अमूमन अपने माता-पिता को खो चुके बच्चों को अनाथ कहा जाता है. यानी समाज द्वारा यह माना जाता है कि, अब उनका इस दुनिया में कोई नहीं है, जबकि हकीकत यह है कि, ऐसे बच्चों को अनाथ नहीं, बल्कि स्वनाथ कहना चाहिए. क्योंकि इतनी बडी दुनिया में ईश्वर ने उन्हें खुद उनके भरोसे छोडा है. अत: वे अनाथ नहीं बल्कि स्वनाथ हुए. जरूरत केवल इस बात की है कि, बेहद कम उम्र में ये बच्चे अपने उदरनिर्वाह एवं अन्य जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होते. जिसकी वजह से उन्हें अनाथालयों में रखा जाता है. किंतु यह नहीं भूला जाना चाहिए कि, भोजन एवं कपडे-लत्ते के अलावा हर बच्चे की जरूरत व मौलिक अधिकार में परिवार भी शामिल होता है. ऐसे में यदि इन बच्चों को अनाथालयों में रखने की बजाय सक्षम परिवारों द्वारा देखभाल हेतु अपने घर-परिवार में रखा जाये और उन्हें पारिवारिक परिवेश दिया जाये, तो शायद इन बच्चों को भी हम संस्कारक्षम पीढी के तौर पर विकसित कर सकेंगे.

  •  क्या है प्रति पालकत्व

प्रति पालकत्व यानी फॉस्टर पैरेंटिंग के संदर्भ में विस्तार से जानकारी देते हुए सारिका व गगन महोत्रा ने बताया कि, जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण एवं माता यशोदा के बीच कोई रक्तसंबंध नहीं था और जिस तरह पन्नाधाय व राणा उदयसिंह के बीच भी कोई रक्तसंबंध नहीं था, किंतु इसके बावजूद इन दोनों माताओं ने अपने जिम्मे आये बच्चों (भगवान श्रीकृष्ण व राणा उदयसिंह) का प्रति पालकत्व स्वीकार किया और उन्हें पाल-पोसकर बडा करने के साथ ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने लायक बनाया तथा जब वे इस लायक हो गये, तो सहर्ष उन्हें अपनी पुरानी भूमिका में बिना कोई अधिकार के तहत वापिस भी जाने दिया. इसे ही प्रति पालकत्व कहा जाता है, जो दत्तक विधान से पूरी तरह अलग है. इसमें दोनों पक्षों का एक-दूसरे की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता, बल्कि यह निस्वार्थ व निश्चल प्रेम संबंध का एक तरीका है. इस बातचीत में प्रति पालकत्व को लेकर उन्होंने बाहुबली फिल्म का उदाहरण भी दिया, जिसमें राजा अमरेंद्र के पुत्र महेंद्र बाहुबली का पालन-पोषण एक जनजातिय समूह द्वारा किया जाता है और कालांतर में महेंद्र बाहुबली एक बार फिर राजा बनकर अपने राज्य में लौट जाते है.

  • क्या है स्वनाथ फाउंडेशन

स्वनाथ फाउंडेशन को सक्षम परिवारों और परिवार की जरूरत रहनेवाले बच्चों के बीच एक संवाद सेतु निरूपित करते हुए सारिका व गगन महोत्रा ने बताया कि, 5 जून 2019 को ख्यातनाम सामाजिक कार्यकर्ता श्रेया भारतीय द्वारा स्वनाथ फाउंडेशन की स्थापना की गई. जिसका घोषवाक्य ही ‘हर बच्चे को परिवार’ है. फाउंडेशन द्वारा इस समय महाराष्ट्र सहित उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, झारखंड, गुजरात व छत्तीसगढ जैसे राज्यों में काम किया जा रहा है. जहां पर अब तक कई बेसहारा बच्चों को सक्षम परिवारों की छत्रछाया में सौंपा गया है. सबसे खास बात यह भी है कि, कई सक्षम परिवार स्वयंस्फूर्त रूप से आगे आकर ऐसे बच्चों का जिम्मा संभालने की तैयारी दर्शा रहे है. उन्होंने बताया कि, इस प्रकल्प के तहत इच्छूक परिवारों को तीन माह से तीन साल तक की आयुवाले बच्चे तमाम कानूनी प्रक्रिया को पूर्ण करने के बाद सौंपे जाते है तथा यदि पांच वर्ष तक संबंधित परिवार द्वारा बच्चे का बेहतरीन तरीके से पालन-पोषण किया जाता है, तब दत्तक विधान की प्रक्रिया भी पूर्ण की जाती है. इस दौरान स्वनाथ फाउंडेशन के वॉलेंटियर समय-समय पर संबंधित परिवार के यहां भेंट देकर बच्चे की परवरिश एवं संबंधित परिवार की समस्या को जानते-समझते है. इस प्रति पालकत्व के तहत बच्चे का संबंधित परिवार की संपत्ति पर कानूनी रूप से कोई अधिकार नहीं होता. किंतु यदि बच्चे के बडे हो जाने पर संबंधित परिवार द्वारा उस बच्चे के नाम कोई संपत्ति की जाती है, तो यह उनकी इच्छा पर निर्भर करता है. ठीक उसी तरह बच्चे के वयस्क हो जाने और पढ-लिखकर अपने पैरों पर खडे हो जाने व आत्मनिर्भर बन जाने के बाद संबंधित परिवार का भी उस बच्चे पर कानूनी रूप से कोई अधिकार नहीं होता. किंतु यदि दोनों पक्ष चाहे, तो आपस में अपने संबंध व रिश्ते को आगे भी जारी रख सकते है. यानी कुल मिलाकर यह एक तरह से निस्वार्थ व अपेक्षारहित रिश्ता स्थापित करने की तरह है, लेकिन इस तरीके से एक बेसहारा बच्चे को पारिवारिक परिवेश व भावनात्मक माहौल के बीच बडा होने में सहायता मिलती है. साथ ही वह संस्कारित व सुरक्षित माहौल के बीच बडा होकर एक जिम्मेदार नागरिक बन सकता है. इसी उद्देश्य को लेकर यह उपक्रम चलाया जा रहा है.

  •  कैसे करें संपर्क

इस बातचीत के दौरान सारिका व गगन महोत्रा ने माता-पिता को खो चुके बेसहारा बच्चों का पालन-पोषण करने हेतु अधिक से अधिक सक्षम परिवारों से आगे आने का आवाहन करते हुए कहा कि, इस कार्य हेतु सरकार की ओर से आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है. अत: संबंधित परिवार पर बच्चों के पालन-पोषण का अतिरिक्त बोझ नहीं पडता. ऐसे में जो भी परिवार व दम्पत्ति ऐसे बच्चों के पालन-पोषण हेतु इच्छुक है, वे स्वनाथ फाउंडेशन के संपर्क क्रमांक 860569773 तथा वेबसाईट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट स्वनाथ डॉट ओआरजी एवं ई-मेल आयडी इन्फो एट द रेट स्वनाथ डॉट ओआरजी के जरिये संपर्क कर सकते है.

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