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धनगरों को आज तक आरक्षण के नाम पर केवल आश्वासन ही मिला

  • पूर्व जिप उपाध्यक्ष संतोष महात्मे का कथन

  • कई धनगर नेताओं की भुमिका पर उठाये सवाल

अमरावती प्रतिनिधि/दि.29 – भारतीय संविधान में स्पष्ट प्रावधान रहने के बावजूद महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों व जंगलों में भेड-बकरी पालन कर अपना उदरनिर्वाह करनेवाले धनगर समाज बांधव बीते 70 वर्षों से आरक्षण सुविधा का लाभ नहीं उठा पा रहे. जबकि देश के अन्य इलाकों में रहनेवाले धनगरों को अनुसूचित जमाति यानी एसटी संवर्ग में शामिल है और उन्हें इस संवर्ग में आरक्षण सुविधा का लाभ भी मिल रहा है. ऐसे में यह सीधे-सीधे महाराष्ट्र में रहनेवाले धनगरोें के साथ अन्याय है. जिसे जल्द से जल्द दूर किया जाना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र में धनगरों को आरक्षण की बजाय हमेशा आश्वासन ही मिलते आये है. ऐसे में अब यह बेहद जरूरी हो चला है कि, सकल धनगर समाज आपसी मतभेदों को दूर रखते हुए एकजूट होकर आरक्षण सुविधा के लिए संघर्ष करे. इस आशय का प्रतिपादन धनगर समाज के नेता तथा अमरावती जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष संतोष महात्मे ने किया.
धनगर आरक्षण की मांग को लेकर किये जा रहे आंदोलन के संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए संतोष महात्मे ने कहा कि, इससे पहले विपक्ष में रहते समय भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने आश्वासन दिया था कि, यदि राज्य में भाजपा की सत्ता आती है, तो वे सत्ता में आते ही धनगर समाज को आरक्षण देंगे. लेकिन उन्होंने सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार को इस विषय के संदर्भ में सिफारिश भी नहीं भेजी. इसी तरह फडणवीस ने धनगर समाज के लिए एक हजार करोड रूपये की निधी का प्रावधान करने के संदर्भ में घोषणा की थी. लेकिन इसमें से करीब 50 करोड रूपये ही आवंटित हो पाये और शेष पैकेज का कहीं कोई पता नहीं है. ऐसे में आरक्षण की सुविधा से वंचित भेड-बकरी पालन का व्यवसाय करनेवाले आम धनगर समाज बांधवों को किसी भी सरकारी योजना का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा. ऐसे में अब यह जरूरी जो चला है कि, राज्य में जिस तरह से मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन हुआ था, ठीक उसी तर्ज पर धनगर आरक्षण की मांग को लेकर सकल धनगर समाज द्वारा आंदोलन किया जाये.
इस बातचीत में पूर्व जिप उपाध्यक्ष संतोष महात्मे ने यह भी कहा कि, यद्यपि वे राकांपा में है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि, किसी अन्य दल द्वारा किये गये अच्छे कामोें की तारीफ ना करे. महात्मे के मुताबिक राज्य की पूर्ववर्ती फडणवीस सरकार भलेही धनगर आरक्षण के मामले में असफल रही, लेकिन फडणवीस सरकार ने धनगर समाज की भलाई के लिए कई अच्छे काम भी किये है. जिसके तहत फडणवीस सरकार द्वारा अमरावती शहर व जिले सहित राज्य के कई जिलों में अहिल्याबाई होलकर स्मारक भवन व समाज भवन का निर्माण किया गया. साथ ही सोलापुर विद्यापीठ को पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होलकर का नाम दिया गया.
धनगर आरक्षण की मांग को लेकर हुए आंदोलनों का नेतृत्व करने के बाद सत्तासुख प्राप्त करते ही चूप हो जानेवाले महादेव जानकर व राम शिंदे जैसे नेताओं को जमकर आडे हाथ लेने के साथ ही कहा कि, जानकर व शिंदे जैसे नेताओं ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए समाज का इस्तेमाल किया है. वहीं दूसरी ओर भाजपा से राज्यसभा सांसद रहनेवाले पद्मश्री डॉ. विकास महात्मे ने समय पडने पर इस मसले को लेकर अपनी ही पार्टी और अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठायी है. संतोष महात्मे के मुताबिक बीच में कुछ लोगोें ने खबर फैला दी थी कि, भाजपा सांसदों की बैठक में पीएम मोदी के सामने सांसद डॉ. विकास महात्मे को धनगर आरक्षण के मामले को लेकर बोलने नहीं दिया गया. यह अपने आप में पूरी तरह से गलत बात है, बल्कि पीएम मोदी ने सांसद महात्मे की बातों को बेहद ध्यानपूर्वक सुना था और धनगर आरक्षण के मामले को लेकर राज्य सरकार से सिफारिश भिजवाये जाने की बात कही थी, लेकिन कुछ लोगों ने इसे पूरी तरह से उलट-पुलट करते हुए अलग ही रूप दे दिया.
संतोष महात्मे के मुताबिक डॉ. विकास महात्मे ने वर्ष 2014 में भाजपा सांसद रहने के बावजूद राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री व भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस से नागपुर में आयोजीत धनगर समाज सम्मेलन के दौरान ‘क्या हुआ तेरा वादा’ सवाल पूछा था. ऐसे में कहा जा सकता है कि, डॉ. विकास महात्मे ने हमेशा ही समाज के हितों को पहली प्राथमिकता दी और कभी भी समाज के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया.
इस समय राज्य में आपकी अपनी पार्टी की सरकार है, और बावजूद इसके राज्य सरकार द्वारा धनगर आरक्षण के मामले को लेकर केंद्र सरकार के पास सिफारिशे नहीं भेजी जा रही. ऐसे में राज्य के मंत्रियों की बजाय केंद्रीय मंत्रियों के घरों में भेड-बकरी छोडने की बात कही जा रही है. वहीं दूसरी ओर लंबे समय तक राज्य की राजनीति में सक्रिय रहे और मौजूदा सरकार में कद्दावर भुमिका रखनेवाले आपकी ही पार्टी के एक नेता पर आरोप लग रहे है कि, उन्होंने जानबुझकर धनगर समाज को आरक्षण देने की राह में रोडे अटका रखे है. इस सवाल पर संतोष महात्मे ने कहा कि, अव्वल तो भेड-बकरी छोडो आंदोलन की संकल्पना आम धनगर समाज बांधवों की नहीं है, बल्कि कुछ लोगों द्वारा इस आंदोलन को लेकर की गई घोषणा की वजह से धनगर समाज बांधवों में नाराजगी की लहर है.क्योंकि हमारी भेड-बकरियां हमारे लिए महज जानवर नहीं है, बल्कि वे हमारे लिए परिवार का हिस्सा है. अत: उन्हें इस तरह नेताओं के घर में लावारिस ढंग से नहीं छोडा जा सकता है. इसके अलावा दूसरे सवाल का जवाब देते हुए संतोष महात्मे ने कहा कि, महाराष्ट्र के जिस कद्दावर नेता को लेकर कुछ लोगों द्वारा आरोप लगाये जा रहे है, संभवत: उन लोगों को यह पता नहीं कि, उसी नेता ने राज्य की सत्ता में रहते समय धनगर समाज को एनटी (क) संवर्ग में शामिल करते हुए राष्ट्रीय आदिवासी वर्ग का दर्जा दिलाया था. साथ ही धनगर समाज की भलाई के लिए समय-समय पर अनेकों कदम उठाये. यहीं वजह है कि, धनगर बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में भी उस कद्दावर नेता की बेटी, भतीजे और पोते भारी बहुमत से जीत हासिल करते है, जबकि उनके सामने उस सीट पर धनगर समाज से वास्ता रखनेवाले प्रतिद्वंदी खडे थे. इसका सीधा मतलब है कि, भेड-बकरी पालन का व्यवसाय करनेवाला धनगर समाज किसी नेता के पीछे आंख बंद करके भेड-बकरी की तरह नहीं चलता, बल्कि अपने विवेक और अच्छे-बुरे का फैसला करते हुए निर्णय लेता है.
इस समय चल रहे धनगर आरक्षण आंदोलन में अपनी भुमिका को लेकर संतोष महात्मे ने कहा कि, इस आरक्षण के प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया गया था कि, राजनीति से वास्ता रखनेवाले लोग इस आंदोलन से कुछ दूरी बनाकर रहेंगे. अत: वे आंदोलन में शामिल तो है, लेकिन आंदोलन का प्रमुख चेहरा नहीं है. परंतू जहां आंदोलनकारियों के खिलाफ पुलिस द्वारा अपराध दर्ज करने की बात सामने आयी, तो वे सबसे आगे जाकर खडे हुए. वहीं उन्होंने इस बात को लेकर भी चिंता जतायी कि, इस समय आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहनेवाले लोग इस आंदोलन की आड में अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास कर रहे है. जिससे आंदोलन की सफलता को लेकर संदेह व्यक्त किया जा सकता है.

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