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तुच्छ राजनीती का शिकार हुआ है धनगर समाज

  • कुछ राजनेताओं ने जानबूझकर धनगरों को आरक्षण से दूर रखा है

  • धनगर आरक्षण महासंघ के समन्वयक उमेश घुरडे का कथन

अमरावती प्रतिनिधि/दि.29 – जिस तरह से जमीन के पैमाने को हिंदी में एकड कहा जाता है और मराठी में एकर बोला जाता है, जिस तरह हिंदी में एक सरनेम को जाखड कहा जाता है और मराठी में जाखर बोला जाता है, उसी तरह महाराष्ट्र में धनगर कहे जाते समाज को उत्तर भारत में अपभ्रंश के तौर पर धनगड कहा जाता है, और अंग्रेजी में धनगर समाज की स्पेलिंग के अंत में आर की बजाय डी लिखा जाता है. लेकिन इस छोटे से फर्क का आधार लेकर महाराष्ट्र में धनगर समाज को आजादी के बाद 70 वर्षों से आरक्षण सुविधा के लाभ से वंचित रखा गया है. जबकि खुद संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने धनगर समाज को अनुसूचित जमाति यानी एसटी संवर्ग में शामिल करने की व्यवस्था उपलब्ध करायी है. ऐसे में कहा जा सकता है कि, आजादी के बाद से आज तक केंद्र सहित राज्य की सत्ता में रहनेवाले लोगों ने महाराष्ट्र के निवासी धनगरों को आरक्षण की सुविधा से वंचित रखते हुए संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहब आंबेडकर का अपमान किया है. ऐसे में अब धनगर समाज ने केंद्र व राज्य सरकार के साथ ही धनगरों को आरक्षण की सुविधा से दूर रखने का प्रयास करनेवाले राजनीतिक दलों के खिलाफ आरपार की लडाई लडने का मन बनाया लिया है और जब तक धनगर समाज को एसटी संवर्ग में शामिल कर आरक्षण सुविधा सहित सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना शुरू नहीं हो जाता, तब तक यह लडाई जारी रहेगी. इस आशय का प्रतिपादन धनगर आरक्षण महासंघ के समन्वयक तथा धनगर समाज महासंघ के प्रदेश उपाध्यक्ष उमेश घुरडे ने किया है.
धनगर समाज को आरक्षण दिलाने हेतु शुरू किये गये संघर्ष के संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए उमेश घुरडे ने बताया कि, वे विगत कई वर्षों से धनगर समाज को विकास की मुख्य धारा में लाने हेतु काम कर रहे है और उन्होंने इस मांग को लेकर कई आंदोलनों में सक्रिय सहभाग लेने के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों की इस मांग के संदर्भ में भुमिका को बडे नजदिक से देखा है. उनका स्पष्ट मानना है कि, आज तक सभी राजनीतिक दलों ने अपने फायदे के लिए धनगर समाज का वोटों के रूप में उपयोग किया है और मतलब निकल जाने के बाद समाज की मांगों और समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया. ऐसे में अब धनगर समाज बिना किसी राजनीतिक सहारे के खुद अपने दम पर अपने अधिकारों के लिए लडने हेतु आगे आया है. जिसके तहत अभी तो केवल शांति मार्च के जरिये जिलाधीश को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा गया है. लेकिन यदि जल्द ही हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया, तो धनगर समाज राज्य की सडकों पर उतरकर तीव्र संघर्ष करेगा. जिसके परिणामों के लिए पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकार का सत्ता पक्ष जिम्मेदार होगा.
इस बातचीत के दौरान उमेश घुरडे ने कहा कि, राज्य की राजनीति में अच्छाखासा दबादबा रखनेवाला और लंबे समय तक महाराष्ट्र की सत्ता में रह चुका एक रसूखदार राजनीतिक परिवार नहीं चाहता कि, महाराष्ट्र में धनगर समाज को आरक्षण मिले. क्योंकि पश्चिम महाराष्ट्र में धनगरों की संख्या बहुतायत में है और यदि धनगर समाज को आरक्षण मिल जाता है, तो पश्चिम महाराष्ट्र की कई विधानसभा व लोकसभा सीटों को अनुसूचित जाति संवर्ग के तहत आरक्षित करना पडेगा और वहां पर धनगर समाज का दबादबा बढ जायेगा. ऐसे में पश्चिम महाराष्ट्र को अपने ‘पॉवर’ में रखनेवाले उस राजनेता व उसके परिवार की वहां पर पूछपरख घट जायेगी. जिसके चलते उस राजनीतिक परिवार द्वारा अपने राजनीतिक फायदे के लिए धनगर समाज को आरक्षण की सुविधा से वंचित रखने का पूरा प्रयास किया जा रहा है. जिसकी वजह से समूचे राज्य के लाखों धनगर समाज बंधू आर्थिक दुर्दशा का शिकार होकर जीवन-यापन करने के लिए मजबूर है. ऐसे ही किसी समय विपक्ष में रहने के दौरान भाजपा ने पंढरपुर से बारामती के बीच धनगर समाज के आरक्षण को लेकर निकाले गये लाँगमार्च का नेतृत्व करते हुए धनगर समाज को आरक्षण दिये जाने की मांग पूरजोर तरीक से उठायी थी और उस लाँगमार्च में भाजपा के देवेंद्र फडणवीस व पंकजा मुंडे जैसे कई नेता शामिल हुए थे. लेकिन कालांतर में जब यहीं नेता महाराष्ट्र की सत्ता में आये और महाराष्ट्र सहित केंद्र में भाजपा की ही सरकार थी, तो इन नेताओं और भाजपा ने धनगर समाज के आरक्षण हेतु कोई कदम नहीं उठाये, बल्कि धनगर समाज के कुछ नेताओें को राजनीतिक लॉलीपॉप देकर खुश कर दिया गया. ऐसे में धनगर समाज का गुस्सा भाजपा के साथ-साथ अपने ही समाज के कुछ नेताओं के खिलाफ भी है और अब ऐसे नेता जब भी धनगर आरक्षण की मांग को लेकर किये जानेवाले आंदोलन में शामिल होने का प्रयास करेंगे, तो उन्हेें जमकर आडे हाथ लिया जायेगा.
धनगर आरक्षण महासंघ के समन्वयक उमेश घुरडे ने इस साक्षात्कार में स्पष्ट आरोप लगाया कि, राजनीतिक दलों के साथ-साथ खुद धनगर समाज के कुछ नेताओं ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए धनगर समाज का उपयोग किया है. ऐसे में अब इन सभी लोगोें से समाज द्वारा सवाल पूछा जायेगा. साथ ही उन्होंने बताया कि, बहुत जल्द धनगर आरक्षण महासंघ द्वारा सडकों पर उतरकर आंदोलन तीव्र करने के साथ ही महाराष्ट्र में रहनेवाले मंत्रियों के घरों में भेड-बकरियां छोडी जायेगी. और यदि इसके बावजूद भी धनगर आरक्षण की मांग पूरी नहीं होती है तो और भी अधिक तीव्र आंदोलन किया जायेगा. लेकिन अब यह पूरी तरह से सुनिश्चित किया जायेगा कि, धनगर आरक्षण की मांग को लेकर किये जानेवाले आंदोलनों को किसी भी राजनीतिक दल या व्यक्ति द्वारा अपने फायदे के लिए हाईजैक न किया जा सके और यह संघर्ष धनगर समाज को अनुसूचित जाति में शामिल किये जाने और उन्हें आरक्षण सुविधा सहित अनुसूचित जाति हेतु बनायी गयी सरकारी योजनाओं का लाभ मिलने तक जारी रहेगा.

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